स्वास्थ्य

योग के साथ मनाएं हैप्पी दिवाली

जहां आपको दिवाली खुशियां देगी, वहीं यही खुशियां आपके लिए अनेक स्वास्थ्य समस्याओं से जकड़ लेगी। कारण आतिशबाजी का धुआं। यह सिर्फ एक दिन नहीं सप्ताह भर तक छाया रहेगा। वातावरण में शुमार प्रदुषण की मोटी परत और मौसम का बदलना श्वास संबंधित रोगों को खुला न्योता है। इस धुएं से श्वास तंत्र प्रभावित होता है। जिसे यह समस्या है उसके लिए दिवाली घातक साबित होती है। और अनेकों को चपेट में ले लेती है। योगाचार्य सुधीर योगी ने कहा दिवाली में व दिवाली के बाद आप खुलकर सांस लें, इसके लिए सुबह-शात कपालभांति करें। इस प्रणायाम को आज से दिवाली के पदं्रह दिनों तक नियमित अभ्यास करें। बेहतर परिणाम के लिए धीरे-धीरे करें। ज्यादा से ज्यादा पानी पीए। लंबे श्वास लेने और छोड़ने की आदत डालें। इसे आदत में शुमार करने से फेफड़े अच्छे से काम करते हैं। साथ ही सांस नहीं फूलता और रक्त में प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचता है, जो रक्त शु़द्ध करने में सहायक है। इसके अलावा लोम-विलोम प्रणायम का नियमित अभ्यास से प्रदुषित वातावरण में आप खुलकर सांस ले सकते हैं। साथ ही इसका नियमित अभ्यास नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखता है व श्वास संबंधी समस्याओं से सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
योगी सुधीर ने कहा कि इस दिवाली के लिए कपालभाति प्राणायाम सबसे अहम है। कपाल माने माथा और भाति का अर्थ है रोशनी, ज्ञान व प्रकाश। उन्होंने कहा है कि इस प्राणायाम से हमारे मस्तिष्क या फिर सिर के अग्र भाग में रोशनी प्रज्जवलित होती है और हमारे अग्र भाग की शुद्धि होती है। कपालभाति प्राणायाम षटकर्म की क्रिया के अर्न्तगत भी आता है। इसे कपाल शोधन प्राणायाम भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि ज़मीन पर पद्मासन या फिर सुखासन की अवस्था में बैठे फिर पूरे बल से नासिका से साँस को बाहर फेंके, श्वास को लेने का प्रयास न करें, श्वास स्वतः आ जाएगा। जब हमारा श्वास बाहर निकलेगा उसी समय हम अपने पेट का संकुचन करेंगे। पहले धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें, उसके बाद धीरे-धीरे श्वास छोड़ने और पेट के संकुचन की गति बढ़ा दें। शुरू-शुरू में नये अभ्यासी कम से कम 20 चक्रों का अभ्यास करें। एक सप्ताह उपरांत 50 चक्रों तक अभ्यास को बढ़ा दें। ध्यान रहे कमर और गर्दन सीधी हो, आँखें बन्द (या खोलकर भी अभ्यास कर सकते है) हो। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में हो। उन्होंने बताया कि इस प्राणायाम के अभ्यास से नाक, गले एवम् फेफड़े की सफाई होती है, चेहरे पर कांति, लालिमा और ओजस्व आता है। इसे करने से चेहरे की झुर्रियाँ, दाग, फुन्सी आदि दूर होते हैं। कपालभाति प्राणायाम से ईडा नाड़ी और पिंगला नाड़ी की शुद्धि होती है। दमा, तपेदिक, टाईसिल/टॉन्सिल आदि के विकार दूर हो जाते हैं। महिलाओं में गर्भाशय के विकार, मासिक धर्म सम्बंधी कठिनाई और गर्भाशय जनित दोष दूर होते है। यह प्राणायाम पाचन संस्थान को मजबूत बनाता है तथा नर्वस सिस्टम में संतुलन लाता है। इससे कपाल की नस-नाड़ियों की शुद्धि होती है, इसलिए इसके अभ्यास से ध्यान की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होता है।

सावधानियां : हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप के रोगी, मिर्गी स्ट्रोक, हार्निया और अल्सर के रोगी तथा गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास ना करें। श्वास जल्दी छोड़ने से पेट में दर्द हो सकता है।

विशेष : चक्कर आने या फिर सरदर्द की स्थिति में कुछ देर आराम करें और पुनः इसका अभ्यास करें। इसे करते हुए हर दिन कम से कम 15 गिलास पानी अवश्य पियें।

नाड़ी शोधन (लोम-विलोम) प्राणायाम”
योगियों ने इस प्राणायाम का नाम नाड़ी शोधन प्राणायाम या फिर लोम-विलोम प्राणायाम इसलिए रखा है क्योंकि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की 72 हज़ार नाड़ियों की शुद्धि होती है।

विधि : सर्वप्रथम पद्मासन में स्थित हो जाएं। उसके बाद दायें हाथ के अंगूठे से दाहिने नासिका छिद्र को बन्द करें, तत्पश्चात् बांई नासिका से धीरे-धीरे बिना आवाज़ किए श्वास को अंदर भरें। फिर दायें हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुली से बायें नासिका को बंद करें और दायें नासिका से साँस को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। फिर दाहिने नासिका से गहरा श्वास अंदर भरें और दायें हाथ के अंगूठे से दाईं नासिका को बंद कर बायें नासिका से साँस को बाहर निकाल दें। यह इस प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ। शुरू-शुरू में इसके 10 चक्रों का अभ्यास अवश्य करें। कुछ समय पश्चात जब आप अभ्यस्त हो जाये तो आप श्वास को 1, 4, 2 के अनुपात से भरे और छोड़ें। यानि श्वास भरते वक़्त 1 गिनती तक भरें, 4 गिनती तक श्वास को भीतर रोकें और फिर 2 गिनती तक श्वास को बाहर निकालें। ध्यान रहे, कमर, गर्दन और मेरुदण्ड बिल्कुल सीधा होना चाहिए।

लाभ व प्रभाव : इस प्राणायाम के अभ्यास से हमारे शरीर में वात, पित और कफ़ के दोष दूर होते हैं। 72 हज़ार नाड़ियों की शुद्धि होती है तथा रक्त स्वच्छ होता है। हमारे शरीर द्रव्य बाहर हो जाते हैं, जठराग्नि और चर्म रोग दूर होते है, चेहरे पर लालिमा आती है। साधक रोग रहित हो जाता है। हमारे पेनिक्रियाज ग्रन्थि, यकृत और प्लीहा की मसाज होती है। आँखों की रोशनी बढ़ती है और नेत्रों के विकार दूर हो जाते हैं। हमारे शरीर को ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सीजन प्राप्त होती है। विचारों में सकारात्मकता आती है तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है।

सावधानियाँ : इस प्राणायाम को सभी लोग कर सकते हैं। इसे करते समय मुँह से श्वास नहीं लेना चाहिए। किसी भी प्रकार की असुविधा होने पर प्राणायाम का अभ्यास न करें। श्वास की गति धीमी रखें। कमर, पीठ, रीढ़ और गर्दन बिल्कुल सीधी रखें।

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