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शरीर नष्ट हो जाएगा मगर जिंदा रहेंगे चेहरे हमेशा

फिल्म का नाम : चेहरे
फिल्म के कलाकार : अमिताभ बच्चन, अन्नू कपूर, इमरान हाशमी, रिया चक्रवर्ती, क्रिस्टल डिसूजा, समीर सोनी, धृतिमान चटर्जी , रघुबीर यादव
फिल्म के निर्देशक : रूमी जाफरी
फिल्म की अवधि : 2 घंटा 19 मिनट
रेटिंग : 3/5

निर्देशक रूमी जाफरी के निर्देशन में बनी रहस्य और रोमांचक फिल्म ‘चेहरे’ 27 अगस्त को रिलीज़ के लिए पूरी तरह से तैयार है। फिल्म के ट्रेलर को देखकर लोगों में इसे देखने की काफी उत्सुकता है। कोरोना के बाद बडे़ पर्दे पर रिलीज़ होने वाली बड़े बजट की यह दूसरी हिन्दी फिल्म है। कैसी बनी है फिल्म जानते हैं।-

फिल्म की कहानी :

कहानी की शुरूआत बिग के चेहरे के उपर कुछ पंक्तियों या शायरी से की जाती है जैसे शरीर नष्ट हो जाएगा मगर जिंदा रहेंगे चेहरे हमेशा।
पहाड़ों के बीच बसे शहर के एक घर में रिटायर क्रिमिनल लॉयर लतीफ जैदी (बिग बी) अपने रिटायर दोस्तों के साथ मिलकर हमेशा खेल खेलता है, यह खेल किसी क्रिमिनल केस का मॉक ट्रायल होता है, जिसमें प्रॉसीक्यूशन के वकील के रूप में परमजीत सिंह भुल्लर (अन्नू कपूर) दिखते हंै। डिफेंस लॉयर के रूप में लतीफ जैदी हैं। जज की कुर्सी पर जस्टिस जगदीश आचार्य (धृतिमान चटर्जी) और चैथा हरिया जाटव (रघुबीर यादव) जो जुर्म साबित होने पर मुजरिम को फांसी लगाने का काम करता है। ये चारों बुजुर्ग दोस्त हमेशा किसी अजनबी के आने का इंतजार करते हैं तकि अजनबी पर क्रिमिनल केस का मॉक ट्रायल करके उसे अंजाम तक पहुंचा सकें। लतीफ जैदी हमेशा कहता है, कि ‘‘हमारी अदालतों में जस्टिस नहीं जजमेंट होता है, इंसाफ नहीं फैसला होता है।’’
मनाली की भीषण बर्फबारी में एक एड एजेंसी का सीईओ समीर मेहरा (इमरान हाशमी) तूफानी मौसम में करोड़ों की डील करने के लिए दिल्ली की तरफ जा रहा होता है और शॉर्टकट लेने के चक्कर में वह बंद रास्ते से गुजरता है और गाड़ी के आगे पेड़ गिरने की वजह से फंस जाता है इस वजह से उसका आगे जाना नामुमकिन सा हो जाता है। उसी वक्त उसका परिचय परमजीत सिंह भुल्लर से होता है जो उसे अपने दोस्तों के घर में लेकर आता है। बुजुर्ग दोस्तों की यह चैकड़ी हंसमुख और स्मार्ट अजनबी समीर को इस खेल में हिस्सा लेने के लिए काफी दबाव डालते हैं। अंत में समीर भी खेल को खेलने के लिए तैयार हो जाता है। पहले से समीर इस खेल को हंसी मज़ाक में लेते हुए टाइम पास के लिए खेलने वाले समीर को जरा भी अंदाजा नहीं होता कि वो खेल को खेलते हुए फंस जाएगा। बातों ही बातों में के समीर मेहरा से पूछा जाता है कि क्या उसने कभी कोई अपराध किया है। समीर पहले तो बिल्कुल ही मना कर देता है कि उसने कभी भी कोई गलत काम नहीं किया। फिर बार-बार पूछने पर वह बताता है कि कुछ समय पहले उसके पूर्व बॉस ओसवाल (समीर सोनी) की मौत हो गई। वह खड़ूस टाइप आदमी था, उसकी जगह ही कंपनी में समीर को प्रोमोशन मिला और उंची पोस्ट मिली।
समीर पर मुकद्मे का माॅक ट्रायल चलता है, अदालत की कार्यवाही चलाई जाती है और मेहरा की बातों के बीच जैदी के तर्कों की रोशनी में दिखने लगता है कि समीर की हत्या हुई है।और जब तक उसे पता चलता है कि कहीं न कहीं उसका जुर्म साबित हो जाएगा और उसे सज़ा मिलेगी तो वो वहां से कैसे भी भागना चाहता है………. क्या समीर को खेल के अंत में सज़ा होती है या वो भागने में कामयाब होता है………आगे कि कहानी को जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

कैसी बनी है फिल्म ? :

फिल्म की शुरूआत अच्छी थी, शुरूआत से ही सस्पेंस बना रहता है। मध्यांतर तक फिल्म में सिवाय डायलॉगबाजी और शायरी के कुछ खास नहीं घटता। षुरूआत से कहानी एक घर में ही 5 लोगों के बीच चलती रहती है। फिल्म के दूसरे भाग में जब इमरान हाशमी पर मॉक ट्रायल शुरू किया जाता है, तो कहानी रफ्तार पकड़ती है और फिल्म की आगे की कहानी को जानने की उत्सुकता भी थोड़ी बढ़ती है। अंत तक आते-आते फिल्म में कई सवालों के जवाब नहीं मिलते। फिल्म में दिखाए गए बर्फीले लोकेशन काफी मनमोहक दिखते हैं।

फिल्म में संवाद अदायगी काफी अच्छे से पेश की है। तर्क-वितर्क में बिग बी और अनु कपूर का अंदाज़ काबिले तारीफ है। इमरान हाशमी ने सीरियल किस्सर की भूमिका से निकल कर अलग करने की कोशिश की है। रघुवीर यादव, धृतिमान चटर्जी के रोल रोचक हैं। रिया चक्रवर्ती को ज़्यादा बड़ा रोल नहीं दिया गया है लेकिन ठीक है। समीर सोनी का रोल बहुत छोटा है। ग्रे शेड में क्रिस्टल डिसूज़ा का रोल अच्छा है।

फिल्म क्यों देखें ? :

यदि आप भी सस्पेंस, थ्रिलर और मिस्ट्री ड्रामा देखने के शौकीन हैं तो आप इसे देख सकते हैं

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