आईएडीवीएल स्किन सफर : त्वचा स्वास्थ्य की जागरूकता के लिए देशभर में होगी अपने तरह की पहली यात्रा
नई दिल्ली। त्वचा चिकित्सकों के दुनिया के सबसे बड़े संगठन तथा भारत के सबसे बड़े आधिकारिक संगठन – इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट्स वेनेरोलॉजिस्ट्स एंड लेप्रोलॉजिस्ट्स (आईएडीवीएल) देशभर में अपनी तरह की पहली यात्रा – ’आईएडीवीएल स्किन सफर’ का आयोजन कर रहा है। स्वच्छ त्वचा स्वस्थ भारत के आदर्श वाक्य के साथ भारत में त्वचा स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कायम करने के लिए पूरे देश में 18 राज्यों में 60 से अधिक दिनों में 12,000 किलोमीटर की यात्रा पूरी की जाएगी।
इस अभियान के तहत जागरूकता वाहन दिल्ली-गुरुग्राम-करनाल-सोनीपत-मुंबई- पुणे-गोवा-बैंगलोर-चेन्नई-हैदराबाद-कोलकाता-गुवाहाटी-पटना-लखनऊ-ग्वालियर-आगरा-नोएडा आदि जैसे क्षेत्रों से गुजरेगा। इस पूरी पहल का उद्देश्य भारत को जागरूक करना है और कुष्ठ रोग और सफेद दाग जैसी त्वचा और बाल की समस्याओं के बारे में मिथकों और तथ्यों से अवगत कराना हगै।
डॉ. रोहित बत्रा, त्वचा रोग विशेषज्ञ सर गंगा राम हॉस्पिटल ने कहा, ‘‘लोग अक्सर अपने निजी उद्देश्यों के लिए होने वाली राजनीतिक दलों की ’यात्रा’ के बारे में सुनते रहते हैं। लेकिन यहां स्किन सफर रथ एक महत्वाकांक्षी गतिविधि है जो 60 दिनों तक चलेगी और भारत में 18 राज्यों को कवर करते हुए लगभग 12,000 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। इसका उद्देश्य त्वचा के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करना है और यह सुनिश्चित करना है कि योग्य त्वचा विशेषज्ञ किसी भी त्वचा की समस्या के लिए सही व्यक्ति है। हमने रथ पर एलईडी स्क्रीन लगाने की योजना बनाई है जिस पर आम जनता में उनकी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में जागरूकता पैदा करने के लिए शैक्षिक वृत्तचित्र और नुक्कड़ नाटक दिखाया जाएगा। वे लोगों को मुँहासे, फंगल संक्रमण, कुष्ठ रोग, विटिलिगो और त्वचा की अन्य समस्याओं के बारे में जागरूक करेंगे।’’
आईएडीवीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ. मुकेश गिरधर ने कहा, ‘‘ल्यूकोडर्मा के सामान्य नाम से जानी जाने वाली विटिलिगो त्वचा की बीमारी है जिसमें आपके शरीर कीं स्वस्थ कोशिकाएं प्रभावित होती हैं। विटिलिगो दुनिया भर में लगभग 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत लोगों को प्रभावित करती है लेकिन भारत में इसका प्रसार काफी अधिक 3 प्रतिशत है और यहां इस बीमारी को लेकर कई मिथ्या भी प्रचलित है। यह बीमारी किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है, लेकिन विटिलिगो से प्रभावित करीब आधे लोगों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है और करीब 95 प्रतिशत लोगों में यह 40 वर्ष से पहले होती है। यह दोनों लिंग, सभी नस्लों और सभी जातियों को प्रभावित करती है। विभिन्न लोगों में रोग की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है। विटिलिगो से संबंधित कई मिथकों के कारण इससे प्रभावित लोगों का अक्सर बहिष्कार किया जाता है। विटिलिगो व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं करता है। यह सामाजिक कलंक है जिसे दूर करने की आवश्यकता है और इस संबंध में जागरूकता जरूरी है।’’
