शिक्षा

गुरु नानक पब्लिक स्कूल राजौरी गार्डन में मनाया गया गणतंत्रता दिवस समारोह

दिल्ली। गुरु नानक पब्लिक स्कूल राजौरी गार्डन में गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय त्योहार बहुत धूमधाम से आयोजित किया गया। इस अवसर पर विद्यालय के पूर्व छात्र भी अतिथि के रूप में विशेष रूप से आमंत्रित थे। कार्यक्रम का आरंभ विद्यालय के प्रधान सरदार हरमनजीत सिंह जी, मैनेजर एस जे एस सोडी, चेयरमैन स.सुंदर सिंह नारंग, डॉक्टर मनप्रीत सिंह, सरदार त्रिलोचन सिंह जी तथा प्रधानाचार्य डॉ एसएस मिन्हास द्वाराभारतीय ध्वजा रोहन के साथ किया गया। तत्पश्चात विद्यालय के स्पेशल दिव्यांग छात्रों ने नृत्य द्वारा अपने भाव प्रस्तुत किए। दसवीं डी की अश्मित कौर के जोशीले भाषण ने सभी छात्रों में देशभक्ति की उमंग भर दी। विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ मिन्हास ने उपस्थित अध्यापक गण, अभिभावक गण, अतिथियों, रंगारंग कार्यक्रम के प्रतिभागी छात्रों, को इस शुभ अवसर को मनाने के लिए शुभकामनाएं दी की उन्हें यहां पर एकत्रित होकर यह सुअवसर एक साथ मनाने का अवसर मिला है। उन्होंने तिरंगे के महत्व को बताते हुए कहा कि यह एक छोटा कपड़ा ही नहीं अपितु इसमें महान संदेश विद्यमान है। यह किसी विशेष जाति वर्ग का नहीं अपितु भारतीयों के गौरव का झंडा है।
छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि 87ः से भी अधिक सिख तथा पंजाबी स्वतंत्रता संग्रामी थे। तथा सिंगस के नाम पर सिंगापुर का नाम पड़ा है। सिंगापुर में सरदारों छोटी-छोटी सी मूर्तियां बनाई जाती है जो सरदारों की वीरता का प्रतीक है और उनके संरक्षक बनने के भाव को दर्शाती हैं। वे सर्वप्रथम किसी की भी सहायता या रक्षा के लिए आगे बढ़ते हैं। विद्यालय के चेयरमैन सरदार सुंदर सिंह नारंग ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें अपने मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्य को कभी नहीं बुलाना चाहिए और देश के सु सभ्य तथा सुशिक्षित नागरिक बनकर अध्यात्म जीवन के रास्ते पर बढ़ते हुए शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित होना चाहिए। कार्यक्रम को पुरस्कार वितरण समारोह ने आगे बढ़ाया, लोक नृत्य गिद्दा तथा भांगड़े के साथ रंगारंग कार्यक्रम को इतनी प्रदान की गई।
विद्यालय में आयोजित ‘क्रिएटिका’ आज का अन्य आकर्षक विषय रहा जिसमें छात्रों ने अपनी योग्यता और कलात्मक प्रतिभा के आधार पर अध्यापिकाओं तथा अपने अभिभावकों की सहायता से एग्जिबिशन लगाई थी। विद्यालय के छात्रों में उत्साह और उमंग देखते ही बनता था।

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