लाइफस्टाइलसौंदर्य

क्या है सुंदरता का पैमाना जानेंगे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सौन्दर्य विशेषज्ञ शहनाज हुसैन से

सवाल 1: हमारे समाज में खासकर भारतीय समाज की बात करे तो गोरा रंग ही सुंदरता का पैमाना रहा है। मेट्रोमैनियल एड में भी कहा जाता है – गौरवर्ण लड़की/लड़का चाहिए। आखिर इसके पीछे क्या साइकी या इतिहास है?

उत्तर : – भारत में गोरी रंगत की चाहत फेयरनैस क्रीम या लोशन के बाजार में आने से पहले भी रही हैं अगर आप यह पूछें कि भारतीय गोरी रंगत को इतना ज्यादा पसंद क्यों करते हैं तो इसका कोई सीधा उत्तर नहीं मिलेगा। मेरा मानना है कि यह भारतीयों के सुन्दरता के विचार से मेल खाता हैं। विभिन्न देशों में सुन्दरता के अलग-अलग पैमाने हैं। भारत में गोरे रंगत की महिला को सुदर माना जाता है। भारत में बहुत विभिन्नता पाई जाती है। यहां काफी गोरी रंगत से काली/सांवली रंगत दोनों ही पाई जाती है इसलिए लोगों को लगता है कि भारतीय होकर गोरी रंगत भी पायी जा सकती है। यह भी सम्भव है कि अगर सभी भारतीयों की काली/सांवली रंगत होती तो शायद उनका सुन्दरता के प्रति अलग दृष्टिकोण होता। अगर हम इस प्रश्न का उत्तर ढूँढे कि भारतीय, गोरी रंगत को ही क्यों पसंद करते हैं तो शायद इसका जवाब ढूँढने के लिए हमें इतिहास या सामाजिक विज्ञान के पन्नों को पलटना पड़ेगा। व्यापारिक विज्ञापनों में ज्यादातार गोरी रंगत की महिला या पुरूषों को ही प्रचारित किया जाता है तथा इससे भी यह प्रभाव पड़ता है कि सुन्दरता का अर्थ गोरी त्वचा से माना जाना चाहिए। कुछ लोगों का यह भी मत है कि भारत में सदियों तक ब्रिटिश आधिपत्य रहा है जिसके कारण काली रंगत के भारतीयों मे हीन भावना भर गई।

प्रशन 2 : सुंदरता का संबंध रंग से ही क्यों होना चाहिए? क्या अब सुंदरता के पैमाने बदलने का वक्त नहीं आ गया है?

उत्तर :- मैंने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि त्वचा की सुन्दरता अच्छे स्वास्थ्य पर ही निर्भर करती है ना कि त्वचा की रंगत पर। लेकिन इसके बावजूद यह भी सत्य है कि लोगों में गोरी रंगत की चाहत लगातार बनी रहती है। मैंने सांवली त्वचा के मेकअप और ‘‘ग्रूमिंग’’ पर काफी बार लिखा है। अगर आप स्वस्थ्यवर्धक तथा चमकीली त्वचा रखती हैं तो त्वचा की रंगत कोई ज़्यादा मायने नहीं रखती। वास्तव में सांवले रंग की महिला गोरी त्वचा की महिला के बराबर या कई बार ज्यादा सुन्दर तथा आकर्षक दिखती है। सांवला रंग ज्यादातर वैभवता को प्रर्दशित करता है। अगर आप अपने सौन्दर्य में मेकअप और रंगों का सही मिश्रण अपनाते हैं तो त्वचा की रंगत का कोई महत्व नहीं रह जाता। भारतीय समाज में सौन्दर्य मापने के पैमाने में बदलाव लाने की अत्यन्त आवश्यकता है तथा इस दिशा में सही प्रयास करने का यह सबसे उपयुक्त समय है। मेरे विचार में गोरी रंगत के लोगों को ज़्यादा श्रेष्ठ तथा कामयाब दिखाये जाने वाले विज्ञापन बन्द किए जाने चाहिए।

सवाल 3 :– एक इनर ब्यूटी यानी मन की सुंदरता भी होती है। इसे किस तरह से परिभाषित करेंगी? यह तमाम तरह की सुंदरता से किस तरह ऊपर है?

