टेक्नोलॉजी

मशीन लर्निंग एल्गोरिदम से पता चल जाएगा कि भूकंप कब आने वाला है

वैज्ञानिक एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहे हैं जो उन्हें आने वाले भूकंप की जानकारी देगा। न्यू मैक्सिको के द लॉस अलामोस नेशनल लैबोरेटरी में इस तरह की मशीन का विकास किया जा रहा है। यह मशीन ध्वनि संकेतों को सुन इस बात का पता लगाएगी कि आखिर भूकंप कब आएगा।
इस रिसर्च का नाम मशीन लर्निंग प्रेडिक्ट लेबोरेटरी अर्थक्वेक है और इसे जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छापा गया था। इसमें बताया गया कि हमने एक मशीन बनाने जा रहे हैं जो ध्वनि संकेतो को सुन सकती है और गलत लाइनों का पता लगा सकती है, जिसके आधार पर हम यह जानने में कामयाब हो पाएंगे कि अगला भूकंप कब आ सकता है।
लॉस अलामोस नेशनल लैबोरेटरी के सह लेखक और रिसर्चर डॉ. बर्ट्रांड रूटे-लेडुक ने कहा कि यह प्रेडिक्शन सिस्टम एक विशेष लहर पैटर्न को खोलने पर निर्भर करती है जो फॉल्ट विफल होने पर उत्सर्जित होती है। यह प्रणाली दो भारी स्टील ब्लॉकों पर दबाव देने पर काम करती है, जिससे यह एक भूकंप के दौरान टेक्टोनिक प्लेट्स की तरह एक दूसरे पर स्लिप और स्लाइड करती है। यह प्रक्रिया फिर उर्जा को भूकंपीय तरंगों में बदलता है जिसका फिर अध्ययन कर यह पता लगाया जाता है कि भूकंप कब आएगा।
यह प्रणाली डिसीजन ट्री एलगोरिदम के आधार पर काम कर सकती है। इस मशीन के परीक्षण को 150 सैकेंड के दो भागों में बांटा जाएगा। फर्स्ट हाफ से उत्पन्न भूकंपीय आंकड़ों को ट्रेनिंग और लेबोरेटरी फॉल्ट से निकलने वाली आवाजों की जानकारी प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
दूसरे हाफ के दौरान प्रणाली को फॉल्ट से आ रही आवाज तरंगों को दिया जाता है और तब फॉल्ट से पहले आने वाले भूकंप का अनुमान लगाना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को पंद्रह चक्रों के लिए प्रशिक्षण और परीक्षण चरण से दोहराया।
डॉ. बर्ट्रांड रूटे-लेडुक ने बताया, ट्रेनिंग स्टेज के दौरान मशीन लर्निंग एल्गोरिदम ने फॉल्ट से आ रही आवाज के पैटर्न को पहचानना सीखा जो बताती है कि अंदर कितना दबाव है और भूकंप कितनी जल्दी आ सकता है। परीक्षण के चरण में परिणाम यह निकला कि अगर फॉल्ट कुछ अलग तरह का बर्ताव करने लगे फिर भी इसकी ध्वनि उत्सर्जन का पैटर्न पहले जैसा ही है।
वैज्ञानिकों ने सिम्युलेटेड भूकंप का आयोजन करके मशीन का परीक्षण किया। उन्होंने पाया कि प्रणाली अगले भूकंप के लिए समय का अनुमान लगाने में सक्षम थी, और यह 10 प्रतिशत तक सटीक थी। वैज्ञानिकों की मानें तो जब भूकंप सिम्युलेटर बस विफल होने वाला होता है तब एल्गोरिदम 2.5 प्रतिशत सही होता है।

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