धर्म

दशहरे की व्यापकता और विशेषता

पावन-मनभावन भारत भूमि में तीज-त्योहारों एवं पर्व-प्रसंगों का विशेष महत्त्व है। इनका जन-जीवन, रीति नीति, रहन-सहन एवं संस्कृति के साथ गहरा नाता है। सभी की व्यापकता और विशेषता है। इनका वैज्ञानिक पक्ष भी है। आश्विन अर्थात क्वार मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र आरंभ होते हैं जो नौ दिनों तक चलते हैं।
इस मास के शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को विजय पर्व दशहरा, विजयादशमी देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है जिसमें बुराई, असत्य एवं अराजकता के प्रतीक माने जाने वाले रावण एवं उसके भाइयों के पुतलों का दहन किया जाता है। देश में सभी दृष्टि से विविधता होने के कारण इस दशहरे को मनाने में विविधता भी है।
देश में अनेक स्थानों पर नवधा-रामायण, राम-लीला, श्रीमद्भागवत आदि के नौ दिनों आयोजन के बाद दसवें दिन रावण, कुंभकर्ण एवं मेघनाद के पुतले जलाकर दशहरा मनाते हैं। छत्तीसगढ़ का बस्तर दशहरा प्रसिद्ध है। इस दीर्घावधि अर्थात‍् ७५ दिन के आयोजन में आदिवासी एवं राजसी का सम्मिलित स्वरूप दिखता है।
गुजरात में नौ रात्रि तक डांडिया, रास-गरबा नाचकर दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में यह दुर्गा पूजा के साथ मनाया जाता है, जिसमें नवरात्र की चार तिथियों का सबसे ज्यादा महत्त्व है। यह चार दिन आश्विन शुक्ल पक्ष में सातवें, आठवें, नौवें एवं दसवें दिन पड़ता है जिन्हें सप्तमी, अष्टमी, नौंवी और दशमी के नामों से जाना जाता है।
दसवें दिन दशहरा पड़ता है तब देवी प्रतिमाओं की भव्य झांकियां निकाली जाती है। उनका विसर्जन पवित्र गंगा में किया जाता है। मैसूर का राजसी दशहरा प्रसिद्ध है। इस दिन राजमहल सहित पूरा मैसूर आलोकित रहता है। सबके दशहरा मनाने के बाद कुल्लू का दशहरा मनाया जाता है। सभी जगह देवी अर्थात शक्ति पूजा के बाद दशहरा मनाते हैं। विविधता के बाद भी सभी जगह एकता देखने योग्य होती है। यह दशहरा सब में ऊर्जा, उल्लास एवं उत्साह का संचार करता है।
रावण गुणी एवं ज्ञानी था किंतु आततायी एवं अहंकारी था। वह मायावी था। उसके दस सिर थे जो उसकी माया से ही उसे मिले थे। यह दस सिर उसकी दस बुराइयों के प्रतीक थे। रावण की बहन सूर्पणखा ने बलात राम लक्ष्मण से विवाह की कामना की जिसके कारण उसे नाक गंवानी पड़ी। वह विलाप करती अपने भाई के पास पहुंची, तब गुस्से में रावण ने माया से मारीच को स्वर्ण मृग बना वन में भेजा और भ्रमित कर सीता का हरण किया।
ज्ञानी रावण को अपनी मौत का ज्ञान था, फिर भी उसने राम जो देव अवतार थे उनके हाथों मृत्यु पाकर बैकुंठलोक जाने के लिए राम से जान बूझकर बैर ठान लिया। इस सबके बाद भी राम के द्वारा रावण को पराजित करना सरल नहीं था। राम को आक्रमण करना पड़ा। युद्ध लंबा चला। रावण को वरदान प्राप्त था। वह माया से अपने कटे शरीर को पुन: प्राप्त कर लेता था।
राम ने देवी की पूजा कर शक्ति प्राप्त की और आश्विन (क्वांर) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन सर्वकार्य सिद्धिदायक विजय काल (मुहूर्त) में रावण पर निर्णायक वार किया और विजय प्राप्त की। रावण पराजित हुआ, सीता को स्वतंत्रता मिली। इस तिथि एवं समय का विशेष महत्व है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इस तिथि के दिन किए जाने वाले सभी काम पूर्ण एवं सफल होते हैं।
देवी ने इस तिथि के दिन शुभ-निशुंभ आदि असुरों का वध किया था। इसी तिथि के दिन इन्द्र ने असुरों को हराया था। पांडवों ने इसी तिथि के दिन अपना राजपाट पुन: पाने के लिए कौरवों पर आक्रमण किया था। इन्हीं कारणों से इस तिथि का आज भी विशेष महत्व है। आज भी वर्ष की तीन तिथियां (१) आश्विन शुक्ल दशमी (२) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (3) कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा सबसे शुभ मानी जाती हैं।
राम के द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने के कारण यह विजयादशमी, दशहरा एवं विजय पर्व कहलाता है। यह हमें दस पापों का परित्याग की प्रेरणा देता है। हमें भी अपने मन के दस पापों – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे दस पापों का परित्याग करना चाहिए। रावण के दस सिर इन्हीं पापों के प्रतीक माने जाते हैं। हमें भी अपने मन के इन दस पापों को परित्याग कर, मारकर विजय प्राप्त करनी चाहिए। यदि संभव हो तो इस दिन निम्न कार्य करें :-
=प्रात: स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर देवी-देवताओं की पूजा करें। इससे शक्ति मिलेगी।
=शमी वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। यह स्वर्ण अर्थात धन-संपदा एवं विजय आशीष देने वाला वृक्ष माना जाता है। इस तिथि पर शमी वृक्ष की पूजा कर राम ने रावण के साथ निर्णायक युद्ध किया था। पांडवों ने अज्ञातवास में इसी वृक्ष पर अपना अस्त्र छिपाया था और पूजा कर उसे वापस पाया था। रघु राजा ने भी इस वृक्ष की पूजा की थी।
=इस दिन सीमा उल्लंघन का विधान है। अनेक राजाओं ने ऐसा किया था। आप भी अपने शहर या जिले की सीमा पारकर दूसरे क्षेत्र में जाइए।
=इस दिन दोपहर उपरांत नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना शुभ माना जाता है। यह पक्षी अपने नीले रंग एवं तेज आवाज के कारण दूर से पहचाना जाता है। पक्षी नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना जाता है।
=इस दिन रावण दहन के उपरांत सभी से एक समान मिलना चाहिए। बड़ों से आशीष लेनी चाहिए एवं छोटों को आशीष एवं उपहार देने चाहिए।

– डाॅ. सीतेश कुमार द्विवेदी

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