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आने वाले महीनों में भारत में पैदा हो सकता है स्टेंट संकट

नई दिल्ली। हृदय की धमनियों की रूकावट दूर करने के लिए व्यापक तौर पर उपयोग में लाए जाने वाले स्टेंट की कीमत पर सरकार के नियंत्रण से स्टेंट के दाम में कमी आई लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस कदम के कारण आने वाले महीनों में भारत में स्टेंट का संकट पैदा हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि स्टेंट के दामों पर सरकार के नियंत्रण के कारण ज्यादातर कंपनियों ने बेहतर गुणवत्ता वाले आधुनिक स्टेंट को भारतीय बाजार से हटा लिया जबकि कुछ और कंपनियों कुछ महीनों के भीतर अपने स्टेंट हटाने वाले हैं क्योंकि उन्हें लागत की भरपाई करने में मुश्किल हो रही है।
सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हास्पिटल के वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ. दिनेश नायर ने नई दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि स्टेंट की कीमत पर सरकार के नियंत्रण के कारण भारत में निम्न गुणवत्ता वाले स्टेंट का उपयोग होने लगा है और इसके कारण हृदय रोगों के उपचार के परिणाम में गिरावट आई और इसका लाभ सिंगापुर जैसे देशों के अस्पतालों को मिलने लगा है जहां अब पहले की तुलना में अधिक संख्या में भारतीय मरीज पहुंचने लगे हैं। यही नहीं, बेहतर इलाज के लिए भारत आने वाले पड़ोसी देशों के मरीज भी अब भारत के बजाए दूसरे देशों का रूख करने लगे हैं।
सिंगापुर स्थित पार्कवे हेल्थ समूह कहना है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान खास तौर पर भारत में स्टेंट की कीमत पर नियंत्रण तय किए जाने के बाद से भारत से हृदय रोगों का इलाज कराने के लिए सिंगापुर जाने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी जारी है। सिंगापुर में उच्च गुणवत्ता वाले आधुनिक स्टेंट का बहुत अधिक उपयोग होता है, जबकि भारत के अस्पतालों से ऐसे स्टेंट गायब हो गए हैं। अपना इलाज कराने के लिए सिंगापुर जाने वाले भारत के मरीज उच्च गुणवत्ता वाले स्टेंट की मांग करते हैं। आर्थिक रूप से सक्षम एवं बेहतर क्रय क्षमता वाले मरीज हर कीमत पर अत्याधुनिक एवं बेहतर चिकित्सा सुविधाएं चाहते हैं।
डाॅ. नायर ने कहा कि नई पीढ़ी के आधुनिक स्टेंट की तुलना में पुरानी पीढ़ी के स्टेंट हृदय धमनियों में जटिल रूकावटों को दूर करने के मामले में उतने अच्छे चिकित्सा परिणाम नहीं दे सकते हैं। जटिल मामलों में इंटरवेंशनल कार्डियोलाॅजिस्टों को अच्छी गुणवत्ता के स्टेंट की जरूरत होती है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में हर साल करीब छह लाख स्टेंट बिकते हैं। गौरतलब है कि नेशनल फर्मासेयुटिकल प्राइसिंग अॅथारिटी (एनपीपीए) ने गत वर्श फरवरी में हृदय धमनियों में लगाए जाने वाले स्टेंट की कीमत में 85 प्रतिषत की कमी कर दी जिसके कारण स्टेंट की कीमत घटकर 29,600 रुपए हो गई। हालांकि स्टेंट की कीमत में कमी के बावजूद भारत में एंजियोप्लास्टी पर होने वाले खर्च में कोई खास कमी नहीं आई क्योंकि ज्यादातर अस्पतालों ने अन्य मदों पर अधिक शुल्क लगाना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ स्टेंट की कीमत को नियंत्रित किए जाने के कारण भारतीय बाजार से उच्च गुणवत्ता वाले स्टेंट गायब हो गए और भारतीय मरीज नई तकनीकों से दुनिया भर में विकसित होने वाले अत्याधुनिक स्टेंटों के लाभ से बंचित हो गए। स्टेंट की कीमत को नियंत्रित किए जाने के बाद से भारत पुरानी पीढ़ी के स्टेंटों के लिए अनुकूल बाजार बन गया। ऐसे स्टेंट के कारण कोरोनरी आर्टरी स्टेंटिंग के वांछित परिणाम नहीं निकल पाते हैं।
