राष्ट्रीय

सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय सोशल मीडिया पर डाईबीटीज इंसुलिन इंजेक्शन के प्रति गलत भ्रम फैलाने वालो को रोकें : यूनाइटेड डाईबीटीज फोरम

मुंबई। आजकल लोगों में डाईबीटीज (मधुमेह) की बीमारी काफी देखने को मिलती, जोकि आगे चलकर अन्य बीमारियों का कारण बनती है। जोकि दो प्रकार की होती है, एक टाईप १ जोकि ५ प्रतिशत मरीजों को ही होती है, जोकि ज्यादातर बच्चों में होती है और उसका इलाज केवल नियमित तौर पर इंसुलिन इंजेक्शन ही एक है और टाईप २ यह ९५ प्रतिशत मरीजो को होता है और यह दवाई व खानपान से कंट्रोल होता है और १० या १५ साल बाद इनमें से काफी लोगों को भीं इंसुलिन इंजेक्शन की जरुरत पड़ती है। टाईप १ डाईबीटीज जो ज्यादातर बच्चों में होता है, उसका इलाज केवल नियमित तौर पर इंसुलिन इंजेक्शन है, जोकि देश विदेश सभी जगह इसका इलाज एक ही है। लेकिन कुछ लोगो द्वारा सोसल मिडिया पर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि इसका इलाज उनकी गोली, योग व ध्यान इत्यादि से ठीक हो सकता है, जिससे लोगों के झांसे में आने के कारण यदि बच्चों इंसुलिन इंजेक्शन ना दिया गया या बंद कर दिया गया तो उनकी जान को खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए ‘यूनाइटेड डाईबीटीज फोरम’ के अध्यक्ष डॉ. मनोज चावला, सेक्रेटरी डॉ. राजीव कोविल व ट्रैजरर डॉ. तेजस शाह ने स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार व अन्य संस्थाओं को लेटर भेजकर आग्रह किया गया कि भ्रम फैलाने को रोका जाय।
‘यूनाइटेड डाईबीटीज फोरम’ एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. मनोज चावला कहते है, ‘इंसुलिन पाचक ग्रंथि (पेंक्रिया) द्वारा बनाया जाता है, यह शरीर में कार्बोहाइड्रेट को एनर्जी में बदलने का काम इंसुलिन करती है। जब पेंक्रिया में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है, ग्लूकोज एनर्जी में परिवर्तित नहीं हो पता है। और ब्लड वेसेल्स में जमा होकर डाइबिटीज की बीमारी का रूप ले लेता है। टाईप १ डाईबीटीज का इलाज केवल इंसुलिन इंजेक्शन यदि लोग गलत अफवाहों या बिना पढ़े-लिखे के कहने में आकर इंसुलिन इंजेक्शन बंद करते है तो बच्चों की जिंदगी खतरे में आ सकती है। इसलिए सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय सोसल मिडिया ऐसे गलत भ्रम फैलाने वालो को रोके, इसलिए यह पत्र भेजा गया है।

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