सामाजिक

‘हमने अपनी कला विरासत का 30% गंवा दिया है’

हमारी पारंपरिक कला एवं शिल्प संरक्षण के अभाव में टिमटिमा रही है, जबकि हीरो समूह के सुनील मुंजाल गोवा के सेरेन्डिपिटी फेस्टिवल में इस कला एवं शिल्प को प्रोत्साहित करने में सहयोग कर रहे हैं। सेरेन्डिपिटी आर्ट्स ट्रस्ट के संस्थापक सुनील कांत मुंजाल ने कहा, ‘‘आंकड़े काफी भयावह हैं। पिछले 30 वर्षों  से हर साल एक प्रतिषत कला एवं षिल्प दम तोड़ रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि भारत अपनी कला एवं शिल्प की समृृद्ध विरासत का 30 % पहले ही गंवा चुका है। अगले 25 वर्षों में जो होेगा, उसकी कल्पना करना और भी डरावना है, इसलिए मुझे लगता है कि उन्हें बचाने के लिए कुछ करना चाहिए।’’ आप मुंजाल को हीरो समूह को खड़ा करने वाली षख्सियत के तौर पर जानते हैं, लेकिन अब वे सेरेन्डिपिटी आट्र्स ट्रस्ट (एसएटी) के साथ सांस्कृतिक क्रूसेडर हैं, एसएटी एक अनूठी सामाजिक परियोजना है जिसका उद्देष्य कला के संरक्षण को पुनजीर्वित करना है। एसएटी के तहत् सेरेन्डिपिटी आट्र्स फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है, जिसमें विजुअल एवं परफाॅर्मिंग आर्ट्स – विजुअल आर्ट्स, फोटोग्राफी, नृत्य, संगीत, थिएटर और शिल्प के साथ ही खान-पान की कला को प्रदर्षित किया जाता है। इस फेस्टिवल के दूसरे संस्करण का आयोजन 15 से 22 दिसंबर, 2017 को गोवा में किया जाएगा।
इस फेस्टिवल के आयोजन का मकसद कलाकारों को उपयुक्त मंच प्रदान कर भारत की लुप्त हो रही संस्कृतियों को पुनर्जीवित करना है, जिसमें भारत भर के शिल्पी अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्षन करेंगे। और मुंजाल का मानना है कि काॅरपोरेट को इन्हें बचाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘कला हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और इसे पहले राजे-राजवाड़ों (षाही) का संरक्षण मिल रहा था। इसके बाद धार्मिक लीडर्स ने इसेे संरक्षण प्रदान किया और अब सरकार इस दिषा में काम कर रही है। सरकार जो कर रही है वह सराहनीय है लेकिन पर्याप्त नहीं है। ऐसे में अब जरूरत है कि इसके कई संरक्षक बनें। हालांकि कुछ व्यक्ति, परिवारों और काॅर्पोरेट्स इस दिषा में प्रयास कर रहे हैं लेकिन हमारे देष के विषाल आकार के साथ ही साथ हमारी कला एवं षिल्प परंपराओं की सांस्कृतिक विविधता बड़ी भागीदारी की मांग करती है। इसलिए हमारा उद्देष्य उन लोगों को भी प्रोत्साहित करना है, जो अपने स्तर पर ऐसा ही कुछ आयोजित करना चाहते हैं।’’
हालांकि फेस्टिवल का आयोजन साल में एक बार किया जाता है लेकिन मुंजाल सालों भर कला को बढ़ावा देने के इस पहल को चलाने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने कहा, ‘‘फेस्टिवल केवल एक विंडो है जहां हमारी संभावनाओं को प्रदर्षित किया जाता है। हमने कलाकारों के लिए एसएटी के माध्यम से षैक्षणिक कार्यक्रमों एवं आवास की सुविधा षुुरू की है। हम कलाकारों और उनकी कलाकृतियों के साथ काम करते हैं और उन लोगों को प्रोत्साहित करने का तरीका तलाषते हैं, जो टिकाऊ आजीविका सुनिष्चित करने का प्रयास करते हैं। अगर उनकी कौषल विरासत सेे उन्हें पारितोशिक नहीं मिलेगा, तो वे इसे करना बंद कर देंगे।’’
