संपादकीयसैर सपाटा

खजुराहो के स्मारक समूह भारतीय मूर्तिकला का चर्मोत्कर्ष है

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

स्थापत्य एवं मूर्तिकला में बेमिसाल खजुराहो के मंदिरों में भारतीय शिल्प कला का असीम खजाना छुपा हुआ है। कई समूहों में स्थित है मंदिरों की अनमोल धरोहर। नागर शैली में निर्मित चंदेल शासकों की कलात्मक अभिरुचि की महान अभिव्यक्ति के उत्कृष्टतम मंदिरों का निर्माण करीब 900 ई. से 1150 ई. के मध्य माना जाता हैं। मंदिरों का महत्व इसी से प्रतिपादित होता हैं कि वर्ष 1986 ई. में यूनेस्को की विश्व विरासत में इन्हें शामिल कर विश्व धरोहर घोषित किया गया।
खजुराहो के मंदिरों को जान ने का सिलसिला हम पश्चिम मंदिर समूह परिसर से करते हैं जहाँ एक विशाल उद्यान में ऊंचे शिखर वाले अनेक मंदिर जो ऊँचे चबूतरों पर बने हैं। पिरामिड शैली में बन मंतगेश्वर सबसे प्राचीन मंदिर है जिस के गर्भगृह में करीब एक मीटर व्यास का ढाई मीटर ऊंचा शिवलिंग देखते ही बनता है। इसे 920 ई. में राजा हर्षवर्मन ने बनवाया था। समीप पंचायतन शैली के विशाल लक्ष्मण मंदिर के चारों कोनों पर एक-एक उप मंदिर बने हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर रथ पर सवार सूर्यदेव नजर आते हैं। मंदिर की बाह्य दीवारों पर असंख्य मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मूर्तियों की भाव-भंगिमाएं एवं सुंदरता देखते ही बनती है। तीन कतारों में प्रमुख मूर्तियों की श्रृंखला है। कुछ कतारें छोटी मूर्तियों की हैं। मध्य ताखों में देव प्रतिमाएं हैं। नृत्यए संगीत, युद्ध, शिकार आदि प्रतिमाओं में तत्कालीन जीवन के दर्शन होते हैं। अन्य मूर्तियों में विष्णु, शिव, अग्निदेव, गंधर्व, सुर-सुंदरी, देवदासी, तांत्रिक, पुरोहित, और काम कला की प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की त्रिमूर्ति प्रतिमा विराजित है। अंदर की दीवारों पर भी मूर्तियों का खजाना हैं। मंदिर के चबूतरे पर भी विविध विषयों के साथ सामूहिक मैंथुन की मूर्तियां अद्भुत शिल्प लिये हैं। मंदिर के सामने लक्ष्मी मंदिर एवं वराह मंदिर बने हैं।
पास में ही कंदारिया महादेव का मंदिर सभी मंदिरों से अलग है जो काम शिक्षा के लिए मशहूर है। मंदिर की बनावट और अलंकरण भी अत्यंत वैभवशाली है और मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर का प्रवेश द्वार 9 शाखाओं से युक्त है जिन पर कमल, पुष्प, नृत्यमग्न अप्सराएं तथा व्याल आदि बने हैं। सरदल पर शिव की चारमुखी प्रतिमा बनी है। इसके पास ही ब्रह्मा एवं विष्णु भी विराजमान हैं। गर्भगृह में संगमरमर का विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंडप की छतों पर भी पाषाण कला के सुंदर चित्र बने हुुुए हैं। बाह्य दीवारों पर सुर-सुंदरी नर-किन्नर, देवी-देवता व प्रेमी-युगल आदि सुंदर रूपों में अंकित हैं। मध्य की दीवारों पर कुछ अनोखे मैथुन दृश्य चित्रित हैं। एक स्थान पर ऊपर से नीचे की ओर एक क्रम में बनी तीन मूर्तियां कामसूत्र की अनुकृति कही जाती हैं। इसमें मैथुन क्रिया के आरंभ में आलिंगन व चुंबन के जरिए पूर्ण उत्तेजना प्राप्त करने का महत्व दर्शाया गया है। एक अन्य दृश्य में एक पुरुष शीर्षासन की मुद्रा में 3 स्त्रियों के साथ रतिरत नजर आता है। विशालतम मंदिर की बाह्य दीवारों पर कुल 646 मूर्तियां हैं तो अंदर भी 226 मूर्तियां जड़ी हैं। इतनी मूर्तियां शायद अन्य किसी मंदिर में नहीं हैं। सप्तरथ शैली में बना यह मंदिर सबसे विशाल करीब 117 फुट लंबा, 66 फुट चौड़ा एवं 117 फुट ऊंचा है। इस मंदिर का निर्माण राजा विद्याधर ने महमूद गजनवी को दूसरी बार परास्त करने के बाद 1065 ई. के आसपास करवाया था।
शिव को समर्पित विश्वनाथ मंदिर की सीढ़ियों के आगे दो शेर और हाथी बने हैं। मंदिरों में देव प्रतिमाएँ अष्टदिकपाल, नाग कन्याएं, अप्सराएं, राजसभा, रासलीला, विवाह, उत्सव, वीणा बजाते नायिका एवं पैर से कांटा निकलती अप्सरा आदि मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। आलों में चामुंडा, कौमारी, वैष्णवी, वराही महेश्ववरी, नटराज आदि मूर्तियां हैं। यह मंदिर 90 फुट ऊंचा और 45 फुट चैडा है। इस मंदिर का निर्माण 1002 ई. में राजा धंगदेव द्वारा करवाया गया था। प्रमुख मंदिर के सामने चैकोर मंडप में शिव के वाहन नंदी की 6 फुट ऊँची दर्शनीय प्रतिमा है। इससे पहले पार्वती का एक नवनिर्मित मंदिर है। यहां स्थित प्राचीन मंदिर खंडित हो चुका था। छतरपुर के महाराजा ने 1880 के आसपास वर्तमान मंदिर बनवाकर उसमें पार्वती की प्रतिमा की स्थापना की।

विश्वनाथ मंदिर के आगे चित्रगुप्त मंदिर सूर्यनारायण को समर्पित है। मंदिर की दीवारों पर अन्य मूर्तियों के मध्य उमा-महेश्वर, लक्ष्मी नारायण और विष्णु के विराट रूप में मूर्तियां भी हैं। जनजीवन की मूर्तियों में पाषाण ले जाते श्रमिकों की मूर्तियां मंदिर निर्माण के दौर को दर्शाती हैं। मुख्य प्रतिमाओं के मध्य व्याल व शार्दूल नामक पशुओं की प्रतिमाएं हैं जो हर मंदिर पर बनी हैं। चित्रगुप्त मंदिर की दीवारों पर नायक-नायिका को आलिंगन के विभिन्न रूपों में उत्कीर्ण किया गया है। गर्भगृह में 7 घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य की प्रतिमा विराजमान है। निकट ही हाथ में लेखनी लिए चित्रगुप्त बैठे हैं। चित्रगुप्त मंदिर से कुछ आगे जगदंबी मंदिर है। मूलत यह मंदिर विष्णु को समर्पित था लेकिन मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। छतरपुर के महाराजा ने जब इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया तब यहां जगदंबा की प्रतिमा स्थापित की गई। खंडित अवस्था में मंदिर कर प्रवेश द्वार पर एक मूर्ति में राजा चंद्रवर्मन को सिंह से लड़ते दर्शाया गया है। यह दृश्य चंदेलों का राजकीय चिह्न बन गया था।इसका निर्माण राजा घँगदेव ने 1025 ई. में करवाया था।
खजुराहो गांव से कुछ दूरी पर स्थित पूर्वी मंदिर समूह में 4 जैन तथा 3 हिन्दू मंदिर हैं। हिन्दू मंदिरों में पहला पिरामिड शैली में बना छोटा सा ब्रह्मा मंदिर है। ब्रह्मा की प्रतिमा के साथ यहां भगवान विष्णु और शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर में एक शिवलिंग भी है। ब्रह्मा मंदिर से करीब 300 मीटर की दूरी पर वामन मंदिर है। यह मंदिर 11वीं सदी के उत्तरार्द्ध में बना माना जाता है। इस मंदिर की दीवारों पर प्रेमी युगलों के कुछ आलिंगन दृश्यों को छोड़ ज्यादातर एकल प्रतिमाएं हैं। शिव.विवाह का खूबसूरत उत्कीर्ण भी यहाँ देखने को मिलता है। वामन मंदिर से थोड़ा.सा आगे चलने पर आता है जवारी मंदिर है। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उनके बैकुंठ रूप में दर्शन होते हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों की मूर्तियां में अनेक मैथुन दृश्य भी हैं।
जैन मंदिरों में घंटाई मंदिर भग्न स्थिति में है। एक मंडप के रूप में दिखने वाले इस मंदिर के स्तंभों पर घंटियों का सुंदर अलंकरण है। प्रवेश द्वार पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं जबकि गर्भगृह के द्वार पर शासन देवी चक्रेश्वरी की गरूड़ पर आरूढ़ प्रतिमा है। शेष तीनों जैन मंदिर कुछ दूर एक परिसर में स्थित हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है पार्श्वनाथ मंदिर है जिसकी बाहरी दीवारों पर तीर्थंकर प्रतिमाएं