संपादकीय

अमेरिका की अदालतों में भी श्वेत-अश्वेत विवाद

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट)

अमेरिका में जाॅर्ज फ्लायड नामक अश्वेत व्यक्ति को एक श्वेत पुलिसकर्मी के द्वारा मारे जाने का वीडियो वायरल होते ही अमेरिकन पुलिस के विरुद्ध अमेरिका के सभी प्रान्तों में विरोध प्रदर्शन प्रारम्भ हो गये। वीडियो में पुलिसकर्मी ने जाॅर्ज का गला अपने घुटने के बल पर लगभग 9 मिनट तक दबाये रखा। जाॅर्ज प्लीज, प्लीज, प्लीज कहता रहा। उसकी यह आवाज भी सुनने में आई कि ‘मैं सांस नहीं ले सकता।’ दर्शक बने लोग वीडियो बनाते रहे और कुछ स्वयं को बहादुर समझने वाले लोग पुलिसकर्मी से प्रार्थना करते रहे कि उसे छोड़ दे। परन्तु इतना बहादुर कोई भी नहीं था कि पुलिसकर्मी को धक्का मारकर एक निर्दोष व्यक्ति की जान बचा लेता। यह आधुनिक, अमीर, पढ़े-लिखे तथा विकसित समाज में दिन दहाड़े घटित होने वाला रंगभेद पर आधारित हत्याकाण्ड माना जा रहा है। अमेरिका से आने वाली खबरों के अनुसार 1877 से अश्वेत लोगों की हत्याओं का यह सिलसिला हजारों लोगों की जान ले चुका है। अभी कुछ ही सप्ताह पहले लुईस विली में 26 वर्षीय अश्वेत महिला ब्रियोना टेलर को गोली मार दी गई थी। आधी रात को उसके घर पर हमला करके यह हत्याकाण्ड किया गया था। अमेरिका में घटित होने वाली ऐसी घटनाओं पर हर बार सारे विश्व में शोर मचता है, हजारों लोग प्रदर्शन करते हैं और न्याय की माँग करते हैं, परन्तु वास्तविकता इस देश के उस इतिहास की तरफ इशारा करती है जब किसी जमाने में इन अश्वेत लोगों को गुलाम बनाकर श्वेत लोग रखते थे। सम्भवतः वही मानसिकता आज भी किसी-किसी व्यक्ति में उभर आती होगी।
इस घटना के बाद चार पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही प्रारम्भ की गई। उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया जबकि इससे पहले अनेकों घटनाओं में पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कभी कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई थी। कोरोना महामारी से जूझते अमेरिका में एक तरफ लाॅकडाउन से उत्पन्न अव्यवस्थाओं तथा फैलती महामारी के विरुद्ध व्यापक प्रदर्शन चल रहे हैं तो दूसरी तरफ इस अश्वेत नागरिक की पुलिस द्वारा हत्या के विरुद्ध प्रदर्शनों ने आग में घी का काम किया। इसलिए मजबूरी में अमेरिका सरकार ने इन चार पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही कर दिखाई। वैसे सैद्धान्तिक रूप से अमेरिका का पुलिस विभाग सरकार के ऊपर प्रभावशाली हैसियत रखता है।
मिशेल थाॅमस फ्लिन अमेरिकन मिलिट्री के सेवानिवृत्त लेफ्टीनेंट जनरल हैं। जिन्हें ट्रम्प ने सत्ता संभालने के पहले 22 दिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार बनाकर रखा था। फ्लिन की भूमिका अमेरिका में आतंकवाद से लड़ने के विरुद्ध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। फ्लिन पर अगस्त, 2014 में सेवा से त्याग पत्र देने का दबाव बनाया गया। मिलिट्री छोड़ने के बाद फ्लिन ने अनेकों उद्योगों तथा सरकारों को सुरक्षा सलाहाकार की सेवाएँ प्रदान करना प्रारम्भ कर दी। फ्लिन पर विदेशी एजेण्ट होने का मुकदमा चलाया गया। वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में वे ट्रम्प के सलाहकार थे। 