एक और चीज जो एसएटी अगल तरह से कर रहा है, वह है विकासषील कलारूपों और उसे जोड़ने के लिए अंतर-अनुषानात्मक दृश्टिकोण। मुंजाल ने कहा, ‘‘अगर आप 250 साल पीछे देखें तो हमारी कला परंपराओं में कोई स्पश्ट विभाजन नहीं था और वे सुगमता से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। वे ब्रिटिष थे जिन्होंने कला को संगीत, थिएटर या नृत्य के खांचे में बांध दिया। इसलिए हम अंतर-अनुषासनात्मक एवं सहयोेगात्मक दृश्टिकोण विकसित करने की संभावना तलाष रहे हैं। पिछले साल हमने 14-15 विधाओं में ऐसा किया है और इस साल 25 परियोजनाओं के साथ ऐसा ही करने की संभावना तलाष रहे हैं। सहयोेगात्मक परियोजना से निकलने वाली ऊर्जा बिल्कुल अद्भुत और अभूतपूर्व है।’’
फाउंडेषन का कार्यालय दिल्ली में है, जहां वह कलाकारों को संगीतकारों, इतिहासकारों, कहानीकारों और अर्थषास्त्रियों आदि के साथ मिलने का अवसर प्रदान किया जाता है और उन्हें दुनिया भर में कला की खरीद के तरीके से रूबरू कराया जाता है। इससे उन्हें इनोवेटिव और समसामयिक बनाने में मदद मिलती है। मुंजाल ने कहा, ‘‘हम उन्हें यह निर्देश नहीं देते हैं की वे चीजों को किसी निष्चित तरीके से तैयार करें। हम उन्हें संभावनाएं दिखाते हैं और उनके क्षितिज का विस्तार करते हैं।’’
पिछले साल साल 50 परियोजनाओं के साथ फेस्टिवल का आगाज किया गया था, जिसमें 8 दिनों के दौरान 1,00,000 से ज्यादा लोग आए। इस बार उनकी संख्या दो से तीन गुना तक बढ़ सकती है। पणजी में मंडोवी नदी के किनारे आयोजित होने वाले 10 दिवसीय फेस्टिवल में एक हजार से अधिक कलाकार अपनी कला का प्रदर्षन करेंगे। यहां काॅन्क्लेव, इंटरेक्टिव सत्रों और बच्चों के लिए भी कार्यषालाओं का भी आयोजन किया जाएगा। यहां उपमहाद्वीप के कलाकारों को आपस में जोड़ने का भी प्रयास किया जाएगा और अफगानिस्तान, भूटान और बांग्लादेष के कलाकार भी इस साल इसमें भागीदारी करेंगे। मुंजाल ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि टीएटीई और मेट के साथ ही साथ क्रिस्टी तथा साउथबे के भी विषेशज्ञ आएंगे।’’
यह फेस्टिवल गोवा तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह कलाकृृतियों को विभिन्न षहरों में भी ले जाया जाएगा। दिल्ली ने इस साल अप्रैल में एक क्राफ्ट सत्र की मेजबानी की थी, वहीं सितंबर में मुंबई में परफाॅर्मेंस आट्र्स का मंच सजा था। नवंबर में हैदराबाद में षिल्प का प्रदर्षन किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘मुख्य महोत्सव गोवा में होगा, जहां 5,23,000 मानव श्रम घंटे में व्यापक स्तर पर एकसाथ कला एवं षिल्पों को प्रदर्षित किया जाएगा।’’
सेरेन्डिपिटी फेस्ट के आयोजन स्थल षारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के पहुंच के लिहाज से भी सुगम हैं। गोवा को एक सांस्कृतिक मेकओवर देने के जुनून से प्रेरित मुंजाल ने कहा, ‘‘वहां संकेत भाशा विषेशज्ञ भी होंगे। नेत्रहीनों के लिए हमारे पास डाॅकेट्स हैं, जहां आप छूकर महसूस कर सकते हैं कि वहां किस चीज की पेेशकश की जा रही है। सभी वेन्यू में कैटलाॅग्स हैं और ब्रेल में रूट भी बताया गया है।’’?

-निशा जैन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *