सामाजिक

कहानी ओला कैब की…

-निशा जैन
देश के 70 शहरों में सक्रिय ओला हर दिन 1.50 लाख लोगों को आय के अनुरूप (10 से 17 रुपए प्रति कि.मी. की दर से) निजी परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाती है। यह कहानी एक ऐसे आईआईटी पासआउट की है जिसने माइक्रोसॉफ्ट की जमी-जमाई नौकरी छोड़कर कैब कंपनी ओला स्थापित की। दिलचस्प यह भी है कि जिसकी कैब से 70 शहरों में लोग सफर करते हैं, उसने खुद के लिए कार नहीं खरीदा है।
आईआईटी मुंबई के कम्प्यूटर साइंस व इंजीनियरिंग ग्रैजुएट (बीटेक) भाविश अग्रवाल ने 2010-11 में ओला कैब्स की स्थापना की तो परिवार और दोस्तों ने उन्हें ‘क्रेजी’ कहा। माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च की नौकरी करते हुए भाविश ने अब तक दो पेटेंट्स प्राप्त किए थे। उनके तीन पेपर्स इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुए थे, पर ग्लोबल बिजनेस एग्जीक्यूटिव बनने के बजाय वे सेल्फ मेड एंटरप्रेन्योर बनना चाहते थे। माइक्रोसॉफ्ट में सुरक्षित भविष्य भी 9 से 5 की जॉब, भाविश की उकताहट को कम नहीं कर पाया। भाविश कहते हैं, मैं हमेशा से ही खुद का कुछ शुरू करना चाहता था और यही वजह थी कि मैं विकल्प तलाश रहा था। लेकिन साथ ही मैं सोसाएटी की किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करने के बारे में भी सोचा करता था।
इस सोच के साथ भाविश अपने वेंचर ओला कैब्स तक कैसे पहुंचे? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, एक ट्रिप के खराब अनुभव से इसकी शुरुआत हुई। दरअसल एक बार बेंगलुरु से बांदीपुर की यात्रा में भाविश ने कार किराए पर बुक की थी, जिसका अनुभव बेहद खराब रहा। बीच रास्ते में ड्राइवर ने गाड़ी रोककर और पैसा देने की मांग की। मना करने पर उसने सफर वहीं रोकने की धमकी दी। उसके खराब बर्ताव की वजह से भाविश को कार छोड़कर बाकी की यात्रा बस से करनी पड़ी। इस वक्त भाविश को लगा कि इस समस्या का सामना बड़ी संख्या में उनके जैसे कई कस्टमर्स कर रहे हैं जो क्वालिटी कैब सर्विस की तलाश में हैं, लेकिन उनकी यह तलाश सफर के बुरे अनुभवों के साथ खत्म होती है। यहां भाविश को पहली बार कैब बुकिंग सर्विस में क्षमताएं नजर आईं।
अपने टेक्नोलॉजी बैकग्राउंड के चलते भाविश ने कैब सर्विसेज और टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़ने के बारे में सोचा। ताकि कस्टमर्स को ऑनलाइन कार रेंटल बुकिंग्स, रिव्यू व रेटिंग के जरिए बेहतर क्वालिटी आश्वासन और कार व ड्राइवर के बारे में पूरी सूचना मिल पाए। अगस्त 2010 में भाविश ने ओला कैब्स की शुरुआत के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और इस दिशा में काम शुरू किया। दिलचस्प है कि भाविश जैसी सोच रखने वाले उनके मित्र अंकित भाटी नवंबर 2010 में उनके भागीदार बने। अंकित ने भी आईआईटी से एमटेक और सीएडी (ऑटोमेशन) की डिग्री प्राप्त की थी। भाविश बताते हैं, जब मैंने शुरुआत की तो मेरे माता-पिता सोच रहे थे कि मैं ट्रैवल एजेंट बनने जा रहा हूं। उन्हें समझा पाना काफी मुश्किल था, लेकिन जब ओला कैब्स को पहली फंडिंग हासिल हुई तो उन्हें मेरे स्टार्टअप पर कुछ भरोसा हुआ।
अपने आइडिया के प्रति समर्पण भाविश की इस सोच में झलकता है कि अपनी पत्नी के साथ उन्होंने पर्सनल व्हीकल न खरीदने का प्रण किया है ताकि वे आने जाने के लिए ओला का इस्तेमाल कर सकें। दृढ़ता के इसी स्तर ने भाविश को इस मुकाम तक पहुंचाया है। नए उद्यमियों के लिए भाविश की सलाह है कि सपने तो सब देखते हैं, पर कुछ ही लोग जोखिम उठाते हैं। जब जोखिम उठाएंगे तो कई लोग कई सलाह देंगे। सपने उनके पूरे होते हैं, जो सुनते सबकी हैं, पर करते मन की हैं।

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