पारस हॉस्पिटल के डॉक्टरो ने नई तकनीक से किया रेयर ट्यूमर का इलाज
गुडगांव। कलाई में सूजन और धड़कन जैसी संवेदना महसूस होना होना सिर्फ चोट का लक्षण ही नहीं बल्कि यह ट्यूमर का लक्षण भी हो सकता है। एक हालिया मामले में, पारस हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक डॉक्टरों की एक टीम ने कलाई के ट्यूमर के अनोखे मामले का इलाज किया है, जिसमेँ एक नई और जटिल सर्जिकल प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए अंग को कटने से बचा लिया गया है। सर्जरी टीम में पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव के डॉ. अरविंद मेहरा, चीफ ऑफ ऑर्थोपेडिक्स एंड ट्रॉमा और डॉ. कंदर्प विद्यार्थी, कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेसिक्स एंड ट्रॉमा, शामिल थे।
बैडमिंटन खेलते समय 39 वर्ष के द्विपेन कृष्णा सरानिया, जो कि एक एनएसजी अधिकारी के भाई हैं, को अचानक कलाई में अकड़न का एहसास हुआ- इस हिस्से में सूजन और कठोरता भी आ गई थी, मगर इसमें दर्द नहीं था, मगर उन्हें इसमें धड़कन जैसी संवेदना महसूस हो रही थी। उन्होंने एक डॉक्टर को दिखाया, जहाँ सूजन का इलाज करने के लिए उनकी बायॉप्सी की गई और इंजेक्शन (अथवा इंट्रावीनस ट्रीटमेंट) दिया गया। हालांकि, मरीज के भाई, जो कि एनएसजी में कार्यरत हैं, ने पारस हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक डॉक्टर से ऑन-साइट ओपीडी में इस बारे में बात की, जहाँ से मामले को डॉ. मेहरा के पास रेफर किया गया।
पारस हॉस्पिटल्स, गुडगांव के डॉ. अरविंद मेहरा ने बताया कि, “मरीज की सही स्थिति का पता लगाने के लिए हमने बायॉप्सी के अलावा एक्सरे और सीटी स्कैन भी कराया। परिणाम बेहद चैंकाने वाले थे- यह एक जायंट सेल ट्युमर था, जो कि त्वचा के नीचे मांसपेशियों की सतह में था और ग्रेड 1 से आगे बढ़कर ग्रेड 3 तक पहुँच चुका था। यह स्थिति बेहद गम्भीर होती है क्योंकि इसमें शरीर के प्रभावित हिस्से को काटने तक की नौबत आ जाती है और कैंसर को आगे फैलने से रोकने के लिए सर्जरी ही इलाज का आखिरी विकल्प होती है। हमने दो घंटे चलने वाली जटिल सर्जरी की जिसे ‘एनब्लू एक्साइजन ऑफ डिस्टल रेडियस कहते हैं, जिसमें आगे कोई जटिलता नहीं आती है। हमें कलाई के निकट की रेडीयस बोन को हटाना था और उल्ना के एक टुकड़े को भी, जो कि बान्ह के अगले हिस्से एक लम्बी हड्डी होती है और कोहनी से लेकर छोटी उंगली तक पहुंचकर कलाई को सपोर्ट देती है। यह सर्जरी जटिल थी, क्योंकि इसमें एक से अधिक प्रक्रियाएँ शामिल थीं लेकिन बेहतरीन योजना और इस तरह के मामलों का वृहद अनुभव होने के नाते हम इसे बेहद सफलता पूर्वक अंजाम दे सके। यह मामला अपनी गम्भीरता के चलते भी काफी अनोखा था और इस तरह के जटिल ट्यूमर का इलाज एक नई तकनीक के जरिए किया जाता है। आने वाले दिनों में, इससे एक सिंगल सर्जरी के जरिए मरीजों को बड़ा लाभ होने की उम्मीद है जिसमें खर्च भी कम आएगा।”
द्विपेन सरानिया को तीन दिनों के लिए हॉस्पिटल में रखा गया और संतोषजनक रिकवरी के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। डॉक्टरों का कहना है कि सही सलाह और समय पर इलाज से उनका अंग कटने से बच गया। पारस हॉस्पिटल्स गुड़गांव देश के उन अग्रणी अस्पतालों में शामिल है जहाँ न्युरोसाइंसेज, कार्डीयोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, नेफ्रोलॉजी, गैस्ट्रोइंटेरोलॉकी, न्फ्रो और क्रिटिकल केयर की बेहतरीन सुविधाएँ उपलब्ध हैं।