संपादकीय

भारत की विश्व विरासत-यूनेस्को की सूची में शामिल

पुस्तक समीक्षा

-अख्तर खान अकेला कोटा, राजस्थान
कोटा के विख्यात लेखक, पत्रकार तथा अनुज कुमार कुच्छल इंजीनियर भारतीय रेलवे, कोटा द्वारा संयुक्त रूप लिखित पुस्तक ‘भारत की विश्व विरासत -यूनेस्को की सूची में शामिल’ देश भर के पर्यटकों के लिए एक गाइड, एन्साइक्लोपीडिया एवं मार्गदर्शिका है। सम्भवतः इस विषय पर दोनों लेखकों की अद्यतन यह पहली पुस्तक है।

डॉ. सिंघल यूं तो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं

25 से भी अधिक पुस्तकों एवं हजारों प्रकाशित लेख, फीचर, ब्लॉग, स्तम्भ, सम्पादकीय, रिपोर्ताज के लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल राजस्थान सरकार में जनसम्पर्क संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत हुए है और अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपने सकारात्मक लेखन के जरिये हाड़ौती, राजस्थान एवं देश की विरासत, पर्यटन, संस्कृति को अपने लेख और पुस्तकों के माध्यम से पठनीय शोध ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करवाते रहे हैं। लेखन उनका व्यवसाय नहीं, एक जुनुन है। वह एक पारंगत लेखक के रूप में स्वभाव के तहत जनसम्पर्क प्रेमी होने के नाते हर घटना, विषय, इतिहास, खूबूसरत पर्यटन स्थलों को अपनी लेखनी के माध्यम से देश के कोने -कोने में पहुंचा रहे हैं और लगातार लिख रहे हैं।
इसी क्रम में हिंदी भाषी पर्यटकों के लिए देश भर की विरासत की एक मार्गदर्शिका के रूप में कम्पीटिशन छात्रों के ज्ञानवर्धन को दृष्टिगत रखते हुए एवं शोधार्थियों के लिए उपयोगी यह पुस्तक देश भर में बहुउपयोगी साबित हो रही है। पुस्तक की उपयोगिता, पुस्तक की ज्ञानवर्धक सामग्री, को जांच परख कर, यूनेस्को के विशेषज्ञों ने इसे अंतररष्ट्रीय पर्यटन में भारत का महत्व बढ़ाने वाली पुस्तक बताया है। पुस्तक का प्रकाशन चौड़ा रास्ता जयपुर स्थित प्रकाशक साहित्यागार द्वारा किया गया है। पुस्तक में आकर्षक चित्रों के साथ 203 पेेेज में देश की विरासत का ऐतिहासिक एवं पर्यटन महत्व को संक्षिप्त रूप में ज्ञानवर्धक जानकारियों के साथ, गागर में सागर बनाकर भर दिया है। उक्त पुस्तक लेजर टाइपसेटिंग द्वारा टाइप की गयी है जबकि इसके मुद्रक शीतल ऑफसेट जयपुर हैं। पुस्तक का प्राक्कथन इतिहासविद डॉ. हुकम चंद जैन, सेवनिवृत प्राचार्य महाविद्यायल कोटा द्वारा लिखा गया है जो कुम्भ पुरस्कार से सम्मानित है। पुस्तक का सारांश परिचय भूगोल के गोल्ड मेडलिस्ट प्रमोद कुमार सिंघल द्वारा आलेखित किया गया है जो बूंदी राजकीय महाविद्यालय में पूर्व प्राचार्य रह चुके हैं।
पुस्तक के कुल 38 खंडों में असम के मानस जंगली राष्ट्रीय अभ्यारण्य, काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क, बिहार के बोध गया में महाबोधि मंदिर, पुरातात्विक स्थल नालंदा विश्वविधयालय के बारे में सम्पूर्ण जानकारी है जबकि चंडीगढ के केपिटल बिलडिंग कॉम्प्लेक्स ली कोबुर्जिए की वास्तुकला को अंकित किए गया है। दिल्ली की कुतुब मीनार सहित अन्य ऐतिहासिक स्मारक हुमायूं का मकबरा, लालकिले के बारे में ऐतिहासिक महत्व के साथ परिचय है। इसी तरह गुजरात के अहमदाबाद का ऐतिहासिक नगर, चम्पानेर पावागढ़ पुरातात्विक पार्क, रानी की वाव, गोवा के गिरजाघर एव मठ, हिमाचल का ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय पार्क सुरक्षित क्षेत्र, कर्नाटक के हप्पी स्मारक समूह, पत्तदकल समूह, महाराष्ट्र की अजंता, एलोरा, एलिफेंटा गुफाएं, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, विक्टोरिया गोथिक और आर्ट डेको असेम्ब्ल, मध्य्प्रदेश के खजुराहों स्मारक समूह, साँची के बौद्ध स्मारक, भीम टेका के चट्टानी निवास के बारे में जानकारी है।
ओडिशा के कोणार्क का सूर्य मंदिर, पश्चिमी बंगाल का सुन्दर वन राष्ट्रीय उद्यान, भारत के पर्वतीय रेलवे – नीलगिरि पर्वतीय रेलवे, दार्जिलिंग, कालका- शिमला रेलवे का जिक्र है। पश्चिमी घाट (कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र), राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जयपुर के जंतर मंतर, जयपुर की चार दीवारी, राजस्थान के पहाड़ी दुर्ग आमेर, चित्तौड़, गागरोन, जैसलमेर, कुम्भलगढ़, गागरोन, रणथम्भोर दुर्ग के हवाले है। सिक्किम का कंचन जंघा राष्ट्रीय पार्क रिजर्व बायोस्फियर, तमिलनाडु के महान जीवित चोल मंदिर, महबलीपुरम के स्मारक समूह, उत्तर प्रदेश में आगरा का ताजमहल, लाल किला, फतेहपुर सीकरी के वर्णन है जबकि उत्तराखण्ड का नंदादेवी एवं फूलों की घाटी राष्ट्रीय पार्क का हवाला है। पुस्तक को विश्व धरोहरों के पर्यटन महत्व की दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुउपयोगी बनाने का सफल प्रयास रहा है, जिसके लिए लेखकगण बधाई के पात्र है।

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