लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

14 वर्ष की उम्र में पीडिएट्रिक गुर्दा प्रत्यारोपण के 15 वर्ष साल बाद भी सामान्य जीवन

नई दिल्ली। 9 वर्ष की उम्र (1996) से ही उच्च रक्तचाप से पीडित अवंतिका अवस्थी (बदला हुआ नाम अब 31 वर्ष की उम्र) धुंधली दृष्टि, तेज सिरदर्द और उल्टी जैसी समस्याओं से परेशान थीं। स्थानीय चिकित्सकों को उनके रक्तचाप में उतार-चढ़ाव की वजह किडनी संबंधी बीमारी का पता लगाने में दो साल लग गए और इसी के कारण उन्हें तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। जांच में पता चला कि उनकी किडनी केवल 24 प्रतिशत ही काम कर रहे थे। बीपी के साथ किडनी की समस्या का पता चलने में देरी होने के कारण उपयुक्त पीडिएट्रिक नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.संजीव गुलाटी, डायरेक्टर-नोफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट, फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजनढल (एफएचवीके) हॉस्पिटल’ से मिलने में 5 साल का वक्त लग गया। तब तक के लिए एककमात्र उपलब्ध उपचार यह था कि बीपी को दवा के जरिए नियंत्रित रखना, जिससे किडनी को नुकसान पहुंचने में देरी हो। डॉ. गुलाटी ने किडनी को हुए नुकसान की जांच के लिए कुछ टेस्ट कराने को कहा और जांच में पाया गया कि उनका क्रिएटिनिन स्तर 6 के करीब पहुंच गया है और वह स्टेज वी क्रोनिक किडनी रोग से पीडित थीं। उपचार से कोई सुधार नहीं दिख रहा था और उनका क्रिएटिनिन स्तर और बिगडकर 12 के स्तर पर पहुंच गया। उन्हें सलाह दी गई कि वे या तो जीवन भर हफ्ते में दो दिन डायलिसिस कराएं या फिर किडनी ट्रांसप्लांट (गुर्दा प्रत्यारोपण) कराएं। उसके परिवार ने कुछ वरिष्ट फिजिशियंस से भी संपर्क किया, जिन्होंने अवंतिका के लडकी होने के सामाजिक मसले को ध्यान में रखते हुए उन्हें किसी भी सक्रिय उपचार के खिलाफ सलाह दी। लेकिन उनके पिता ने हिम्मत नहीं हारी और किडनी ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया।
डॉ. गुलाटी के अनुसार, ‘‘मुझे आज भी उसका मामला याद है क्योंकि वह हम सभी के लिए उस समय काफी चुनौतीपूर्ण मामला था। स्कूल जाने वाली एक लडकी जिसमें कई जटिल लक्षण थे, उनके परिवार को ट्रांसप्लांट को लेकर कोई आंशका नहीं थी। यह एक बहुत बड़ा निर्णय था। बहुत सारे सलाह लिए गए क्योंकि ट्रांसप्लांट से उसका जीवन पूरी तरह से बदलने वाला था और उसे आजीवन दावइयां लेनी और सावधानी बरतनी थी। यह निर्णय किया गया कि उनकी मां उसे अपनी किडनी दान करेंगी और ट्रांसप्लांट की पहली तिथि दिसंबर, 2002 तय की गई थी लेकिन टीबी का पता चलने से बाधा खड़ी हो गई। स्कूल से उसे काफी सहयोग मिला, न केवल मनोबल बढ़ाने के लिहाज से, बल्कि उसके ट्रांसप्लांट के लिए पैसे जुटाने में भी स्कूल ने काफी मदद की। अवंतिका ने तमाम बाधाओं के बीच किडनी रोग के खिलाफ अपनी जंग जीतने में सफल रहीं और वह हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस साल वर्ल्ड किडनी डे (विश्व गुर्दा दिवस) का थीम है महिलाएं एवं किडनी का स्वास्थ्य और अवंतिका की किडनी रोग के खिलाफ संघर्ष वास्तविक जीवन का उदाहरण है कि अगर इच्छा हो तो हमेशा मार्ग प्रशस्त होता है।’’
ब्लैडर से किडनी की ओर (उल्टा प्रवाह) यूरिन से प्रवाह के कारण रीफ्लक्स नेफ्रोपैथी यानी किडनी को नुकसान होता है। इसके परिणामस्वरूप प्रभावित बच्चों में पहले पांच साल की उम्र में किडनी पर छोटे दाग हो जाते हैं। रीफ्लक्स नेफ्रोपैथी की समस्या उन लोगों में होती है, जिनकी मूत्रनली ब्लैडर के साथ उचित तरीके से जुड़ी नहीं होती है या उनका वाल्व सही तरह से काम नहीं करता है और मूत्रनली में चोट लगने से भी ऐसा हो सकता है। इसकी वजह से मूत्रनली में संक्रमण, मूत्राशय तंत्र में विषाणु रीफ्लक्स और मूत्रनली मार्ग में असामान्यताएं जैसे जोखिम होते हैं। बच्चों में सीकेडी का यह एक आम कारण है। संदीप गुदुरु, फैसिलिटी डायरेक्टर, एफएचवीके ने कहा, ‘‘अवंतिका का सफर प्ररेणादायी है। अवंतिका और उनके परिवार दोनों के लिए परिस्थितियां काफी भावुक थीं। उनकी हिम्मत और चिकित्सकों की टीम के स्पोर्ट से वह विशम परिस्थिति से बाहर निकल पाई और आज बुलंदियों को छू रही हैं। मैं उन्हें जीवन में सफल होने की कामना करता हूं और आशा करता हूं कि उनकी कहानी ऐसी परस्थिति से गुजरने वाले कई लोगों को प्रेरित करेगी।’’

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