धर्म

28वां रोजा : इबादत से मिलेगा जन्नत का रास्ता

गौरतलब बात है कि रमजान का यह आखिरी अशरा दोजख से निजात (नर्क से मुक्ति) का अशरा (कालखंड) है। अल्लाह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उसका कोई शरीक नहीं है और वो अपने बंदे की फरियाद सुनता है। जैसा कि मजकूर (उपर्युक्त) आयत में अल्लाह ने खुद फरमाया है ‘सो हम खूब फरियाद करते है।’
यहाँ समझने-समझाने के लिहाज से बाद वाला कौल पहले देखना होगा, क्योंकि इसी कौल पर जो बंदा इबादत करता है और अल्लाह की ‘रहमत’ के ताल्लुक का दारोमदार है। यानी जब अल्लाह वादा कर रहा है रहमत का तो उसे पुकारना भी तो होगा यानी इबादत भी तो करना होगी। जब रोजादार बंदा परहेजगारी के साथ अल्लाह को पुकारता है यानी इबादत करता है तो अल्लाह अपना वादा निभाता है।’
यानी फरियाद सुनता है और गुनाह माफ कर देता है। गुनाह माफ करने से बंदा आग से निजात (मुक्ति) पा जाता है और जन्नत का हकदार हो जाता है। वैसे भी अट्ठाईसवां रोजा जिस दिन होता है उस तारीख को शाम के बाद उन्तीसवीं ताक रात होती है, जिसमें भी शबे-कद्र को तलाशा जाता है।
इबादत से ही तो तलाश मुकम्मिल होकर मंजिल मिलेगी। यानी अल्लाह की इबादत जन्नत का रास्ता है। हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का इरशाद है- ‘खड़े होकर इबादत करो।’

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