संपादकीय

इण्टरनेट कम्पनियों द्वारा निजता के अधिकार की हत्या

-विमल वधावन योगाचार्य
(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)
खड़क सिंह नाम का एक डाकू डकैती के मुकदमें से इसलिए आरोपमुक्त कर दिया गया क्योंकि उसके विरुद्ध पर्याप्त गवाह नहीं थे। उसका नाम पुलिस के रिकाॅर्ड में अपराधिक इतिहास वाली सूची में चलता रहा। उसे थाने में नियमित हाजिरी लगानी पड़ती या पुलिस कभी भी उसे रात में उठाकर हाजिरी लेती। इस बाधा को उसने निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी। निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय ने हमेशा मानवतावादी दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण ठहराया। अत्यन्त गम्भीर अपराधों की सजा काटने वाले एक अपराधी ने अपनी जीवन कथा लिखी जिसे एक प्रसिद्ध पत्रिका ने प्रकाशन की घोषणा कर दी। इस जीवन कथा में उसने अपराधियों, पुलिस और सरकार के बीच सांठ-गांठ के कई किस्से लिखे थे। अब सरकार ने इस प्रकाशन को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को दो पहलुओं से स्पष्ट किया। प्रथम, निजता का अर्थ व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं को सार्वजनिक करने या न करने के विरुद्ध अधिकार के रूप में था। इस पहलू का सीधा सा अर्थ यह है कि एक व्यक्ति अपने जीवन की व्यक्तिगत घटनाओं को जब और जितना चाहे सार्वजनिक करे या न करे यह उसका व्यक्तिगत अधिकार है। किसी की इच्छा के बिना उसकी जीवन कथा को प्रकाशित नहीं किया जा सकता और इसी प्रकार यदि कोई अपनी जीवन कथा को सार्वजनिक करना चाहता है तो उसे रोका भी नहीं जा सकता। द्वितीय पहलू के अनुसार यह एक संवैधानिक गारण्टी है जिसमें किसी के व्यक्तिगत जीवन की घटनाओं को सरकार द्वारा गैर-कानूनी रूप से बाधित या सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इस दूसरे पहलू के अन्तर्गत समय-समय पर सरकारों द्वारा अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्दियों के फोन टेप करवाने जैसी घटनाएँ न्यायालयों के समक्ष आने लगी। किसी अस्पताल द्वारा उपचाराधीन रोगी के रोग से सम्बन्धित जानकारियों को सार्वजनिक करना भी निजता के अधिकार का उल्लंघन माना गया।
भारत में सूचना के अधिकार को लेकर पिछले एक दशक में क्रांति पैदा हुई है। इस कानून के अन्तर्गत सरकार से अनेकों प्रकार की सूचनाएँ मांगी जा सकती हैं, परन्तु निजता के अधिकार को यहाँ भी एक हथियार के रूप में मान्यता दी गई। आज पुलिस से हम किसी अपराधी के बारे में उसकी इच्छा के विरुद्ध जानकारी नहीं माँग सकते। जब सरकारी विभागों ने किसी व्यक्ति या उद्योग से सम्बन्धित जानकारी बैंक से मांगने की कोशिश की तो बैंकों ने भी इसे अपने ग्राहक की निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए इसका विरोध किया। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि किसी कानून, प्रशासनिक आदेश या न्यायालय के आदेश के अन्तर्गत मांगी गई जानकारी के सामने निजता के अधिकार का कोई महत्त्व नहीं होगा। इसके बाद निजता के अधिकार का अवाला देकर सरकारी आधार कार्ड आन्दोलन को रोकने का प्रयास किया गया क्योंकि आधार कार्ड में नागरिकों के जीवन से सम्बन्धित अनेकों जानकारियाँ समाहित थीं। केन्द्र सरकार ने आधार कार्ड अधिनियम 2016 पारित किया जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने वैद्य ठहराया, परन्तु साथ ही सभी जानकारियों को सुरक्षित रखने का सुझाव दिया।
निजता के अधिकार की जड़ें अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में न्यायिक मान्यताओं के विकास से जुड़ी हैं। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय के अन्तर्गत यह कहा कि सड़कों पर लगी तारों के माध्यम से यदि सरकार किसी के फोन को टेप करती है तो इसे सरकार का किसी के घर में घुसकर निजता का उल्लंघन करना नहीं माना जायेगा। इस निर्णय के विरुद्ध अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने ही एक जुआ खेलने के अपराधी को इसलिए आरोपमुक्त कर दिया क्योंकि उसके विरुद्ध प्रस्तुत साक्ष्य उसकी टेलीफोन वार्ता पर आधारित थे जिसे सरकार ने टेप किया था।
निजता के अधिकार को लेकर अब तक की न्यायिक यात्रा को ताक पर रखते हुए पिछले दो दशकों में इण्टरनेट सेवा उपलब्ध करवाने वाली कम्पनियों के द्वारा इस निजता के अधिकार की लगभग हत्या की जा चुकी है। आज किसी भी व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित लगभग सभी जानकारियाँ मोबाइल टेलीफोन तथा कम्प्यूटर जैसे अन्य उपकरणों के माध्यम से इन कम्पनियों के पास पहुँच चुकी हैं। निःशुल्क इण्टरनेट सेवाओं के बदले आज का मानव अपनी सारी निजता को गंवा चुका है। आज तक मोबाइल पर हमने किससे क्या बातें की है, कितने संदेश इधर से उधर भेजे गये हैं, कितनी बार हमने इण्टरनेट पर कैसी-कैसी जानकारियों का प्रयोग किया है, इण्टरनेट पर उपलब्ध कौन सी जानकारियाँ, चित्र और वीडियो आदि हमें पसन्द हैं इन सबकी पूरी सूचना सेवा देने वाली इण्टरनेट कम्पनी के पास उपलब्ध हैं। यहाँ तक की मोबाइल फोन के साथ हम किस स्थान पर खड़े हैं उसकी सूचना भी इन कम्पनियों के पास उपलब्ध है। सामान्य नागरिकों की ही नहीं अपितु हर छोटे-बड़े उद्योगपति, अपराधियों, सरकारी अधिकारियों और कलियुग के दो सूंड वाले हाथियों अर्थात् अपने आपको महाराजा समझने वाले राजनेताओं की भी यही दशा बन रही है। इतने बड़े सूचना संग्रह का प्रयोग किसी दृष्टि से भी मानवता के हित में नहीं हो रहा, अपितु यह सारा तन्त्र एक-दूसरे की लूट-खसोट और अपराधों को बढ़ाता जा रहा है। इन सेवा कम्पनियों के अतिरिक्त साइबर-क्राईम अर्थात् इण्टरनेट के माध्यम से अपराध करने वाले लोग भी इस तन्त्र में घुसपैठ करके अपराध करने में सफल हो जाते हैं।
पुलिस, सेना तथा सरकारों के अत्यन्त उच्च स्तर पर इन इण्टरनेट सेवाओं का प्रयोग केवल लाभ उठाने के लिए तो किया जाता है परन्तु गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए अपना अलग संचार तन्त्र प्रयोग किया जाता है। सामान्य नागरिक को भी जहाँ तक सम्भव हो सके अपना व्यक्तिगत संचार तन्त्र ही प्रयोग करना चाहिए। इन इण्टरनेट सेवाओं का प्रयोग केवल एक सभ्य पुस्तक की तरह ही किया जाये तो आपके निजता के अधिकार की सुरक्षा सम्भव सकेगी।

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