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राष्ट्रीय संग्रहालय ने ब्रेल लिपि, आॅडियो गाइड और स्पर्श मार्ग के जरिये दृष्टिबाधितों के लिए प्रदर्शनी को बाधा मुक्त बनाया

नई दिल्ली। वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित एक भव्य अंतरमहाद्वीप प्रदर्शनी न सिर्फ प्राचीन कलाकृतियों के आकर्षक प्रदर्शन के लिहाज से मनमोहक और सबसे जुदा है, बल्कि यहां प्रदर्शित वस्तुओं की एक और विशेषता है कि इन्हें दृष्टिबाधित लोग भी छूकर महसूस कर सकते हैं। यह एक ऐसी नई परंपरा की शुरुआत है जो देश में संग्रहालय देखने की उत्सुकता को अधिक स्वागतयोग्य, समावेशी और बाधारहित अनुभव प्रदान करती है।
नौ-गैलरी वाली ‘इंडिया एंड द वर्ल्ड : अ हिस्ट्री इन नाइन स्टोरीज’ प्रदर्शनी राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, ब्रिटिश म्यूजियम, लंदन, छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय (सीएसएमवीएस), मुंबई के बीच अभूतपूर्व साझेदारी से शुरू की गई है। इसमें तकरीबन 20 निजी संग्रहों को भी शामिल किया गया है जहां विश्व की असाधारण कलाकृतियों से लेकर वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय सभ्यता की झलकियों को जगह दी गई है। कुल मिलाकर इसमें भारतीय उपमहाद्वीप की 104 प्रतिष्ठित कलाकृतियों के साथ ब्रिटिश म्यूजियम की 124 उत्कृष्ट कृतियों को रखा गया है।
दृष्टिबाधित व्यक्तियों को कई स्तरीय स्पर्श अनुभव प्रदान करते हुए राष्ट्रीय संग्रहालय ने इन बेशकीमती कृतियों में से 18 कृतियों को स्पर्श योग्य बनाने के लिए एक्सेस फाॅर आॅल, रेडियो मिर्ची और दिल्ली आर्ट गैलरी (डीएजी) के साथ भागीदारी की है। यहां प्रदर्शनी के लिए रखी गई वस्तुओं में से कई कृतियां पहली बार भारत में प्रदर्शित की जा रही हैं। इनमें भारतीय संविधान की मूल प्रति, जहांगीर के हाथ में वर्जिन मैरी दिखाने वाला पोट्र्रेट, हड़प्पा काल में धातु से बने कुबड़े बैल की कृति, रोमन और चीनी सिक्के (20 सेमी व्यास वाले), चरखा का 3डी माॅडल और अनिष्टकारी राहु ग्रह की पेंटिंग आदि शामिल हैं।
एक्सेस फाॅर आॅल में एक्सेस कंसल्टेंट सिद्धांत शाह ने कहा कि ये सभी वस्तुएं इनके ऐतिहासिक महत्व और प्रभाव को ध्यान में रखते हुए चुनी गई हैं ताकि दृष्टिबाधित व्यक्ति भी इन्हें महसूस कर सकें।
उन्होंने कहा, “इसलिए हमने संपूर्ण भारतीय संविधान को भी बे्रल लिपि में ही तैयार किया है ताकि दृष्टिबाधित व्यक्ति इसके तथ्यों को पढ़ और समझ सके… मेरी टीम को ब्रेल की छपाई कराने में तीन महीने लगे। इसी तरह चरखे का स्पर्श योग्य माॅडल महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े आचरण का वास्तविक अहसास कराता है। हमने तिरंगे पर इसकी मौजूदगी का महत्व और इससे जुड़ी गाथाओं के जरिये आत्मनिर्भरता के बारे में भी बताने की कोशिश की है।”
छूकर महसूस की जाने वाली सभी वस्तुओं के साथ एक आॅडियो गाइड, ब्रेल बुकलेट और लेबल भी मौजूद हैं और दृष्टिबाधित मेहमानों की निर्बाध गतिविधि के लिए फर्श पर विशेष प्रकार के टाइल्स भी लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, “यह विचार उन्हें आॅडियो गाइड और छूकर महसूस करने योग्य रास्तों का इस्तेमाल करते हुए स्वतंत्र रखने के उद्देश्य से लाया गया है ताकि वे हमारी तरह ही तय कर सकें कि वे किन चीजों को छूना, महसूस करना और जानना चाहते हैं। कोई भी विजिटर इन वस्तुओं को छू सकता है, चाहे वह दृष्टिबाधित न भी हो।”
