शिक्षा

इन्सटीट्यूट फाॅर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेन्ट ने मनाया अपना स्थापना दिवस

नई दिल्ली। दिल्ली स्थित शोध संस्थान इन्सटीट्यूट फाॅर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेन्ट (ISID), जो भारत में ओद्यौगिकीकरण से जुड़े मुद्दों पर अध्ययन में विशेषज्ञता रखता है, ने आज अपना 31वां स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर भारत सरकार में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डाॅ राजीव कुमार ने इण्डियन इकोनोमी आॅन द कस्प आॅफ चेंज विषय पर भाषण दिया, उन्होंने विषय से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया। उनके इस व्याख्यान में प्रतिष्ठित विद्वानों, नीति निर्माताओं, जाने-माने दिग्गजों, विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों के शोधकर्ताओं और फैकल्टी सदस्यों तथा मीडियाकर्मियों ने हिस्सा लिया।
आईएसआईडी के चेयरमैन तथा कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री टी एन चतुर्वेदी ने सत्र का उद्घाटन किया। मंच पर मौजूद पैनल में शामिल थे- प्रोफेसर वी के मल्होत्रा, सदस्य सचिव, इण्डियन काउन्सिल आॅफ साइन्स एण्ड रीसर्च, मानव संसाधन मंत्रालयय प्रोफेसर एस के गोयल, वाईस चेयरमैन आईएसआईडी और प्रोफेसर एम आर मूर्ति, डायरेक्टर, आईएसआईडी।
डाॅ राजीव कुमार ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न मौलिक पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए, उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए विकास की भावी संभावनाओं पर रोशनी डाली। उन्होंने दस ऐसे कारकों के बारे में बताया जो भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव ला रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले चार सालों के दौरान जीएसटी, ईज आॅफ डूइंग बिजनेस, इन्साॅल्वेन्सी एण्ड बैंकरप्टसी कोड और रेरा प्रमुख नीतिगत बदलाव रहे हैं, जिनकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तेजी आई है।
स्टील, सीमेंट ओर एचसीवी के अच्छे विकास पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अब सिर्फ उपभोग उन्मुख मांग ही नहीं बल्कि निवेश उन्मुख मांग भी जोर पकड़ रही है। मेरा विश्वास है कि भारत 2018-19 में 7.5 फीसदी की दर से विकसित होगा। भरतीय अर्थव्यवस्था जो वर्तमान में 2.5 ट्रिलियाॅन डाॅलर के आंकड़े पर है, वह 2022-23 तक 4 ट्रिलियाॅन डाॅलर तक पहुंच जाएगी।’’
निर्यात की बात करते हुए उन्होंने कहा कि निर्यातकों को प्रोत्साहन देने के बजाए देश को नीतिगत एवं भौतिक रूप से जरूरी बुनियादी संरचना का निर्माण करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘निर्यात इस देश में सरकार का कारोबार बन जाना चाहिए।’’ उल्लेखनीय है कि ईज आॅफ डूइंग बिजनेस की सूची में भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत काम करना बाकी है और नीति आयोग विभिन्न राज्यों के कारोबारियों की अवधारणाओं को समझने का प्रयास कर रहा है, ताकि जमीनी स्तर पर वास्तविक सुधार को बढ़ावा दिया जा सके।’’
इन्साॅल्वेन्सी एण्ड बैंकरप्टसी कोड पर बात करते हुए डाॅ कुमार ने सरकार की भूमिका पर रोशनी डाली, जो निजी क्षेत्र में जवाबदेहिता को सुनिश्चित कर भारतीय पूंजीवाद के एक नए युग को जन्म दे सकती है। उन्होंने कहा कि देश के कारोबारियों को जवाबदेह बनाना जरूरी है। इसी तरह बिल्डर ‘अपराध करके साफ-साफ बच नहीं सकते।’’ रेरा के बाद आ रहे बदलावों के बारे बात करते हुए उन्होंने कहा कि बड़ी रिएल्टी कंपनियां जैसे डीएलएफ, हीरानंदानी और रहेजा ने उदाहरण प्रस्तुत किए हैं और अफाॅर्डेबल हाउसिंग पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। उन्होंने सरकार द्वारा अपनाए जा रहे विकासशील माॅडल पर विचार रखते हुए अपनी बात समाप्त की। उन्होंने कहा कि यह माॅडल भ्रष्टाचार से लिप्त राज्यों को विकास-उन्मुख राज्यों में बदलकर स्थायी आर्थिक विकास की शुरूआत करेगा।
संस्थान के स्थापना दिवस के मौकेे पर जाने माने अकादमिकज्ञ, नेता एवं प्रशासक तत्कालीन नीतियों के प्रासंगिक विषयों पर विशेष व्याख्यान देते आए हैं। अतीत में इस दिवस पर डाॅ मनमोहन सिंह, प्रोफेसर सीएच. हनुमंथा राव, श्री मोहन धारिया, प्रोफेसर जी.एस. भल्ला, प्रोफेसर टी.एस. पपोला, प्रोफेसर आर राधाकृष्णन, श्री यशवंत सिन्हा, डाॅ यश टंडन जैसे दिग्गज अपने व्याख्यान दे चुके हैं।
1 मई 2007 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने भारतीय ओद्यौगिक रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा ‘‘क्या हम घोर पूंजीवाद को बढ़ावा दे रहे हैं? क्या यह आधुनिक पूंजीवाद के विकास में जरूरी किंतु क्षणिक अवस्था है? क्या हम घोर पूंजीवाद के परिणामों से उपभोक्ताओं एवं छोटे कारोबारों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं?’’ पिछले साल श्री नितिन देसाई, पूर्व- अधस्थ-महासचिव, यूएन-ईएसए ने ‘प्रतिस्पर्धी नीति’ पर विचार रखे। इससे पहले भी प्रवक्ता कई महत्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान दे चुके हैं जैसे राज्य स्तर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सार्वजनिक निजी सहभागिता ग्लोबल बैंकिंग तथा विश्वस्तरीय बदलाव के नए कारक।

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