’’कुष्ठ रोग, विटिलिगो और अन्य त्वचा संक्रमण आदि के खिलाफ समाज में काफी गलत धारणाएं मौजूद हैं। भारत वर्तमान में दुनिया में सबसे बड़ा कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम ’राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी)’ चला रहा है। कुष्ठ रोग हो जाने के बाद लोगों को समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है, नौकरी से निकाल दिया जाता है और कभी-कभी तो उन्हें उचित मकान मिलने में भी परेशानी हो सकते हैं। आईएडीवीएल अब एनएलईपी में आधिकारिक भागीदार है। इसने एनएलईपी और डब्ल्यूएचओ के साथ एक दिवसीय संगोष्ठी (25 अगस्त) का भी आयोजन किया और कुष्ठ रोग से निपटने के लिए रणनीतिक योजना बनायी।
कुष्ठ रोग पर उपलब्ध आंकड़ों के बारे में बात करते हुए आईएडीवीएल के संयुक्त सचिव डॉ. दिनेश कुमार देवराज ने कहा, ‘‘लेप्रोसी केस डिटेक्शन कम्पेन (एलसीडीसी) के कारण भारत में वर्तमान में प्रति 10 हजार व्यक्ति में से 0.66 व्यक्ति को कुष्ठ रोग है। कुष्ठ रोग से अधिक प्रभावित क्षेत्रों की पहचान की जा रही है इसलिए अब यह नियंत्रण में है। दोनों ही कारकों के बिल्कुल अलग होने, नैदानिक पुष्टि और सार्वजनिक जागरूकता की कमी के कारण कुष्ठ रोग के निदान में देरी होती है। कुष्ठ रोग से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में कुष्ठ रोग के मामलों की जल्द पहचान करने के लिए अब सरकार के द्वारा एलसीडीसी के रूप में कई प्रयास किए जा रहे हैं (सौजन्य एसआईजी लेप्रोसी डॉ. संतोष)।’’
इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. रोहित बत्रा ने बताया, ‘‘नीमहकीम किसी भी चिकित्सा क्षेत्र और मुख्य रूप से त्वचा देखभाल के मामले में प्राथमिक चिंता का विशय है। आवागमन में बाधा, ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी आदि जैसी कई बाधाएं हैं जिसके कारण भारत में नीमहकीमों में संख्या में वृद्धि हो रही हैं। आवश्यक पेशेवर योग्यता और डिग्री के बिना ही डॉक्टर न केवल बीमारियों का इलाज कर सकते हैं बल्कि इस स्थिति को और भी खराब कर सकते हैं। हाल ही में जारी किए गए मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार देश में 50 प्रतिषत से ज्यादा डॉक्टर औपचारिक डिग्री के बिना ही प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसलिए, हम इस त्वचा सफर के माध्यम से नीमहकीम के मुद्दे को भी हल करने का लक्ष्य रख रहे हैं। यह पूरे देश की यात्रा करेगा और इस तरह गंभीर चिंता का समाधान करेगा।’’
डाॅ. दिनेश ने अधिक जानकारी देते हुए कहा, ‘‘इस पहल के तहत त्वचा पर लगाई जाने वाली स्टेरॉयड ये युक्त गोरेपन की क्रीम और त्वचा तेल पर पाबंदी लगाने के मामले में हुई नई प्रगति तथा उसके बाद के प्रभावों के बारे में भी चर्चा की जाएगी। एक नवम्बर से कोर्टिकोस्टेराॅयड से युक्त सभी कीमें केवल डाक्टरी पर्चे के आधार पर ही मिलनी चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल को अपनी पहली सुनवाई में यह निर्देश दिया। पांच दवाइयों से युक्त कुछ एफडीसी पर भी प्रतिबंध लगाया गया। इस मामले में आईएडीवीएल – आईटीएटीएसए ने सक्रिय भूमिका निभाई और क्षीरसागर समिति के समक्ष भी अपनी बात रखी।’’ वाहन को आईएडीवीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. मुकेश गिरधर ने रवाना किया।
इस अवसर पर दिल्ली राज्य आईएडीवीएल की अध्यक्ष डॉ. रश्मि सरकार और सर गंगा राम अस्पताल के बोर्ड आफ मैनेजमेंट के माननीय सचिव डॉ. एस. ओ. बायोत्रा पर उपस्थित थे।
त्वचा संक्रमण, स्टेरॉयड और स्किनकेयर मलहम के दुरुपयोग, कुष्ठ रोग, विटिलिगो, और नीमहकीम के प्रसार के बारे में जागरूकता फैलाने की प्रतिज्ञा लेकर, आईएडीवीएल का स्किन सफर त्वचा विज्ञान के इतिहास में निश्चित रूप से कीर्तिमान स्थापित करेगा।