22 जनवरी, 2017 को उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार बनाया गया। जबकि 13 फरवरी, 2017 को उन्हें त्याग पत्र देना पड़ा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार के रूप में उनका यह सबसे छोटा कार्यकाल था। फ्लिन ने पहले अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार कर लिया परन्तु जनवरी, 2020 में उन्होंने इस स्वीकारोक्ति से भी इन्कार कर दिया। मई, 2020 में अमेरिका के न्याय विभाग ने अदालत के सामने एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जिसमें फ्लिन के विरुद्ध सभी आरोप समाप्त करने की बात कही गई। यह मामला अमेरिका के एक जिला न्यायाधीश इमेट सुलिवियन के पास था जिसे सरकार के कहे अनुसार इस मुकदमें को समाप्त कर देना चाहिए था। यह न्यायाधीश इमेट सुलिवियन एक अश्वेत हैं जिन्हें बराक ओबामा ने न्यायाधीश नियुक्त किया था। न्यायालय के सामने अब प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि क्या सरकार के कहने पर किसी पुलिस अधिकारी के विरुद्ध लगे आरोप और मुकदमेंबाजी समाप्त करनी ही होगी।
एक तरफ सरकार का कहना है कि यदि सरकार किसी केस को वापस लेना चाहती है तो अदालत उस केस को चलाये रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकती, यदि सरकार के इस कदम के पीछे कोई असंवैधानिक उद्देश्य न हो। न्यायाधीश सुलिवियन ने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जाॅन ग्लीसन को सरकार के इस प्रयास का विरोध करने के लिए नियुक्त किया है। अदालत द्वारा सहायता के लिए नियुक्त इस पूर्व न्यायाधीश ने भी अपनी बहस में यह कहा कि फ्लिन के विरुद्ध चल रहे मामले वापस लेने की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि वह राष्ट्रपति ट्रम्प का राजनीतिक सहयोगी है। अमेरिका में अब यह मुकदमा भी श्वेत-अश्वेत विवादों के साथ जुड़ गया है। फ्लिन के विरुद्ध मुकदमा वापस लेने के प्रयास को भी अमेरिका सरकार की श्वेत समर्थक मानसिकता कहा जा रहा है जो अपने एक श्वेत अधिकारी पर मुकदमा चलते हुए नहीं देखना चाहती। फ्लिन के विरुद्ध लगे आरोपों में एक आरोप यह भी है कि उन्होंने अपने एक अश्वेत सहयोगी के साथ मारपीट की और अपनी ताकत का प्रयोग किया। बेशक इस विवाद की अन्तिम परिणति यही होगी कि फ्लिन के विरुद्ध मुकदमेबाजी समाप्त होनी ही है, क्योंकि कोई भी ताकत सरकार को मुकदमा चलाने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। स्वयं न्यायाधीश का भी यही कहना है, परन्तु वे सरकार पर पुर्नविचार के लिए दबाव बनाना चाहते हैं। वैसे किसी भी विवाद में पूर्व निर्णय दोनों प्रकार के मिलते हैं। अदालतों के पास यह अधिकार होता है कि वे किसी मुकदमें को वापस लेने की अनुमति से इन्कार कर दे। जैसे किसी रिश्वत के आरोपी द्वारा अपना अपराध स्वीकार कर लेने के बाद सरकार उस मुकदमें को वापस नहीं ले सकती। फ्लिन का केस भी कुछ ऐसा ही है जिसने अपने विरुद्ध लगे सभी आरोप स्वीकार कर लिये थे परन्तु अन्तर इतना है कि बाद में उसने उस स्वीकृति से भी इन्कार कर दिया था। अब देखना यह है कि फ्लिन के विवाद में भी प्रभावशाली श्वेत मानसिकता जीतती है या जाॅर्ज का गला घोटने से उत्पन्न विरोध को देखते हुए सरकार स्वयं ही फ्लिन मामले को भी श्वेत-अश्वेत विवाद का रूप लेने से रोक पायेगी।

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