शिक्षिका की मृत्यु के बाद भौतिक शरीर से भी शिक्षा
नई दिल्ली। महर्षि दधिची ने अपनी अस्थियाँ दान देकर भी एक ऐसे शस्त्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जिससे राक्षसों और देवताओं के बीच युद्ध में देवताओं को बहुत बड़ी सफलता मिली। आयुर्वेद में चिकित्सकों को निर्देश दिया गया है कि ध्यान-साधना से अपने सूक्ष्म मन को रोगी के शरीर में प्रवेश करवाओ जिससे आपको यह ज्ञान हो सके कि रोग कहाँ पर है और किस अवस्था में है। परन्तु आधुनिक चिकित्सा पद्धति में ध्यान-साधना का अभाव है इसलिए चिकित्सकों को शरीर पर कई प्रकार के परीक्षण करने के बाद रोग का अनुमान लगता है। केवल पुस्तकों के सहारे मानव शरीर के अन्दर की संरचना समझना भी सीमित होता है। चिकित्सा विद्यार्थियों को यदि मृत शरीरों के प्रत्येक भीतरी अंग को दिखाकर शिक्षा दी जाये तो उन्हें शरीर की संरचना का ज्ञान अधिक प्राप्त होता है और मृत शरीर का प्रत्येक छोटा-बड़ा अंग शोध कार्यों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण होता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शरीर संरचना विभाग के अध्यक्ष डाॅ. तारा शंकर राय का यह आह्वान है कि चिकित्सा विद्यार्थियों को अधिक गहरी शिक्षा देने के लिए अधिक से अधिक संख्या में मृत शरीर सरकारी अस्पतालों को दान दिये जायें। इस कार्य के लिए एम्स का शरीर संरचना विभाग विधिवत लोगों से मृत्यु के बाद शरीर दान की घोषणाएँ स्वीकार करता है।
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री विमल वधावन की माता श्रीमती स्वर्णकान्ता का 80 वर्ष की अवस्था में देहावसान होने पर उनकी पूर्व घोषणा के अनुसार उनका भौतिक शरीर दिल्ली के एम्स अस्पताल को दान दिया गया। श्रीमती स्वर्णकान्ता आजीवन अध्यापन का कार्य करती रही हैं। उन्होंने अपने जीवन में हजारों बच्चों को उच्च शिक्षा तक सहायता दी। पूर्ण शरीर दान करने की घोषणा करते समय भी उनका भाव यह था कि जिस प्रकार मैं सारी उम्र बच्चों को शिक्षा देती रही हूँ, उसी प्रकार मृत्यु के उपरान्त मेरा भौतिक शरीर भी शिक्षा के कार्य में ही प्रयोग हो। शरीर संरचना विभाग के अध्यक्ष डाॅ. तारा शंकर राय ने मृत शरीर स्वीकार करते परिवार का धन्यवाद किया।