लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

किडनी का रखें खास ख्याल

(वर्ल्ड किडनी डे)

किडनी (गुर्दे) मानव शरीर में सबसे महत्वपूर्ण अंग है। ये उच्च स्तर की रिप्रोसेसिंग मशीन हैं। किडनी शरीर में पानी और सोडियम, पोटाशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स का संतुलन बनाए रखती हैं। आज भारत में 100 में से 17 लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित है। इनमें से 6 प्रतिशत लोग किडनी डिजीज की थर्ड स्टेज पर हैं जिन्हें चिकित्सकीय इलाज की बहुत आवश्यकता है। किडनी के खराब होने के लिए ओबेसिटी भी काफी हद तक जिम्मेवार हो सकती है क्योंकि ओबेसिटी के कारण हमारे शरीर में डायबिटीज, कार्डियोवस्क्यूलर और ब्रिथिंग विकारों जैसी अन्य खतरनाक बीमारियां जन्म ले रही है। जिससे किडनी खराब होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए इस बार वल्र्ड किडनी डे की थीम किडनी डिजीज एंड ओबेसिटी रखी गई है। इसका उद्देश्य लोगों को किडनी में होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक करना है ताकि भविष्य में लोग इस खतरनाक बीमारी से अपना बचाव कर सकें।
डॉ. राजेश अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट कहना है कि मोटे लोगों में हाई ब्लड प्रेसर और शुगर लेवल बढ़ने का रिस्क ज्यादा रहता है। इसलिए ऐसे लोगों की किडनी खराब होने के चांसेस बढ़ जाते है। किडनी में होने वाली डारेक्ट इंजरी को हाइपर फिल्ट्रेशन कहा जाता है। इसमें किडनी के उपर मेटाबाॅलिक लोड बढ़ जाता है। मोटे व्यक्ति के शरीर में वेस्ट प्रोडक्ट ज्यादा पैदा होते हैं। यही कारण है कि इस वेस्ट प्रोडक्ट को फिल्टर करने के लिए किडनी को ज्यादा काम करना पड़ता है। इसके कारण किडनी की साइड में छेद बढ़ जाते हैं और इनसे प्रोटीन रिसना शुरू हो जाता है। इस प्रकार धीरे धीरे किडनी को नुकसान पहुंचता रहता है। इसे ओबेसिटी संबंधित किडनी डिजीज कहा जाता है। किडनी की एक आम बीमारी है फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरूलोस्केलेरोसिस। इसके अलावा मेटाबाॅलिक सिंड्रोम बीमारी होती है जो किडनी को अप्रत्यक्ष तरीके से भी प्रभावित करती है। इसमें शुगर, ब्लड प्रेसर और मोटापा शामिल हैं।
किडनी के प्रभावित होने पर यह शरीर में पानी, साॅल्ट और वेस्ट प्रोडक्ट को बेलेंस करना बंद कर देती है। जिससे शरीर में नमक की मात्रा बढ़ने पर ब्लड प्रेसर बढ़ जाता है। अन्न की मात्रा में वृद्धि होने से हार्ट की एलबीएच नामक दीवार मोटी हो जाती है जिससे हार्ट फेल होने की आशंका बढ़ जाती है। वेस्ट प्रोडक्ट में वृद्धि होने पर ब्रेन, मेमोरी पर असर पड़ता है साथ ही हार्ट की बाहरी परत ऐपीकार्डियम भी प्रभावित होती है। इसके अलावा पाचन प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है। जिसके बाद पैरों में सूजन आने लगती है और वोमेटिंग भी होने लगती है। इससे शरीर की हड्डियां भी प्रभावित होती हैं क्योंकि किडनी से विटामिन डी बनता है। किडनी के पूर्णरूप से कार्य ना करने पर हड्डियां कमजोर होने लगती हैं क्योंकि ये विटामिन डी एक्टिव फाॅर्म नहीं बना पाती हैं। इसके अलावा हेमोग्लोबिन भी नहीं बन पाता है। अतः हम कह सकते हैं कि किडनी के बीमार होने पर सारे शरीर को नुकसान पहुंचता है।
किडनी संबंधी बीमारियां
