स्वास्थ्य

आखिर क्यों असफल हुआ आई.वी.एफ?

नई दिल्ली। आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के माध्यम से किसी महिला के गर्भवती (प्रेग्नेंसी) होने की सफलता के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं। जैसे महिला की उम्र, अंडे या वीर्य (स्पर्म) की गुणवत्ता, भ्रूण की गुणवत्ता और गर्भाशय की स्थिति आदि। सफल आईवीएफ गर्भधारण के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आईवीएफ इलाज के समय सबसे उपयुक्त आनुवांशिक विश्लेषण वाले भ्रूण का स्थानांतरण गर्भाशय में किया जाए।
आईजीनोमिक्स की लैब डायरेक्टर डॉ. रजनी खजुरिया का कहना है कि शोध बताते हैं कि 28.6 प्रतिशत मरीजों के इलाज में देखा गया है कि गर्भधारण की संभावना के लिए भ्रूण स्थानांतरण को उसके अनुकूल बनाना पड़ा है। यह प्रतिशत बहुत अधिक है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। यहां तक कि अगर गर्भाशय आईवीएफ के अनूकूल नहीं है तो सबसे उपयुक्त आनुवांशिक विश्लेषण वाले भ्रूण भी काम नहीं करते हैं। इसलिए गर्भधारण की असफलता को रोकने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इसमें विश्लेषण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
एंडोमेट्रियल ऊत्तक (टिश्यू) गर्भाशय में एक ग्रहणशील स्तर है जो सफल गर्भावस्था के लिए जिम्मेदार होता है। काफी समय से एंडोमेट्रियल ऊतक की जांच अल्ट्रासाउंड के माध्यम से की जाती रही है। लेकिन इससे अलग ईआरए एक ऐसी जांच है जो एंडोमेट्रियल ग्रहणशीलता के आकलन के लिए 236 जीन का विश्लेषण करता है। खजुरिया कहती हैं कि कई बार तो ऐसा देखा गया है कि सफल आरोपण के बावजूद पहले तीन महीनों में ही गर्भ खराब हो जाता है। अधिकांश मामलों में यह भूण में गुणसूत्र के असामान्य होने की वजह से होता है। करीब 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में गुणसूत्र में असामान्यताओं के कारण अपने आप गर्भपात हो जाता है।
अगर गर्भवती महिला की उम्र 35 साल से अधिक है तो भ्रूण में गुणसूत्र संबंधी असामान्यता होने की संभावना अधिक होती है। कई बार भ्रूण में अधिक या कम गुणसूत्र होने की वजह पुरुषों में कमजोर जनन क्षमता होती भी है जिससे आईवीएफ गर्भधारण असफल हो जाते हैं। ऐसे मामलों में यह गुणसूत्र की जांच कराने की सलाह दी जाती है। इससे कई बार गर्भपात का खतरा रहता है या फिर बच्चे असामान्य जन्म लेते हैं। पीजीएस जो कि एक जेनेटिक तकनीक है, वह गर्भधारण की सफलता को 70-80 प्रतिशत तक बढ़ा देता है। पीजीएस तकनीक भ्रूण के अंदर मौजूद गुणसूत्रीय कमी का आंकलन करता है और यह आईवीएफ के जरिये गर्भधारण की संभावना को 60 प्रतिशत तक बढ़ा देता है।

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