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जीएफएसयू ने भारत में डीएनए सबूत के लिए ‘कलैक्ट एंड टेस्ट‘ की आवाज उठाई

गांधीनगर। जीएफएसयू के महानिदेशक डाॅ. जेएम व्यास के नेतृत्व में विशेषज्ञों के पैनल ने अपराध के लडने तथा त्वरित न्याय में फोरेंसिक डीएनए टेक्नोलाॅजी की भूमिका पर प्रकाश डाला और भारत में फोरेंसिक डीएनए इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने की आवश्कता पर जोर दिया। कोविड-19 लाॅकडाउन के बाद अपराध में विशेषकर यौन अपराध तथा बलात्कार के मामलों में अपेक्षित उछाल के मद्देनजर इस प्रयास का उद्देश्य प्रथम पंक्ति उत्तरदाता को आपराधिक जांच में डीएनए फोरेंसिक सबूत के ’कलैक्ट एंड टेस्ट‘ के प्रोटोकाॅल को स्पष्ट तौर पर समझाना है।
पिछले दो माह की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि प्रारंभिक गिराव के बाद, लाॅकडाउन की अवधि के दौरान महिलाओं के खिलाफ प्रति हिंसा में निरंतर वृद्वि हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग को 25 मार्च तथा 22 अप्रैल 2020 के बीच में 1,000 से अधिक घरेलू हिंसा की शिकायतें प्राप्त हुई। महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न (Sextortion), इस दौरान अपराधियों ने उन्हें ऑनलाइन टारगेट किया। सबसे अधिक चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि अधिकांश बलात्कार परिवार, मित्रों तथा पडोसियों द्वारा किये गये हैं।
अधिकारियों का यह कि लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध में राहत के बाद आने वाले दिनों में यौन हिंसा में उछाल होगा और ऐसे में सिस्टम को चलाने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं के सख्त पालन के साथ-साथ एक मजबूत फोरेंसिक डीएनए के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अपराध स्थल से प्राप्त गुणवत्तायुक्त सबूतों का त्वरित संग्रह और परीक्षण सुनिश्चित होगा, जिससे त्वरित न्याय तथा अपराध में कमी होगी।
जीएफएसयू के महानिदेशक डाॅ. जेएम व्यास ने मंच को संबोधित करते हुए कहा, ”डीएनए प्रोफाइलिंग बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों का पता लगाने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबूत बन गया है। इसने न केवल जांच की प्रक्रिया को सरल बनाया है बल्कि न्यायिक ट्रायलों को गति देने में भी मदद की है। अपराध जांच, विवादित पितृत्व/मातृत्व मामलों, अज्ञात शवों की पहचान तथा लापता व्यक्तियों की पहचान के मामलों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने डीएनए अधिनियम अधिनियमित करने के लिए संसद में एक विधेयक प्रस्तुत किया है। यह डीएनए विश्लेषण की पूरी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा।“
डाॅ. पिंकी आनंद, अतिरिक्त साॅलिसिटर जनरल इंडिया ने कहा, ”कम आवागमन, घर के भारत रहने और आपदा के दौरान सामाजिक संपर्क की कमी ने निश्चित रूप से रिपोर्ट की गई घटनाओं की संख्या में कमी आई है और लाॅकडाउन के बाद मामलों की संख्या में निश्चित रूप से वृद्वि होगी।“
उन्होनें कहा, ”बलात्कार और यौनउत्पीडन के शिकार लोगों का केस देखने वाले पुलिस तथा हस्पतालों के लिए एसओपी का एक अनिवार्य सेट होना चाहिए, जिसमें डीएनए सबूत का संग्रह शामिल होना चाहिए। डीएनए साक्ष्यों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, सरकार भी जल्द से जल्द डीएनए बिल का प्रबंधन करने की कोशिश कर रही है। यह मामला अभी भी चर्चा के लिए स्थायी समिति के पास है। पिछले दो वर्षों में, इस विषय पर जागरूकता के स्तर में वृद्धि के कारण, डीएनए अपराध का परीक्षण दोगुना हो गया है। हमें दो बातों का ध्यान रखना चाहिए, एक बलात्कार के मामले में सबूतों को संरक्षित करना और दूसरा, डीएनए परीक्षण की मांग। और अगर हम ऐसा कर सकते हैं तो हम इस शहर को, देश को, हमारी महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित जगह बना पाएंगें।“