क्रोनिक किडनी डिजीज गुर्दां में होने वाली खतरनाक बीमारियों में से एक है। इस बीमारी के होने पर व्यक्ति के गुर्दों के कार्य करने की क्षमता गिरावट आ सकती है। ज्यादा समय तक ध्यान ना देने पर हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाने की संभावना बढ़ जाती है और रक्त में व्यर्थ पदार्थ बड़ी मात्रा में जमा हो सकता है। इसके बाद उच्च रक्तचाप, हड्डियों का कमजोर होना, अनीमीया यानि खून की कमी, कुपोषण और नसों के क्षति होने जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। गुर्दे की इस बीमारी के कारण हृदय और रक्त वाहिकाओं संबंधी बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है। किड़नी संबंधी बीमारी का अगर शुरूआत में ही पता चल जाए तो इलाज करना आसान हो जाता है। अन्यथा इस बीमारी के ज्यादा बढ़ने पर किडनी फेल हो सकती है। इस स्थिति में किडनियों तक रक्त नहीं पहुंच पाता है। गुर्दे स्वयं को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। मूत्र गुर्दों में वापस आने लगता है। ऐसे में पेशेंट की बार बार डायलिसिस करने की जरूरत पड़ती है या फिर खराब गुर्दे को बदलना पड़ता है। डायलिसिस कराने से कुछ समय के लिए व्यक्ति की सेहत में सुधार हो जाता है। भारत में हर वर्ष 2 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु किडनी फेल होने की वजह से होती है।
अल्पोर्ट सिंड्रोम – यह किडनी में होने वाली एक जेनेटिक बीमारी है। इसमें व्यक्ति की किडनी काम करना बंद कर देती है और यूरिन के साथ ब्लड आने की शिकायत हो जाती है। इसके अलावा व्यक्ति की सुनने की क्षमता कम हो जाती है और आंखों में असामान्यताएं आ जाती हैं।
डायबिटिक नेफरोपैथी – डायबिटीज के मरीजों को डायबिटिक नेफरोपैथी की समस्या हो सकती है। हमारे गुर्दो में बहुत ही सूक्ष्म रक्त वाहिकाएं होती है जो रक्त को साफ करने का कार्य करती हैं। डायबिटीज के कारण शरीर में शुगर का लेवल बहुत बढ सकता है जो रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुचा सकता है। नतीजा यह होगा कि गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं।
फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरूलोस्केलेरोसिस – यह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है जो किडनी की फिल्टरिंग यूनिट को नुकसान पहुंचाती है। इस वजह से किडनी खराब हो सकती है और रीनल फेलियर की समस्या भी आ सकती है। यह नेफरोटिक सिंड्रोम होने के मुख्य कारणों में से एक है।
किडनी स्टोन – गुर्दे में पथरी एक आम बीमारी है जो अक्सर गलत खान-पान के कारण होती है। शरीर के लिए आवश्यक मात्रा से कम पानी पीने पर भी पथरी होने की संभावना बढ़ जाती है। किडनी में स्टोन की शिकायत होने पर पेशाब में जलन, मूत्र करने के समय दर्द होता है।
मिनिमल चेंज डिजीज – यह किडनी की एक ऐसी बीमारी है जिसमें प्रोटीन की बड़ी मात्रा पेशाब के माध्यम से निकल जाती है। संसार में नेफ्रोटिक सिंड्रोम होने के मुख्य कारणों में से एक है।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग – यह किडनी में होने वाली आनुवांशिक बीमारी है। इससे किडनी में तरल पदार्थ के जमा होने से अल्सर बन जाता है। इससे गुर्दे की कार्य क्षमता प्रभावित हो सकती है और अंत में किडनी फेलियर भी हो सकता है।
किडनी डिजीज के लक्षण