बनी हैं। इनके साथ कुबेर, द्वारपाल, गजारूढ़ या अखारूढ़ जैन शासन देवताओं का सुंदर अंकन भी है। यहां मूर्तियों की पंक्तियों में गंधर्व, किन्नर, विद्याधर शासन देवी-देवताए यक्ष मिथुन व अप्सराएं शामिल हैं। इनमें काजल लगाती नायिका तथा शिशु पर वात्सल्य छलकाती माता की मूर्तियां मोहक हैं। मंदिर के तोरण में तीर्थंकर माता के 16 स्वप्नों का सुंदर चित्रण है और गर्भगृह में आदिनाथजी की प्रतिमाये हैं। मंदिर का निर्माण राजा घंगदेव के समय एक नगर सेठ ने करवाया था।
दक्षिणी मंदिर समूह में दूल्हादेव मंदिर शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग पर शहत्रमुखी छोटे-छोटे शिवलिंग बने हैं। यह 12वीं शताब्दी में निर्मित चंदेल राजाओं की अंतिम धरोहर है। दूल्हादेव मंदिर से कुछ दूर चतुर्भुज मंदिर एक साधारण चबूतरे पर बना है। इस मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियों में दिग्पाल, अष्टवसु, अप्सराएं और व्याल प्रमुख हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिव की सौम्य प्रतिमा है।
पश्चिमी मंदिर समूह के विपरीत स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में शैव, वैष्णव, जैन और अन्य प्रतिमाओं का विशाल संग्रह देखा जा सकता है। इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखे चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है। संग्रहालय में चार पैरों वाले शिव की भी एक सुन्दर मूर्ति है। जैन संग्रहालय में लगभग 100 जैन मूर्तियां हैं। ट्राईबल और फॉक के राज्य संग्रहालय में जनजाति समूहों द्वारा निर्मित पक्की मिट्टी की कलाकृतियां, धातु शिल्प, लकड़ी शिल्पए पेंटिंग, आभूषण, मुखौटों और टेटुओं को दर्शाया गया है। शाम को पश्चिम मंदिर समूह परिसर में प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम प्रद्रर्शित किया जाता हैै जो यहां के इतिहास को जीवंत कर देता है। खजुराहो के कार्यक्रम में इन्हें भी जरूर देखें। ऊँचे मंदिरों को शिखर तक आनन्द लेने के लिए बाइस्कोप जरूर ले जावें। खजुराहो गावँ के अनेक धरों में मूर्तियां बनाते कारीगर देखे जा सकते हैं। पूरा गावँ ही शिल्प बाजार का दृश्य उपस्थित करता है।
वर्षभर कभी भी यहां आया जा सकता है परन्तु अक्टूबर से मार्च का समय अधिक अनुकूल है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का खजुराहो, दिल्ली,वाराणसी,आगरा एवं काठमांडू से हवाई सेवा से जुड़ा है और खजुराहो रेलवेस्टेशन दिल्ली, आगरा, जयपुर, वारणसी, उदयपुर, भोपाल, इंदौर, उज्जैन के लिये रेल सेवा उपलब्ध है। देश के कई प्रमुख शहरों से बस सेवा उपलब्ध है। ठहरने व भोजन के लिये हर बजट के होटल हैं।

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