डाॅ. दिनेश नायर ने बताया कि पुराने किस्म के स्टेंट के कारण रेस्टेनोसिस होने की दर अधिक होती है। स्टेनोसिस उस स्थिति को कहते हैं जब स्टेंट लगने के बाद भी उसी धमनी में दोबारा अवरोध पैदा हो जाए। उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक तकनीकों एवं व्यापक शोध के आधार पर विकसित होने वाले अत्याधुनिक स्टेंटों की तुलना में पुरानी पीढ़ी के स्टेंट धमनियों में जटिल अवरोधों में अच्छे परिणाम नहीं भी दे सकते हैं। हृदय में अवरोधों के जटिल मामलों में इंटरवेंशनल कार्डियोलाॅजिस्टों को सर्वश्रेष्ठ स्टेंट की जरूरत पड़ती है ताकि कोरोनरी स्टेंटिंग के बेहतर परिणाम सामने आए। बेहतर परिणाम देने वाले उच्च गुणवत्ता वाले स्टेंटों की कीमत अधिक होती है। अच्छी गुणवत्ता वाले स्टेंटों की कीमत अधिक होने का कारण अनुसंधान एवं विकास पर कंपनियों द्वारा किए जाने वाला अधिक खर्च है। साथ ही साथ इन स्टेंटों के उपयोग के दौरान इन स्टेंटों से निकलने वाले परिणामों पर भी लगातार निगरानी रखे जाने की जरूरत होती है और इन सब पर भी कंपनियों को खर्च करना पड़ता है। सस्ते स्टेंट के मामले में अनुसंधान और विकास आदि पर कम खर्च होता है और ऐसे स्टेंट से निकलने वाले परिणामों के बारे में समतुल्य आकड़े उपलब्ध नहीं हो पाते।
डाॅ. दिनेश नायर ने कहा, ‘‘किसी चिकित्सा उपकरण पर चलने वाले अध्ययनों से मरीजों को क्या फायदा मिलता है इसका एक उदाहरण आब्जर्ब बायोएब्जार्बेबल स्काॅफोल्ड (स्टेंट) है जिसका पूर्व में व्यापक उपयोग हुआ। अनेक वर्शों के अध्ययन से इसके खराब परिणाम सामने आए। इसके परिणामस्वरूप इस स्टेंट को दुनिया भर के बाजार से वापस ले लिया गया। अब यह स्टेंट बाजार में बिक्री के लिए कहीं भी उपलब्ध नहीं है। केवल यह अनुसंधान के लिए उपलब्ध है। उच्च गुणवत्ता वाले स्टेंट को लेकर होने वाले अध्ययनों से उसके बेहतर परिणाम सुनिश्चित होते हैं। अगर कोई स्टेंट मरीज के लिए उपयोगी नहीं है तो उसका उपयोग बंद किया जा सकता है।’’
डाॅ. नायर ने कहा, मरीजों के लिए बेहतर यही है कि उसे सही और अपने अनुकूल उपचार विधि को चुनने का अधिकार दिया जाए। मरीज के उपचार के बेहतर परिणाम आएं इसके लिए जरूरी है कि मरीज को उपचार से होने वाले परिणामों के बारे में सूचित किया जाए और इसके आधार पर मरीज और डाॅक्टर विचार-विमर्श करके सही उपचार विधि के बारे में फैसला कर सकें। डाॅ. नायर ने कहा, ‘‘मैं आम तौर पर मरीजों एवं उनके परिवार के साथ हर स्टेंट के गुण दोष के बारे में चर्चा करता हूं।’’ उन्होंने बताया कि सिंगापुर में उच्च गुणवत्ता के स्टेंट एवं प्रत्यारोपण तकनीकें उपलब्ध हैं जैसे कि इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड (आईवीयूएस) और आॅप्टिकल कोहरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) जिनकी मदद से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मरीज को बिल्कुल सही आकार के स्टेंट लगे और डाॅक्टर पूरी सफलता के साथ स्टेंट को लगा सके। इससे स्टेंट के बेहतर परिणाम आते हैं और इस बात की आशंका भी कम हो जाती है कि भविष्य में स्टेंट खराब हो जाएंगे।

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