राष्ट्रीय

गंगा को लेकर स्वामी सानंद की मांगों को पूरा करे सरकार

दिल्ली। सरकार ने सत्ता में आते ही गंगा-पुनर्जीवन तो बनाया लेकिन दूसरी ही तरफ अविरलता के बुनियादी मुद्दों को लगातार नजर अंदाज किया। जून-2013 की आपदा के बाद सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2014 में वर्तमान सरकार ने यह स्वीकार किया कि गंगा पर बांधों के निर्माण ने इसके पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी माना कि बांधों ने आपदा को बढ़ाने में आग में घी का काम किया है। वर्ष-2016 में गंगा-मंत्रालय ने भी बांधों के निर्माण को गंगा-पुनर्जीवन की दिशा में खतरा बताया। आश्चर्य है कि इन सब वैज्ञानिक तथ्यों, रिपोर्टों और खुद के हलफनामे में स्वीकारे सत्य के विपरीत सरकार ने गंगा के उद्गम हिमालय में ही बांधों का निर्माण बदस्तूर जारी रखा, जिन बांधों को सरकार ने आपदा के लिये जिम्मेदार ठहराया गया उन्हें ही निर्माण के लिये हरी झंडी दे दी गयी। न्यायालय में यह मुद्दा लंबित कर लटका दिया गया। यही स्थिति गंगा में खनन के साथ भी रही जहां पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट और एन.जी.टी. तथा सी.पी.सी.बी. के निर्देशों के बावजूद कुम्भ नगरी हरिद्वार में गंगा के पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्मम विनाश जारी रहा। वैज्ञानिक तथ्यों, रिपोर्टों की अनदेखी कर गंगा की अविरलता से खिलवाड़ और इस कारण बिगड़ते गंगा जी के स्वास्थ्य ने स्वामी सानंद जी को अनशन हेतु बाध्य किया।
सरकार ने स्वामी सानंद की मुख्य 2 मांग, बांधों के निर्माण और खनन पर तत्काल रोक की कार्यवाही अभी तक नहीं की है. एक तरफ सरकार संसद में गंगा-एक्ट लाने की घोषणा कर रही है और दूसरी तरफ गंगा और उसके पारिस्थितिकीय तंत्र को उसके उद्गम हिमालय में ही क्षत-विक्षत किया जा रहा है! यह कैसा गंगा-पुनर्जीवन हुआ ?? एक तरफ निर्मलता के नाम पर हजारों करोड के बजट आवंटित किये जा रहे है वहीँ दूसरी तरफ गंगा को उसकी उद्गम घाटियों में ही बलपूर्वक बाँध उसकी अविरलता को समाप्त करने के लिये, किये जा रहे वनों के कटान, विस्फोटों, सुरंगों के निर्माण, पहाड़ों के ध्वस्तीकरण जैसी प्रदूषणकारी गतिविधियों में हजारों करोड रुपये लगा इसे विकास बताया जा रहा है ! यह कैसी विडम्बना है ??
सरकार ने निर्माणाधीन तो दूर प्रस्तावित बांधों के निरस्तीकरण तक की घोषणा नहीं की। जो ई-फ्लो की अधिसूचना जारी की गयी है उसमे बांधों के निर्माण पर रोक जैसी कोई घोषणा नहीं है, अपितु बांध-निर्माण को न्यायोचित ठहराने का प्रयास है। उस पर भी ई-फ्लो की मात्रा इतनी कम और अपर्याप्त है जैसे गंगाजी पर एहसान जताया जा रहा हो। इस अधिसूचना और सरकार के प्रस्तावित एक्ट के ड्राफ्ट द्वारा सरकार ने गंगा के शोषण हेतु एक नया उपाय निकाला है जिसे कानूनी-जामा पहनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस तरह ये अधिसूचना और गंगा-एक्ट का सरकारी ड्राफ्ट न केवल सानंद जी की मांगों की उपेक्षा है अपितु गंगा की अविरलता के मुद्दे से खिलवाड़ है। यह पूरे मुद्दे को ही धूमिल कर भटकाने और इस तरह गंगा के शोषण को जारी रखने का प्रयास है।

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