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बिना लक्षण वाले मरीजों का भी कोरोना टेस्ट हो, दिल्ली सरकार के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे पूर्व आईएमए चीफ

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने हाल ही में ‘एसिम्‍प्‍टोमेटिक और प्री-एसिम्‍प्‍टोमेटिक मरीजों’ की कोविड-19 टेस्टिंग बंद करने का फैसला किया था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व चीफ डॉ केके अग्रवाल ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी है। सोमवार को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सुब्रमण्यवम प्रसाद इस याचिका पर सुनवाई करेंगे। अपनी पीआईएल में डॉ अग्रवाल ने कहा है कि मेडिकल टेस्ट करा पाना हर नागरिक का ‘मूल अधिकार’ है। उन्होंएने दिल्ली सरकार के 2 जून के आदेश को निरस्त करने की मांग की है।
डॉ अग्रवाल ने याचिका में कहा है कि कोविड-19 एक संक्रामक बीमारी है। सभी नागरिकों के लिए इस बीमारी का टेस्टी करना अनिवार्य है चाहे मरीज में लक्षण हों या ना हों, या शुरुआती लक्षण हों। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, पीआईएल कहती है जो टेस्ट कराना चाहते हैं वो ये जानना चाहते हैं कि उन्हें कोरोना वायरस है या नहीं ताकि वक्तग रहते इस बीमारी से इलाज का इंतजाम कर सकें।
याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार का आदेश पूरी तरह से ‘स्‍वास्‍थ्‍य के मूल अधिकार का उल्‍लंघन और हनन’ है। पीआईएल कहती है कि लॉकडाउन हटाने के बाद कोरोना के मामले तेजी से बढ़ेंगे। इनमें एसिम्टोू इ मेटिक केसेज, प्री-सिम्टो क मेटिक केसेज और हल्के/बहुत हल्केए लक्षण वाले मामले बहुत ज्योदा होंगे। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसे मरीजों को वक्त- रहते इलाज नहीं मिला तो वे कुछ दिन में लक्षण वाले मरीज बन जाएंगे।
दिल्ली में अब किसी भी संदिग्ध मरीज को इलाज से मना नहीं किया जाएगा। उसका टेस्ट अस्पताल कराएगा। अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है तो कोरोना वॉर्ड में एडमिट होगा, नहीं तो सामान्य वॉर्ड में इलाज होगा। शनिवार को दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने यह ऐलान किया।

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