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स्किजोफ्रेनिया के एक-चौथाई मरीज इलाज के अभाव में आत्महत्या कर लेतेे हैं

विश्व स्किजोफ्रेनिया दिवस : 24 मई

मानसिक बीमारियों के सर्वाधिक गंभीर रूप माने जाने वाले स्किजोफ्रेनिया का इलाज नहीं होने पर इसके 25 प्रतिशत मरीजों के खुदकुशी कर लेने का खतरा होता है। यह बीमारी प्रति एक हजार वयस्कों में से करीब 10 लोगों को प्रभावित करती है। विश्व स्किजोफ्रेनिया दिवस की पूर्व संध्या पर मनोचिकित्सों ने बताया कि स्किजोफ्रेनिया के इलाज से बंचित करीब 90 प्रतिशत रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं। करीब एक अरब की आबादी वाले हमारे देश भारत में, विभिन्न डिग्री के स्किजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं जिसके कारण कुल मिलाकर ढाई करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। यह बीमारी ज्यादातर 16-45 आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करती है।
नई दिल्ली के इंस्टीच्यूट आॅफ ह्युमन बिहेवियर एंड एप्लाइड साइंसेज संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ. निमेश जी. देसाई ने कहा कि स्किजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है लेकिन अनुसंधानों की मदद से इसके उपचार में काफी प्रगति हो रही है। उन्होंने स्किजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि डॉक्टरों और देखभाल करने वालों को रोग के कानूनी पहलुओं से भी अवगत कराया जाना चाहिए।
डॉ. देसाई ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी नये अधिनियम (मानसिक हेल्थकेयर अधिनियम, 2017) को संभवत अगले महीने से लागू किया जाना है और जिसके कारण स्किजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के से संबंधित कानूनी ढांचे और जटिल बन जाएंगे। ऐसी परिस्थितियों में, मरीजों के मानवाधिकारों को भी ध्यान में रखना जरूरी हो जाता है।
फोर्टिस हेल्थकेयर के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी ने कहा कि स्किजोफ्रेनिया के मरीजों में मौत का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है और स्किजोफ्रेनिया का इलाज नहीं कराने पर करीब 25 प्रतिशत स्किजोफ्रेनिक मरीज आत्महत्या कर सकते हैं। डॉ. तिवारी ने कहा, ‘‘स्किजोफ्रेनिया के रोगियों में आत्महत्या के लिए जोखिम कारकों में निराशा, सामाजिक अलगाव, अस्पताल में भर्ती होने की नौबत, स्वास्थ्य खराब रहने के कारण कामकाज प्रभावित होना, हाल में हुई कोई क्षति या अलगाव, सीमित रूप से बाहरी समर्थन, और पारिवारिक तनाव या अस्थिरता आदि शामिल है। स्किजोफ्रेनिया के वैसे रोगी जिनमें आत्मघाती विचार आते हों, वे और अधिक मानसिक क्षति से डरते हैं और इलाज के प्रति उनकी निर्भरता या तो बहुत बढ़ जाती है या इलाज कराने में उनका बिल्कुल विश्वास नहीं होता है।’’
रिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अवनी तिवारी ने कहा कि आत्महत्या के जोखिम का आकलन करने में सुरक्षा संबंधी कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। किसी व्यक्ति में एक बार इनके लक्षण ध्यान में आने पर, इसकी पहचान के लिए व्यक्ति को मनोचिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए। इस बीमारी का इलाज जितना जल्दी होगा उपचार की प्रतिक्रिया भी बेहतर होगी। स्किजोफ्रेनिया का इलाज संभव है इसलिए इसके इलाज में देर नहीं करनी चाहिए। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उसके सामाजिक जीवन में वापस लाने के लिए मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की टीम परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत करती है।
नई दिल्ली स्थित कॉस्मोस इंस्टीट्यूट ऑफ मैटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज (सीआईएमबीएस) में कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, स्किजोफ्रेनिया क्यों होता है और क्या इसके लिए पर्यावरणीय और आनुवांशिक कारण भी जिम्मेदार हैं, इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं हो पाई है। लेकिन, जितनी जल्दी संभव हो, इसका उचित इलाज कराना बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक आम मिथक है कि स्किजोफ्रेनिया का इलाज नहीं किया जा सकता है। जबकि वास्तविकता यह है कि यह ठीक हो सकता है।
डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि गंभीर मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को लेकर अभी भी बहुत सारी गलत धारणाएं हैं। यदि किसी व्यक्ति में स्किजोफ्रेनिया का पता चलता है, तो ज्यादातर मामलों में परिवार के लोग समाज से मरीज को छिपाने की कोशिश करते हैं। रोगियों को पारिवारिक समारोहों में नहीं आने दिया जाता है या जब मेहमान घर आते हैं तो उन्हें मेहमानों के सामने नहीं आने दिया जाता है। इससे रोगी के मन में नकारात्मक भावना पनपती है।’’
मानस गंगा सेंटर (नौएडा) के निदेशक डॉ. मनु तिवारी ने कहा कि जब हमने स्किजोफ्रेनिया के रोगियों के परिवारों का रोगियों के देखभाल करने वालों का रोगियों के प्रति दृष्टिकोण के बारे में सर्वेक्षण किया, तो हमने यह पाया कि देखभाल करने वालों में मरीज को लेकर भेदभाव पूर्ण टिप्पणियां करने और शत्रुता की भावना अधिक थी।
डाॅ. मनु तिवारी ने कहा, ‘‘मानसिक बीमारियों और इन बीमारियों से जुड़े लक्षणों के बारे में आम लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने से समाज में मरीजों के लिए अधिक स्वीकृति बनाने में मदद मिल सकती है। लोगों को यह समझना चाहिए कि मानसिक बीमारियों वाले मरीजों के प्रति नकारात्मक टिप्पणी या अस्वीकृति उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और इसलिए इससे बचा जाना चाहिए।’’
स्किजोफ्रेनिया के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए 24 मई को दुनिया भर में विश्व स्किजोफ्रेनिया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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