– जल्दी थक जाना और दिमाग की तेजी से कार्य करने की क्षमता धीमी पड़ना।
– निंद्रा में बाधा।
– जरूरत से ज्यादा मूत्र आना।
– पेशाब में खून आना।
– मूत्र झागदार होना।
– आंखों के आसपास लगातार सूजन बनना।
– पैरों और टखनों पर सूजन आना।
– लगातार स्किन में खुजली होना।
– मसल्स में खिंचाव और ऐंठन।
डायग्नोसिस
ब्लड टेस्ट – किडनी फंक्शन टेस्ट के माध्यम से आपके रक्त में क्रिएटिनिन और यूरिया के रूप में व्यर्थ पदार्थों के स्तर का पता चलता है।
यूरिन टेस्ट – इस प्रक्रिया में मूत्र का सेंपल लेकर उसमें मौजूद असामान्यताएं की जांच की जाती है। इससे किड़नी फेल होने का पता चल जाता है और गुर्दे की पुरानी बीमारी के कारण पता करने में मदद मिलती है।
इमेजिंग टेस्ट – गुर्दे का स्ट्रक्चर और साइज पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
किडनी बायोप्सी टेस्ट – गुर्दे की बायोप्सी जांच के लिए इसके टिश्यू का एक छोटा सा सेंपल लिया जाता है। फिर उस बायोप्सी सेंपल को जांच के लिए लैब में भेजा जाता है जिससे पता चलता है कि किडनी को क्या समस्या हो रही है।
उपचार
यदि किडनी से संबंधित बीमारी का शुरूआती चरण में ही पता चल जाए तो इसका उपचार करना बेहद आसान हो जाता है। आमतौर पर उपचार के लिए इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने और बीमारी की रफ्तार को धीमा करने के लिए कदम उठाये जाते हैं। इससे जुड़ी जटिलताएं जैसे उच्च रक्तचाप कम करने, कोलेस्ट्राॅल, सूजन, अनीमीया और हड्डियों को बचाने के लिए मेडिसिन दी जाती हैं।
डायलिसिस – जब किडनी काम करना बंद कर देती हैं तो रक्त से अतिरिक्त जमा फ्लूड और गंदे पदार्थ को निकालने के लिए डायलिसिस की जाती है। हेमोडायलिसिस में मशीन के माध्यम से रक्त में मौजूद गंद और अतिरिक्त फ्लूड को साफ किया जाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट – इस प्रक्रिया में शल्य चिकित्सा द्वारा किसी डोनर से प्राप्त एक स्वस्थ किडनी बेकार के स्थान पर लगा दी जाती है। शरीर द्वारा नये अंग के साथ तालमेल के लिए दवाइयां दी जाती हैं।
लाइफस्टाइल – हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में एकाएक बदलाव भी किडनी बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। जैसे महिला पुरूष दोनों का बड़ी मात्रा में स्मोकिंग के प्रति बढ़ता प्रचलन, लंबे समय तक पानी न पीने के कारण डिहाइड्रेशन की समस्या होना, कार्य के दौरान लंबे समय तक मूत्र को करने से यूरीनरी इंफेक्शन और गुर्दो में स्टोन बनना, आहार में जरूरत से ज्यादा मीठे का होना, पर्याप्त नींद न लेना और प्रोसेसड फूड पर ज्यादा निर्भर रहने से किडनी संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।
किडनी बीमारी से निदान के लिए लाइफस्टाइल संबंधी निम्न बातों पर ध्यान देना अनिवार्य है
– स्मोकिंग एवं एल्कोहल से दूरी बनाएं।
– मार्केट में आसानी से उपलब्ध भुने तले एवं मसालेदार तैयार फूड की बजाय घर पर बना संतुलित भोजन लें।
– फिजिकल एक्टिविटीज जैसे नियमित रूप से सुबह शाम सैर एवं एक्सरसाइज के लिए समय निकालें।
– शरीर में पानी की आपूर्ति करने वाली हरी पत्तेदार सब्जियां, सलाद का इस्तेमाल करें।
– पर्याप्त मात्रा में नींद लेने का प्रयास करें।

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