स्वास्थ्य

भारतीयों में बढ़ रहे हैं आर्थाराइटिस के मामले 

– शबनम नबी

भारतीयों में बढ़ रहे हैं आर्थाराइटिस के मामले  भारत की अग्रणी डायग्नाॅस्टिक चेन एसआरएल डायग्नाॅस्टिक्स द्वारा इसकी लैबोरेटरीज में आर्थाराइटिस पर किए गए एक विश्लेषण में पाया गया है कि देश में पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में महिलाएं रूमेटोइड आर्थाराइटिस से पीड़ित हैं। विश्लेषण में भी यह भी पता चला है कि उत्तरी जोन की तुलना में पूर्वी जोन में आर्थाराइटिस के मरीजों में ईएसआर और सीआरपी स्तर का उच्च होना तथा जोड़ों में सूजन आम है। वहीं यूरिक एसिड का स्तर उत्तरी क्षेत्र में पूर्वी जोन की तुलना में अधिक पाया गया है। ये आंकड़े भारत की एसआरएल लैबोरेटरीज में जनवरी 2014 से पिछले साढ़े तीन सालों के दौरान आर्थाराइटिस (हड्डियों का स्वास्थ्य) की जांच हेतू लिए गए 6.4 मिलियन सैम्पल्स पर आधारित हैं। भारत में 180 मिलियन से ज़्यादा लोग आर्थाराइटिस से प्रभावित हैं- इन मामलों की संख्या कई अन्य रोगों जैसे मधुमेह, एड्स और कैंसर की तुलना में अधिक है। भारत की तकरीबन 14 फीसदी आबादी जोड़ों के इस रोग के इलाज के लिए हर साल डाॅक्टर की मदद लोती है। हड्डी एवं जोड़ों के रोगों के निदान के लिए आमतौर पर एक्स-रे, सीटी-स्कैन, एमआरआई और डेक्सा स्कैन का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं रोग की स्क्रीनिंग एवं माॅनिटरिंग के लिए कई अन्य प्रयोगशाला परीक्षण काम में लिए जाते हैं।

लैब टेस्ट

आर्थाराइटिस के निदान के लिए रक्त परीक्षण केवल सहायक परीक्षण होते हैं।

1. इन्फलामेशन टेस्ट 

  • ईएसआर (इरिथ्रोसाइट सेडीमेंटेशन रेट)
  • सीआरपी (सी-रिएक्टिव प्रोटीन)

2. र्यूमेटोइड आर्थाराइटिस के लिए टेस्ट 

  • रूमेटोइड फैक्टर

3. गाउट यानि गठिया के लिए जांच 

  • यूरिक एसिड आॅस्टियो आर्थाराइटिसआर्थाराइटिस का सबसे प्रचलित रूप आॅस्टियो आर्थाराइटिस हर साल भारत में 15 मिलियन व्यस्कों को प्रभावित करता है, इस तरह इसकी प्रसार दर 22 फीसदी से 39 फीसदी है। इसके अलावा भारतीय आबादी में गठिया और रूमेटोइड आर्थाराइटिस भी आमतौर पर पाए जाते हैं। आॅस्टियो आर्थाराइटिस ज़्यादातर महिलाओं में पाया जाता है और उम्र बढ़ने के साथ इसकी सम्भावना बढ़ती है। अध्ययनों में पाया गया है कि 65 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 45 फीसदी महिलाओं में इसके लक्षण मौजूद हैं जबकि 65 साल से अधिक उम्र की 70 फीसदी महिलाओं में इसके रेडियोलोजिकल प्रमाण पाए गए हैं।

रूमेटोइड आर्थाराइटिस

एक स्व-प्रतिरक्षी रोग आमतौर पर जोड़ों के आस-पास मौजूद उतकों को प्रभावित करता है। आमतौर पर व्यस्कों में पाया जाने वाला यह रोग भारत की 0.5 फीसदी-1 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है। महिलाओं में इसके मामले 3 से 4 गुना अधिक पाए जाते हैं। इसकी शुरूआत अक्सर 35-55 आयुवर्ग में होती है।

गाउट या गठिया

इन्फलामेटरी आर्थाराइटिस के सबसे आम रूप गठिया की सम्भावना पुरूषों में 3-4 गुना अधिक होती है और यह 50 वर्ष या अधिक उम्र में पाया जाता है।

अध्ययन के मुख्य परिणाम : 

  • असामान्य ईएसआर और सीआरपी स्तर पूर्वी जोन में अधिक पाए गए (जो जोड़ों की सूजन को बताते हैं)। देश के अन्य हिस्सों की तुलना में इन क्षेत्रों के मरीजों में इन परीक्षणों के परिणाम अधिक असामान्य पाए गए हैं- सीआरपी- 61.23 फीसदी, ईएसआर- 53.78 फीसदी और आरएफ- 14.34 फीसदी।
  • यूरिक एसिड का असामान्य स्तर गठिया को दर्शाता है जो उत्तरी जोन (23.19 फीसदी) और इसके बाद पूर्वी जोन में पाया जाता है।
  • चालीस की उम्र के बाद मरीजों में ईएसआर (56.71 फीसदी, 61-85 वर्ष), सीआरपी (80.13 फीसदी, 85 से अधिक उम्र), आरएफ (12.77 फीसदी, 61-85 वर्ष) और यूए (34.76 फीसदी, 85 से अधिक उम्र) के स्तर असामान्य पाए गए हैं। एसआरएल डायग्नाॅस्टिक्स के प्रेजीडेन्ट- टेकनोलाॅजी एवं मेंटर (क्लिनिकल पैथोलोजी) डाॅ. अविनाश फड़के ने कहा, ‘‘हालांकि शब्द ‘आर्थाराइटिस’ का अर्थ जोड़ों की सूजन से है, इस शब्द का इस्तेमाल 100 से अधिक रूमेटोइड रोगों तथा हड्डियों एवं उतकों को प्रभावित करने वाले रोगों के लिए किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 2025 तक भारत आॅस्टियो आर्थाराइटिस के 60 मिलियन से अधिक मामलों के साथ इस दृष्टि से दुनिया की राजधानी बन जाएगा। विडम्बना यह है कि इसका एक मुख्य कारण भारतीय आबादी की बढ़ती उम्र और दूसरा मुख्य कारण मोटापा है। शुरूआत में दिखने वाले लक्षणों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, समय पर निदान एवं उपचार के द्वारा आप अपने जोड़ों को बचा सकते हैं। जोड़ों का अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए जरूरी है।’’

 

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