स्वास्थ्य

पूर्व अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी को लिवर ट्रांसप्लान्ट से मिली नई जिंदगी

गुरूग्राम। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई), गुरूग्राम में बटाला, पंजाब निवासी 58 वर्षीय राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी का लिवर ट्रांसप्लान्ट सफलतापूर्वक पूरा किया गया। 2016 में एक लोकल अस्पताल में मुख्तार सिंह को लिवर की बीमारी का पता चला था। उस वक्त उनका वजन 115 था। लगभग 2 सालों तक मेडिकेशन पर रहने के बाद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया। बल्कि सारा तरल पदार्थ उनके पेट में जमा होने लगा, दोनो पैरों में सूजन आ गई, आँखों का रंग पीला हो गया। इसके साथ ही अब वे मानसिक रूप से भ्रमित भी रहने लगे थे। इस दौरान उनका वजन 135 किलो तक बढ़ गया और जांच से लिवर सिरोसिस की पहचान हुई। समस्या को देखते हुए मरीज को फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई), गुरूग्राम में रेफर कर दिया गया, जिससे उनका जल्द से जल्द लिवर ट्रांसप्लान्ट किया जा सके। उनके 28 वर्षीय बेटे, जो विदेश में रहता है, ने लाइव लिवर डोनर बनकर अपने पिता की मदद की। यह पूरी प्रक्रिया डॉ. विवेक विज, चेयरमैन, एलटीपी एंड हेपेटो-पैनक्रीटो-बायलरी (एचपीबी) सर्जरी, फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली एनसीआर और डॉ.आशीष सिंघल, वरिष्ठ सलाहकार, एलटीपी एंड एचपीबी सर्जरी के अंतर्गत उनकी टीम द्वारा पूरी की गई।
डॉ. विवेक विज ने बताया कि, “मरीज को जब अस्पताल में भर्ती किया गया था, उस वक्त उसकी लिवर सिरेसिस की बीमारी पहले ही एडवांस चरण में थी। सिरोसिस लिवर स्कारिंग का अंतिम चरण होता है, जहां लिवर की कार्यक्षमता गंभीर रूप से प्रभावित होती है। उसके पेट और पैरों में बहुत लंबे समय से सूजन थी। पेट में तरल पदार्थ और सूजन के कारण मरीज का वजन 3 सालों में 20 किलो बढ़ चुका था। लिवर भी पूरी तरह खराब हो चुका था। इसका एकमात्र समाधान लिवर ट्रांसप्लान्ट था। मरीज के बेटे ने सभी टेस्ट और जांचों के बाद अपने पिता को लिवर दान कर उन्हें जीवनदान देने में हमारी सहायता की।”
डॉ. आशीष सिंघल ने बताया कि, “खराब लिवर सिरोसिस से पीड़ित रोगियों के लिए एलटीपी का कोई इलाज नहीं है। ऐसे रोगी एलटीपी के बिना केवल 6 महीनों से 2 साल तक ही जीवित रह पाते हैं। लिवर सिरोसिस के रोगियों में लिवर कैंसर का खतरा भी होता है। समस्या यह है कि रोगी को एलटीपी सेंटर ले जाने में देर की जाती है, जिसके कारण उसे लिवर डोनर मिलने में भी देर हो जाती है। पिछले कई सालों में, डोनर सर्जरी एक सुरक्षित प्रक्रिया बन चुकी है। लिवर एक अनोखा अंग होता है जो कुछ महीनों या एक साल के अंदर अपने सामान्य आकार में बढ़ जाता है। परिवार का कोई सदस्य जिसकी उम्र 18-50 वर्ष हो, स्वस्थ हो और जिसमें कोई मेडिकल समस्या न हो तो वह लाइव डोनर बनकर लिवर दान कर सकता है। इसके अलावा, इस लेप्रोस्कोपिक लिवर डोनर सर्जरी में पुरानी लिवर डोनर सर्जरी की तुलना में कई फायदें हैं, जैसे कि कम दर्द, तेज रिकवरी और न के बराबर निशान आदि।
मुख्तार सिंह ने बताया कि, “मैने अपनी सारी जिंदगी कबड्डी का खिलाड़ी बनकर बिताई है और हमेशा शारीरिक रूप से सक्रिय रहा हूँ। 3 साल पहले जब मुझे पीलिया हुआ तो उसकी जांच के दौरान मुझे लिवर की बीमारी का पता चला। उसके बाद 2 सालों तक मैने मेडिकेशन लिया। हालत में सुधार की बजाए 3 सालों में मेरा वजन 20 किलो बढ़ गया। मेरे पैरों में लगातार सूजन बनी रहती थी और त्वचा भी काली पड़ गई थी। मेरे लिए कोई भी काम करना संभव नहीं रह गया था। जांच कराने पर डॉक्टर ने बताया कि मेरा लिवर पूरी तरह खराब हो चुका है, इसलिए मुझे लिवर ट्रांसप्लान्ट कराना पड़ा। शुरुआत में मैं ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया से डरा हुआ था लेकिन एफएमआरआई, गुरूग्राम में डॉक्टरों की काउंसलिंग के बाद मैं इस प्रक्रिया के लिए तैयार हो गया। सर्जरी को अब 9 महीने हो चुके हैं और मैं पूरी तरह स्वस्थ महसूस कर रहा हूँ। मेरा वजन भी कम हो गया है। अब मैं रोज 7 किलोमीटर चलता हूँ और 12 किलोमीटर साइकिल चलाता हूँ। इस नई जिंदगी के लिए मैं सभी डॉक्टरों का शुक्रिया करता हूँ।”

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