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सर गंगा राम अस्पताल में हियरिंग हेल्थ पर जागरूकता के लिए एक पहल

नई दिल्ली। वर्ल्ड हियरिंग डे पर सर गंगा राम अस्पताल के ईएनटी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने नई दिल्ली में स्थित आशा स्पीच एंड हियरिंग क्लीनिक के सहयोग से सुनाई न देने के रोग से पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार पर पड़ने वाले महत्वपूर्ण कार्यात्मक, सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक प्रभाव के संबंध में जागरूकता फैलाने का अहम कदम उठाया। शहर के महत्वपूर्ण विचारक नेता, डॉ. शलभ शर्मा (कोक्लियर इम्प्लांट सर्जन, ईएनटी डिपार्टमेंट, सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली) और श्रीमती आशा अग्रवाल (ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच पैथोलॉजिस्ट (सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली) साथ मिलकर दिल्ली में लोगों की श्रवण सबंधी सेहत की मौजूदा स्थिति के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए आगे आए।
डॉ. ए.के. लाहिड़ी ने कहा, “आजकल हियरिंग लॉस ग्लोबल हेल्थ इश्यू बन गया है। मैं इस प्लेटफॉर्म को यह कहने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है कि रोजाना की जिंदगी से जुड़ी आवाजें सुनने का सभी को हक है। मैं यह सुनिश्चित करने में मदद करना चाहता हूं कि इस संसार में रह रहा हरेक व्यक्ति खुशी और अपने प्रियजनों, परिवार और दोस्तों की आवाजों को सुन सके। पैरंट्स और परिजनों को किसी व्यक्ति में सुनाई देना कम होने का रोग उभरने के संकेतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और इस संबंध में तत्काल कदम उठाना चाहिए। मैं खुद इस बात का गवाह हूं कि कोक्लियर इंप्लांट कैसे एक व्यक्ति को खामोशी से आवाज की दुनिया में ले जाता है। यह जीवन को बदलने वाला क्षण है। कई विकसित देशों ने हर नवजात शिशु के लिए हियरिंग स्क्रीनिंग कराई जाती है। भारत को भी यूनिवर्सल न्यू बॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने पर विचार करना चाहिए।“
हालांकि बहरेपन के कई कारणों से बचाव हो सकता है, लेकिन ग्लोबल स्तर पर यह समस्या बढ़ रही है। पूरे विश्व में 36 करोड़ के लगभग लोग सुन नहीं सकते। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 50 लाख से ज्यादा नागरिक हैं, जो किसी न किसी तरह की सुनने में कमी की समस्या से पीड़ित हैं। विश्व की करीब 5 फीसदी आबादी सुनने से लाचार है। सदमे में डालने वाले इन आंकड़ों के बावजूद बहुत से मरीज आजकल मौजूद इलाज के आधुनिक विकल्पों से अनजान हैं।
ब्रीफिंग पर नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में कोक्लियर इंप्लांट कंसलटेंट, डॉ. शलभ शर्मा ने कहा, “सुनाई देना बंद होना या कम होने को अक्सर लो प्रोफाइल डिसएलिबिटी के रूप में देखा जाता है इसलिए इसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। भारत में हर साल 27 हजार से ज्यादा नवजात शिशु जन्म से ही सुनने में लाचार होते हैं, जिससे वह बहुत देर से बोलना सीखते हैं। भाषा भी देर से सीख पाते हैं और आसपास के माहौल पर वह उतना गौर नहीं कर पाते। हालांकि यूनिवर्सल न्यूबोर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यूएनएचएस) से सुनने में कमी के किसी संकेत को जल्द पहचाना जा सकता है। रोग जल्दी पकड़ में आने के बाद इसके इलाज की भी अच्छी संभावना बन जाती है। मेडिकल टेक्नोलॉजी ने नई पहल को जन्म दिया है, जिससे किसी भी व्यक्ति की सुनने की क्षमता को बरकरार रखा जा सकता है और उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदला जा सकता है। इससे बीमारी के प्रारंभिक चरण में इलाज मुहैया कराने में मदद मिलती है और हियरिंग लॉस से पीड़ित मरीजों की तकलीफें कम होती है।“
सुनने में लाचार भारतीय नौजवानों की बड़ी आबादी से शारीरिक और आर्थिक उत्पादकता में कमी आ रही है। इसके अलावा और भी बहुत से लोगों में तेज आवाज, रोग और उम्र बढ़ने के कारण बहरेपन का रोग पनपने का खतरा है। अगर बहरेपन की समस्या का समाधान करने के लिए जल्द कदम न उठाए गए तो इससे विश्व स्तर पर अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। हालांकि नवजात शिशु में सुनने की गड़बड़ी की पहचान करने के लिए कुछ अस्पताल नवजात शिशु की जांच की स्वैच्छिक रूप से सिफारिश करते हैं, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया में ठोस कदम बहुत कम उठाए जाते हैं।
नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में ऑयोलॉजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट श्रीमती आशा अग्रवाल ने जागरूकता और स्क्रीनिंग के महत्व को उभारते हुए कहा कि स्क्रीनिंग प्रोग्रम न कराने से अपने बच्चों में बहरेपन की पहचान के लिए पैरंट्स उनके बोलने और बातचीत करना सीखने के समय पर निर्भर रहेंगे। सुनने के रोग की पहचान में हुई देरी से बच्चों को चीजें सीखने और पहचानने में एक साल की देरी हो सकती है। समय से रोग की पहचान और बहरेपन का इलाज जरूरी है। अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में मिली उचित सहायता से बच्चा अपनी कमी से उबरकर तेजी से बोलना और बातचीत करना सीख सकता है। इससे उसे समाज की मुख्य धारा का अंग बनने का भी मौका मिलता है।

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