लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

जीवनशैली में बदलाव और खराब आदतों के साथ शारीरिक निष्क्रियता के कारण बढ़ रहे है स्ट्रोक के मामले : डॉ. विपुल गुप्ता

स्ट्रोक के लगभग 70 प्रतिशत मामलों की रोकथाम या इलाज संभव है। इस तथ्य के साथ, आर्टेमिस-अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस ने आज गुरूग्राम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सामाजिक जागरुकता बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। जहां, 25 प्रतिशत आबादी अपने जीवन में कभी न कभी स्ट्रोक अटैक का शिकार अवश्य बनती है, वहीं शारीरिक सक्रियता स्ट्रोक की रोकथाम का सबसे अच्छा विकल्प है। इस साल का थीम है- जॉइनदीमूवमेंट, जिसके अनुसार लोगों को सक्रीय जीवनशैली के अनगिनत फायदों के बारे में पता होना जरूरी है। जिसमें स्ट्रोक की रोकथाम भी शामिल है। वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार, विश्व स्तर पर प्रति 40 सेकेंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक से ग्रस्त पाया जाता है और प्रति 4 मिनट में एक व्यक्ति स्ट्रोक के कारण मर जाता है। गुरूग्राम स्थित आर्टेमिस-अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेस में न्यूरोइंटरवेंशन निदेशक, डॉ. विपुल गुप्ता ने बताया कि, “जीवनशैली में बदलाव और खराब आदतों के साथ शीरीरिक गतिविधियों में कमी, धूम्रपान और शराब के अत्यधिक सेवन के कारण देश की युवा आबादी स्ट्रोक का शिकार बन रही है। टेक्रनोलॉजी ने भले ही हमारे जीवन को कितना ही आसान बना दिया हो, लेकिन इसके कारण शारीरिक निष्क्रियता बढ़ी है। बढ़ते तनाव और डायबिटीज व हाइपरटेंशन के बढ़ते मामलों के कारण जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आने वाले लोगों की उम्र में बड़ा बदलाव आया है। नियमित रूप से किया गया व्यायाम न सिर्फ समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है, बल्कि शरीर को कई बीमारियों से दूर रखता है। सक्रिय रहने के कई तरीके उपलब्ध हैं, आपको बस नई गतिविधियों में शामिल होने की जरूरत है। यदि आप वर्तमान में किसी मेडिकेशन पर हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। वे नई एक्सरसाइज और गतिविधियां अपनाने में आपकी मदद करेंगे।”
डॉ. विपुल गुप्ता के अनुसार, अन्य विकसित देशों की तुलना में भारतीयों में स्केमिक स्ट्रोक कम उम्र में ही विकसित हो जाती है। आम कारकों जैसे कि खराब आहार, शराब और धूम्रपान के अलावा शारीरिक निष्क्रियता भारतीयों में बीमारी का एक बड़ा कारण बनती है। एक अध्ध्यन के अनुसार, अमेरिका में स्ट्रोक से ग्रस्त होने वाले रोगियों की औसत आयु 71 वर्ष की तुलना में भारतीयों में यह आयु 52 वर्ष थी। अमेरिका में 60 प्रतिशत आबादी की तुलना में भारत के 94 प्रतिशत मरीजों में स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण शारीरिक निष्क्रियता थी। इस अध्ध्यन से यह भी पता चला कि अमेरिका के मरीजों (जो पहले ही मिनी स्ट्रोक से गुजर चुके थे) की तुलना में स्ट्रोक से ग्रस्त केवल 2 प्रतिशत भारतीय मरीज नियमित रूप से एक्सरसाइज (हफ्ते में 5 दिन) करते थे।
भारत में स्ट्रोक के मौजूदा बोझ के अलावा, कोविड महामारी ने विश्व स्तर पर एक नई महामारी को जन्म दिया है-डिजिटल स्क्रीन की लत। लॉकडाउन से लेकर अभी तक आम व्यक्ति स्क्रीन पर जितना वक्त गुजारता है, वह उतनी देर निष्क्रीय होता है इसलिए निष्क्रीयता और बढ़ता स्क्रीन टाइम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अध्ध्यनों के अनुसार, डिजिटल स्क्रीन के इस्तेमाल का समय हमारे जीवनकाल पर सीधा असर डालता है। अध्ध्यन के अनुसार, एक घंटा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल हमारी जिंदगी से 22 मिनट कम कर देता है। स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर का कारण भी बन सकता है। अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेस में न्यूरोइंटरवेंशनल सर्जरी और स्ट्रोक न्यूरोलॉजी के डॉ. राजश्रीनिवास पार्थसार्थी के अनुसार, “स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है, जिसमें अब स्ट्रोक भी जुड़ चुका है। 2 घंटों के बाद, स्क्रीन पर बिताया गया हर घंटा स्ट्रोक के खतरे को 20 प्रतिशत तक बढ़ाता है, जो युवाओं के बीच स्ट्रोक का एक आम कारण बना हुआ है। विशेषकर युवाओं में स्ट्रोक के खतरे को कम करने के लिए डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन बेहद जरूरी है।”
समय पर इलाज के साथ, स्ट्रोक के मरीज को ठीक करना संभव है। लगभग 70 प्रतिशत मामलों में इसके लक्षणों को कम या पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। सही इलाज में एक मिनट की देरी भी मस्तिष्क की 20 लाख कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, इसलिए समय पर इलाज कराना आवश्यक है। स्ट्रोक के उचित इलाज के लिए मरीज को अटैक के 6 घंटों के अंतर्गत अस्पताल लाना जरूरी है। इसके बाद लगभग 80 प्रतिशत मामलों में मरीज विकलांगता का शिकार बनता है।
डॉ. विपुल गुप्ता ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “स्ट्रोक का इलाज संभव है इसलिए इस विश्व स्ट्रोक दिवस पर हम लोगों तक सही मैसेज पहुंचाना चाहते हैं। स्ट्रोक की शुरुआती पहचान इलाज को आसान और परिणामों को बेहतर कर देती है। हम लोगों को स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लक्षणों को फास्ट कहा जाता है, यानी कि उतरा हुआ चेहरा, हाथों में कमजोरी, बोलने में मुश्किल और एंबुलेंस को बुलाने का समय शामिल हैं। हम लोगों को स्क्रीन का कम इस्तेमाल और शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की सलाह देते हैं।”

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