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26 से 29 अप्रैल होगा विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन का आयोजन

नई दिल्ली। 15 वें विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन नई दिल्ली में 26 से 29 अप्रैल के बीच आयोजित किया जाएगा। इस चार दिवसीय सम्मेलन में 40 से अधिक देशों से हजारों की संख्या में प्रतिनिधि और चिकित्सा जगत के लोग शिरकत करेंगे। वैश्विक गैर-लाभकारी पेशेवर संगठन वल्र्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फैमिली डॉक्टर्स (वोन्का) के ग्रामीण क्षेत्र के अध्यक्ष डॉ. जॉन वायने के अनुसार, ‘यह एक ऐसी पहल है, जिसमें ग्रामीण और प्राथमिक स्वास्थ्य में दिलचस्प सुधार के साथ सभी तरह की पृष्ठभूमि वाले प्रशिक्षु और पेशेवर शामिल होंगे। वैश्विक स्तर पर शहरी-ग्रामीण में यह आज भी सतत रूप से बना हुआ है, जिससे राष्ट्र स्तर पर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है। इस वार्षिक सम्मेलन की पृष्ठभूमि वर्ष 2030 में सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति यानी एसडीजी3 को पाने की आकांक्षा पर आधारित है। इसके तहत स्वास्थ्य का लक्ष्य ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में सभी आयुवर्गों में स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करना और बेहतरी को बढ़ावा देना रखा गया है।’
कार्यक्रम के तहत आयोजित कार्यशालाओं में प्राथमिक ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल संबंधी ढांचे में सुधार लाने के लिए रणनीतियां बनाई जाएंगी। इसके तहत चिकित्सा जगत के प्रतिनिधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देने के लिए रोजाना भ्रमण पर ले जाया जाएगा और वैज्ञानिक कार्यक्रमों पर चर्चा कराई जाएगी। एएफपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कार्यक्रम के आयोजन अध्यक्ष डॉ. रमन कुमार के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य के ढांचे में सुधार की जरूरत एक चिंता का विषय है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही देश में स्वास्थ्य के स्तर को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार को भी अनुसंधानों को कराने में रुचि दिखानी चाहिए। देश की 70 फीसदी से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है। संपूर्ण जनसंख्या के स्वास्थ्य स्तर को सुधारने व विकसित करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बुनियादी ढांचे में आवश्यक संशोधनों की जरूरत है। दूसरे विकसित देशों से तुलना करें तो हम पाएंगे कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर कम ध्यान दिया जाता है। एक ओर जहां, यूएस, यूके जैसे देशों में उनकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का करीब 15 फीसदी भाग स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, वहीं भारत में जीडीपी का महज 1.3 प्रतिशत हिस्सा सेहत का है। जब तक स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय का यह प्रतिशत बढ़ाया नहीं जाएगा, स्वास्थ्य को प्राथमिकताओं वाले क्षेत्र में शामिल नहीं किया जाएगा और जब तक स्वास्थ्य सेवाओं को मूल नागरिक अधिकारों में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थितियों में सुधार नहीं होगा।
इस ग्रामीण स्वास्थ्य विचार गोष्ठी में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित चुनौतियों, समाधानों पर चर्चा करने के लिए विचार, संप्रत्यय, परियोजनाएं, तकनीक और शोध पेश किए जाएंगे, ताकि वैश्विक स्वास्थ्य को और बेहतर बनाया जा सके। कार्यक्रम के दूसरे दिन ग्रामीण स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म और कला उत्सव का आयोजन किया जाएगा, जिसमें लघु फिल्में, एब्स्ट्रेक्ट फिल्में, वृत्तचित्र, एनिमेशन और वीडियो दिखाए जाएंगे। चुनिंदा विज्ञान सारों को फैमिली मेडिसिन और प्राइमरी केयर नामक जर्नल में प्रकाशित भी किया जाएगा। एएफपीआई, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. अंकित ओम कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों का कोई अकाल नहीं पड़ा है। यह तथ्य है कि हर साल करीब 60 हजार एमबीबीएस डॉक्टर चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करके निकलते हैं, जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 1700 भी नहीं हैं। इन संसाधनों के प्रभावी उपयोग और सही तरह से बनाई गई रणनीति के जरिए बचे हुए चिकित्सकों का ग्रामीण उपकेंद्रों में सही तरह से प्रबंधन स्थिति में सुधार ला सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी मेडिकल कॉलेजों का अभाव भी ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिहाज से बाधा उत्पन्न करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। देश में 200 से अधिक दवा निर्माता कंपनियां पंजीकृत हैं, इसके बावजूद रोगियों को निशुल्क चिकित्सा दवाओं के लिए सरकारी क्षेत्र पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में सरकार को अपनी नीतियों में आवश्यक बदलाव करना चाहिए, मसलन दवाएं अनुदानित कीमतों पर न केवल सरकारी केंद्रों, बल्कि निजी केंद्रों पर भी मिलें।
एएफपीआई एक अकादमी है जो विगत 10 वर्षों से वैश्विक स्तर पर चिकित्सा संबंधी जानकारी पहुंचाने के लिए कार्य कर रही है। इस 15वें विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन (डब्ल्यूआरएचसी) का आयोजन एएफपीआई और वोन्का रूरल हेल्थ के तत्वावधान में किया जा रहा है।

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