भारत के विश्व धरोहर क्षेत्रों को निशक्तजनों के अनुकूल बनाने के लिए धरोहर वास्तुकार एवं डिजाइन कंसल्टेंट शाह ने कहा, “स्पर्श के जरिये व्याख्या करने योग्य बनाने के लिए कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। 3डी व्याख्या के लिए इन वस्तुओं को ब्रेल लेबलिंग के बाद नक्काशी या गढ़कर पेश किया गया है ताकि दृष्टिबाधित मेहमानों के लिए उन्हें समझना आसान हो सके। हमने इन वस्तुआं को किफायती तरीके से ढाला है क्योंकि 3डी प्रिंटिंग और लेजर रूटिंग बहुत महंगे होते हैं।”
राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डाॅ. बी आर मणि ने कहा कि यह देश की प्रमुख प्रदर्शनियों में से एक है जहां आप कई सारी वस्तुओं को छूकर समझ सकते हैं, स्पर्श योग्य फर्श बनी हुई, ब्रेक पुस्तकें और आॅडियो गाइड हैं और ये सब चीजें विशेष तौर पर दृष्टिबाधित मेहमानों के लिए तैयार की गई हैं।
उन्होंने कहा, “दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए संग्रहालय का दौरा परेशानी में डालने वाला नहीं होना चाहिए। बहुत सारे लोग संग्रहालय में चीजों को देखकर आनंद उठाते हैं लेकिन सहायक तकनीकों की मदद से दृष्टिबाधित भी यहां आकर सुखद पा सकते हैं। हम समझते हैं कि सामान्य जनों की तरह निःशक्तजन भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं और कलात्मक वस्तुओं को स्पर्श योग्य बनाना ही उन्हें समझाने का जरिया हो सकता है।”
ब्रिटेन, ग्रीस और अन्य यूरोपीय देशों के प्रमुख संग्रहालय अपनी प्रदर्शनियों में बहुत सारी वस्तुओं को स्पर्श कर महसूस करने योग्य बनाने की कोशिश करते हैं। डाॅ. मणि बताते हैं कि दर्शकों की तादाद बढ़ाने के लिए संग्रहालय को एक ढांचागत प्रणाली में तब्दील करने की जरूरत है और निःशक्तजनों की अधिक से अधिक भागीदारी इसी दिशा में बढ़ाया गया कदम है।
इस संग्रहालय ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों के फायदे के लिए ‘अनुभव- एक टेक्टाइल गैलरी’ तैयार कर लिया है।
संग्रहालय के शिक्षा विभाग ने प्रदर्शनी के तहत दृष्टिबाधितों और सामान्यजनों की भागीदारी से जागरूकता बढ़ाने वाली कई कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना बनाई है। इनमें से कुछ कार्यक्रम हैंः करेंसी डिजाइन, ब्लाइंडफोल्ड फोटोग्राफी, बिल्ड ए मोन्युमेंटध्पैलेस और क्ले माॅल्डिंग।
राष्ट्रीय संग्रहालय की मुहिम का प्रबंधन करने वाली यहां की शिक्षा अधिकारी रिगे शिबा ने कहा कि संग्रहालय सभी व्यक्तियों तक अपने संग्रह की पहुंच बनाने के लिए एक छोटा सा प्रयास कर रहा है और अस्थायी प्रदर्शनियां इसके अपवाद नहीं हैं। उन्होंने कहा, “पहली बार इतनी सारी विशेषताओं की बदौलत हम उम्मीद करते हैं कि यह प्रदर्शनी देश के कई परंपरागत संग्रहालयों को प्रयोग करने तथा समय के साथ बदलने के लिए प्रेरित करेगी ताकि इन स्थानों पर दिखाई जा रही हमारी समृद्ध विरासत तक हर किसी की पहुंच संभव हो सके।”
केरल से आए दृष्टिबाधित जिजेश ने कहा कि यह प्रदर्शनी निर्बाध और दिलचस्प अनुभव के लिए पूरी तरह से प्रबंधित है। यह लोगों को प्राचीन काल के भारत का इतिहास, यहां के रीति-रिवाज और शेष दुनिया से इसके संबंधों के बारे में जानने में मदद करेगी।
जिजेश केरल सरकार में नौकरी कर चुके हैं और अमेरिका के सिलिकाॅन वैली में सहयोगी तकनीकी संस्था स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने कहा, “संग्रहालय में मेरा अनुभव शानदार तथा शिक्षाप्रद रहा। यहां आने वाले आगंतुकों के लिए कलाकृतियों को छूकर महसूस करने के संवेदी अवसर यादगार हैं। मैं रोमन, सैसेनियन और चीनी सिक्कों के स्पर्श योग्य नमूनों से विशेष तौर पर प्रभावित हुआ। प्रदर्शनी की कार्यशालाएं भी दिलचस्प हैं और बच्चे इसे खास तौर पर खूब पसंद करेंगे।”
यह प्रदर्शनी 30 जून तक सोमवार और सरकारी अवकाश वाले दिनों को छोड़कर सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक चलेगी।

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