लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

डायबिटिज से बढ़ती किडनी की बीमारी

-डॉ. सुदीप सिंह सचदेव
नेफ्रोजिस्ट, नारायणा सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम
डायबिटीज के रोगियों के लिए जिन मरीजों को डायबिटीज की बीमारी है उनको गुर्दे की बीमारी होने की काफी सम्भावनाएं रहती हैं। आकड़े बताते हैं कि डायबिटीज गुर्दे फेल होने का एक प्रमुख कारण है, इसलिए डायबिटीज के रोगियों को शुरूआती लक्षणों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। अगर रोगी के परिवार में किसी निकट सम्बन्धी के पूर्व में डायबिटीज से गुर्दे खराब हो चुके हैं तो उसके भी गुर्दे खराब होने की सम्भावना बढ़ जाती है। वे लोग जो कि डायबिटीज के मरीज हैं, उनमें से लगभग आधे लोग किडनी समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के लिए आवश्यक है कि वे अपनी नियमित जांच कराएं और किडनी जांच पर विशेष तौर पर ध्यान दें। डायबिटीज से होने वाली किडनी समस्या का उपचार उपलब्ध है, बशर्ते समय रहते उसका निदान किया जा सके। अपने शुगर लेवल को नियंत्रण में ही रखें। आप का रक्तचाप जितना कम होगा आप की किडनी की कार्यशैली भी उतनी देर से ही दुष्प्रभावित होगी। हालांकि बहुत से लोगों को यह पता है कि उच्च रक्तचाप से हार्ट अटैक, ब्रेन अटैक हो सकता है लेकिन बहुत कम लोगों को ही यह मालूम है कि इससे किडनी को भी नुकसान पहुंच सकता हैै, विशेषकर उन केसों में जहां पीडित दिल की समस्या व डायबिटीज से पीड़ित होता है। गुर्दे की बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण क्या हैं अगर रोगी को निम्नलिखित लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाई देता है तो तुरन्त गुर्दे के डाक्टर से सम्पर्क करें।
भारत में होने वाली डायबिटीज की बीमारी
भारत में टाइप-2 डायबिटीज विकसित देशों की अपेक्षा कम उम्र में लगभग एक दशक पहले हो जाती है। डायबिटीज शुरुआत में ज्यादातर सुप्तावस्था में होती है, लगभग हर बारहवां शहरी भारतीय वयस्क मधुमेह रोगी है। हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं कि भारत में स्थिति कितनी भयावह होगी। इस रोग से ठीक से निपटने के लिए हर 2 लाख की आबादी पर एक विशेषज्ञ चिकित्सक होना चाहिए। हमारे देश के दक्षिण भाग में प्रशिक्षित विशेषज्ञ उत्तर की अपेक्षा कहीं अधिक हैं। भारत में पिछले दो दशकों में तेजी से हुए शहारीकरण तथा बदलती जीवनशैली के परिणामस्वरूप हमारे खानपान में आए परिवर्तन फास्टफूड, कोकाकोलोनाइजेशन, शारीरिक श्रम में कमी, भागदौड़, स्पर्धग्रस्त जिन्दगी से उत्पन्न तनाव इसकी महत्वपूर्ण वजह है।
ब्लड प्रेशर का होना :
यूं तो ब्लड प्रेशर किसी को भी हो सकता है, जिसे हम इसेन्शियल हाइपरटेन्शन भी कहते है। लेकिन अगर रक्तचाप बच्चों में या 25-30 वर्ष के पहले हो तथा 55-60 वर्ष के बाद शुरु हुआ हो तो गुर्दे की जांच आवश्यक है। अगर किसी रोगी को ब्लड प्रेशर की बीमारी है तथा उसके पेशाब में प्रोटीन आ रहा है तो भी हमें गुर्दे की पूरी जांच करनी चाहिए, क्योंकि ब्लड प्रेशर होने का गुर्दे की बीमारी भी एक प्रमुख कारण हैं। अगर रोगी को ब्लड प्रेशर हो तथा खून की कमी हो तो काफी सम्भावना रहती है कि गुर्दे की बीमारी हो।
मुंह पर सूजन आना :
गुर्दे की बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है। बहुध यह देखा गया है कि आरम्भिक दशा में मरीज के पलक व उसके नीचे के हिस्से भारी हो जाते हैं खासकर सुबह उठने पर, बाद में चहेरे पर एवं पूरे शरीर पर सूजन आ जाती है। इस सूजन में अगंूठे से दबाने पर गड्डा हो जाता है। गड्डा बनना इसको कई बीमारियों से अलग करता है जैसे थायराइड़ व फाइलेरिया आदि जिनमें सूजन तो आती है परन्तु गड्डा नहीं बनता है।
पेशाब में प्रोटीन जाना :
अगर रोगी के पेशाब की उसमें प्रोटीन की मात्रा जा रही हो तो रोगी को तुरन्त गुर्दे के डाॅक्टर को दिखाना चाहिए। आमतौर पर हाल का पेशाब जांच करने पर पेशाब में प्रोटीन नहीं आती है, क्योंकि इसकी मात्रा 24 घंटे में केवल 100-150 मिलीग्राम तक पेशाब में होती है।
पेशाब में खून का आना :
यह गुर्दे के रोग का एक प्रमुख लक्षण है। अगर पेट के दर्द के साथ पेशाब में खून आता है तो गुर्दे या उसकी नली में पथरी की सम्भावना रहती है। बड़े-बूढ़े लोगों में इस लक्षण का कारण गुर्दे का टयूमर भी हो सकता है जिसमें प्रायः दर्द नहीं होता है। गुर्दे के छलनियों की बीमारी में जिसे कलोमेरुलोनैराइटिस कहते हैं, में भी पेशाब में खून आ सकता है। रोगी के पेशाब का रंग लाल या कोका कोला की तरह हो सकता है। बच्चों में बहुध यह देखा गया है कि पहले कुछ बुखार, गला खराब होना व खांसी जुकाम होता है तथा इसे 8-10 दिन बाद शरीर में सूजन व पेशाब में खेन आने लगता है। पेशाब में बार-बार सक्रंमण होना, पेशाब की धार पतली हो जाना या पेशाब करते समय जोर लगाना और रात में बिस्तर गीला करना, हड्डियां कमजोर होना तथा टांगों का टेड़ा होना, पेशाब में पथरी का आना आदि लक्षण हो सकते है।
ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए :
अगर किसी मरीज को रक्तचाप की बीमारी है तो उसे नियमित दवा से ब्लड प्रेशर की 120 से 30/70-80 तक कन्ट्रोल करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर ब्लड प्रेशर बढ़ा रहता है तो गुर्दे खराब हो सकते हैं। इस बीमारी में भी पेशाब में प्रोटीन आना शुरू हो जाती है। ब्लड प्रेशर भी डायबिटीज के बाद गुर्दे खराब करने का एक प्रमुख कारण गुर्दे फेल हो जाने पर आने वाले लक्षण देर से आने वाले लक्षणों में भूख में कमी, उल्टी होने की सम्भावना लगना या उल्टी होना, शरीर में खून की कमी, थकावट रहना तथा ब्लड प्रेशर का होना आदि हैं। जो गुर्दे फेल होने की तरफ इशारा करते हैं।

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