उत्तर :- सुन्दरता को मानसिक, शारिरिक तथा आध्यात्मिक समग्र रूप से देखा जाना चाहिए तथा मैं इसे ‘‘आन्तरिक सुन्दरता’’ के रूप में परिभाषित करूंगी। सुन्दरता कभी भी आन्तरिक सौन्दर्य के बिना पूरी नहीं हो सकती। शरीर, मन तथा आत्मा का सुरीला मिश्रण ही हमारे अस्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करता है। प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों ने आन्तरिक आत्मा या मन की पहचान के लिए योग, प्राणायाम तथा ध्यान पर केन्द्रित करने की सलाह दी है। यदि आप प्राणयाम के बाद योग और ध्यान की प्रक्रिया अपनाते हो तो इसे आज की आधुनिक जीवन शैली में आसानी से जोड़ा जा सकता है। योग से मानसिक तनाव कम होता है तथा सेहत की तन्दरूस्ती को बल मिलता है। ध्यान से मन को शांतचित करने में प्रभावी मदद मिलती है। हमेशा यह ध्यान रखें कि शांतचित्त और धीरज आपके अन्दर पहले से ही विद्यमान है। आपको महज उसकी पहचान करनी है।

सवाल 4 :- जो गोरा नहीं, उसे केवल दूसरे ही बदसूरत नहीं मानते, बल्कि खुद उस व्यक्ति में भी हीन भावना आ जाती है कि मैं गोरा नहीं हूं तो सुंदर नहीं हूं। यह भावना कैसे दूर होगी?

उत्तर :- मेरा मानना है कि समाज तथा परिवार का नजरिया बदलना चाहिए। गोरी रंगत को कोई भी महत्व नहीं देना चाहिए तथा गोरी और सांवली त्वचा मे तुलना या समानता करने की कतई कोशिश नहीं की जानी चाहिए। बच्चों की प्रतिमा को प्राथमिकता देते हुए उनमे विद्यमान गुणों को विकसित किया जाना भी चाहिए। किसी भी आदमी में संगीत, खेलकूद, पेंटिंग, वाद्ययन्त्र बजाने की कला से उसमें आत्मविश्वास का संचार होता है। आत्मविश्वास जीवन में सफलता की राह आसान बना देता है जिससे त्वचा की रंगत अपनी अहमियत खो देती है। मानसिक सोच व व्यवहार में बदलाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होते है। माता-पिता को अपने बच्चों की त्वचा को रंगत को कभी अहमियत नहीं देनी चाहिए तथ बच्चों की त्वचा की रंगत में निखार की कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि त्वचा की सेहत पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अक्सर महिलाऐं मुझसे अपनी बेटियों की त्वचा की रंगत में निखार लाने के लिए सौन्दर्य टिप्स की मांग करती रहती हैं। जब माताओं का ही यह दृष्टिकोण होगा तो लड़कियों में हीन भावना स्वतः ही प्रवेश कर जाएगी।

सवाल 5 :- सांवली त्वचा के प्रति पुर्वाग्रह की शुरुआत अक्सर घर से होती है। तो इस स्वभाव को दूर करने की शुरुआत भी घर से नहीं होनी चाहिए? और इसके अगले कदम के तौर पर नैतिक शिक्षा में इस चीज को शामिल नहीं करना चाहिए?

उत्तर :- मैंने पहले भी कहा कि समाज, परिवार तथा व्यक्तिगत मानसिक सोच को बदलने की तत्काल जरूरत है। माता-पिता को बच्चों की त्वचा की रंगत के प्रति कतई संवेदनशील नहीं होना चाहिए। उन्हें यह ध्यान में रखना चाहिए कि रंगत निखारने में उपयोग की जा रही फेयरनैस क्रीम तथा ब्लीच में रसायनिक तत्व मौजूद होते हैं जिससे त्वचा को स्थाई रूप से नुकसान हो सकता है। बच्चों की रंगत निखारने के उपायों की बजाय मां-बाप को बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा व्यक्तित्व के समग्र विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
मैं त्वचा की रंगत को निखारने वाली फेयरनैस क्रीम/लोशन के बारे में एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया की ताजा गाईडलाइन्स का स्वागत करती हूं। भारत में त्वचा की रंगत निखारने, गोरे रंगत की गारणअी वली फेयरनैस क्रीम लोशन की जबरदस्त बिक्री को विचारों और मानसिक सोच में बदलाव के माध्यम से नियमित या नियन्त्रित करने की जोरदार आवश्यकता है। विज्ञापनों में एक सांवली त्वचा के व्यक्ति को रंगत के आधार पर दुखी, उदास या खिन्न प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए। मेरी यह धारणा है कि विज्ञापनों में सामाजिक, नस्लीय, मनोभाव तथा प्रवृति दिखाने पर रोक लगनी चाहिए। लोगों को यह अहसास दिलाने की जरूरत है कि सुन्दरता का पैमाना त्वचा की रंगत कतई नहीं होती बल्कि सुन्दरता मानव का आन्तरिक अहसास होता है। मैंने पहले भी कहा है कि सुन्दरता को सम्पुर्ण समग्रता के रूप में देखा जाना चाहिए। मानव का व्यक्तित्व तथा उसका समाज में व्यवहार ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

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