गुजरात के आईपीएस अधिकारी केशव कुमार ने जोर देकर कहा, “डीएनए में किसी आरोपी को दोषी ठहराने की बडी संभावना है और यह फोरेंसिक सबूत का एक सर्वोत्तम मापदंड है। बलात्कार के मामलों में पीडित तथा आरोपी दोनों से ही जैविक सबूतों को एकत्र किया जा सकता है। चुनौती यह होती है कि ऐसे सबूतोें को सही फोरेंसिक प्रक्रिया द्वारा एकत्र किया जाये। बलात्कार के मामलों में डीएनए दोषी को दंडित करने के लिए डीएनए सबसे मजबूत वैज्ञानिक फोरेंसिक सबूत हो सकता है।”
पकडे जाने के डर से यौन शिकारी, शिकार को मारने और साक्ष्य से छुटकारा पाने के लिए शरीर को नष्ट करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैै, इस आशंका को संबोधित करते हुए कुमार ने कहा कि पीडित के शरीर को मारने और जलाने से भी डीएनए निष्कर्षण और दोषियों की सजा को रोका नहीं जा सकता। पीडित के नाखून के किनारो के त्वचा की कोशिकओ, बाल, जैसे और आरोपियों के सबूत प्राप्त करने की संभावनाएं अच्छी संख्या में होते हैं। डीएनए को जली हुए हड्डियों से भी निकाला जा सकता है। इससे भी अधिक, अपराध के दृश्य की एक सूक्ष्म जांच, जहां शरीर को जलाया गया हो, वहां कई चित्र-संकेत भी बडी घटना की पुष्टि करने के लिए उपस्थित होते हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक सूद ने कहा, “डीएनए साक्ष्य निश्चित रूप से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रवेश कर चुके हैें। निर्भया का मामला एक उत्कृष्ट उदाहरण है जहां जधन्य बलात्कार-हत्या के दोषियों को फांसी देने के लिए डीएनए सबूत का इस्तेमाल किया गया था। पहले की तुलना में आज अपराध के दृश्यों से अधिक डीएनए को उठाया जा रहा है, हांलाकि यौन अपराधों के सभी मामलों में डीएनए सबूत होने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।”
बढते अपराधों, सजा दरों में गिरावट और अदालतों में मामलों की एक अभूतपूर्व लम्बित मामलों के बावजूद, भारत में डीएनए केसवर्क के लिए बहुत बडी संभावनाएं है। आधिकारिक आंकडें महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में नाटकीय वृद्धि दिखाते हैं, जो 2012 में 24,923 से बढकर 2018 में 33,356 हो गये हैं – 34 प्रतिशत की छलांग। एनसीआरबी के आंकडों के अनुसार, भारत में हर 15 मिनट में एक महिला का बलात्कार किया जाता हे। जबकि बलात्कार के चार मामलों में से केवल एक में बलात्कार के दोष सिद्ध होते हैं।
इसके विपरीत, अपराध स्थल साक्ष्य से विकसित डीएनए प्रोफाइल की अनुमानित संख्या वर्ष 2017 में परीक्षण किये गये 10,000 मामलों से दोगुनी होकर 2019 में लगभग 20,000 हो गई है। प्रोफाइल की संख्या में वृद्धि के बावजूद परीक्षण की मात्रा कम है, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ किये गये अपराधों में।
यह वर्चुअल कांफ्रेंस पहले से ही चल रहे एक प्रयास #डीएनएफाइट्सरेप (DNAFightsRape) का हिस्सा था, जिसे इंटरनेशनल डे फाॅर दि एलीमिनेशन ऑफ वाॅयलेन्स अगेन्सट वूमेन के मौके पर यौन हिंसा से पीडित महिलाओं तथा बच्चों को न्याय दिलाने में डीएनए फोरेंसिक के प्रति जागरूकता लाने के लिए लांच किया गया था।
जीएफएसयू के महानिदेशक डाॅ. जेएम व्यास की अघ्यक्षता में गठित विशेषज्ञों के पैनल में भारत सरकार की अतिक्ति साॅलिसिटर जनरल डाॅ. पिंकी आनन्द, गुजरात पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस केशव कुमार, दिल्ली हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक सूद, हिमाचल प्रदेश के असिस्टेंट डायरेक्टर एफएसएल डाॅ.विवेक सहजपाल तथा ओगिल्वी इंडिया की सीनियर वाइस प्रेसीडेंट तथा कैपेबिलिटी हेड पीआर एंड इंफ्लूऐस अरनिता वासुदेव शामिल थे। सत्र को प्रभावी रूप से वरिष्ठ खोजी पत्रकार सिद्वार्थ पांडे द्वारा संचालित किया गया।

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