रीढ़ की सर्जरी में अब नहीं रहा उम्र का बंधन
नई दिल्ली। सर्जरी की तकनीकों में विकास के कारण रीढ़ की सर्जरी अब किसी भी उम्र में हो सकती है। दिल्ली के आर्थोपेडिक सर्जनों ने 89 साल की महिला की रीढ़ की सफल सर्जरी को अंजाम दिया है। राष्ट्रीय राजधानी स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल मे पिछले दिनों नेपाल के इटाहरी की 89 साल की महिला की रीढ़ की सफल सर्जरी की गई। उस महिला ने इसी अस्पताल में दस साल पहले दोनों घुटनों को बदलवाने का आपरेशन भी कराया था। स्पाइन सर्जरी करने वाले अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डाॅ. राजू वैश्य ने बताया कि पिछले एक साल से उनकी कमर में दर्द था जो पैर तक फैल रहा था। पिछले तीन माह के दौरान यह दर्द इतना अधिक बढ़ गया कि उनके लिए चलना-फिरना और यहां तक कि आराम से सोना दुभर हो गया।
एक्स रे एवं एमआरआई की मदद से रीढ़ की जांच करने पर पता चला कि एल4 और एस1 हिस्से में स्पाइनल कार्ड में दवाब (कम्प्रेशन) आ गया था। डा. राजू वैश्य एवं उनकी टीम ने 17 अगस्त को उनकी स्पाइनल कॉर्ड में आए दवाब (डिक्रम्प्रेशन) को हटाने के लिए डिक्रम्प्रेशन सर्जरी तथा रीढ़ को मजबूती प्रदान करने के लिए स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी की। सर्जरी ढाई घंटे चली और सर्जरी के बाद मरीज तेजी से स्वास्थ्य लाभ कर रही है और अब वह आराम से चल-फिर रही है।
डा. राजू वैश्य ने कहा कि इस सर्जरी के बाद न केवल मरीज को दर्द से मुक्ति मिलेगी बल्कि वह और लंबी आयु जी सकती है। साथ ही उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। अक्सर यह देखा जाता है कि जागरूकता के अभाव के कारण अधिक उम्र में रीढ़ या शरीर के अन्य अंगों में दिक्कत होने पर मरीज की समुचित चिकित्सा नहीं कराई जाती। अगर सर्जरी कराने की नौबत आती है तो अक्सर यह सोचकर सर्जरी टाल दी जाती है कि इतनी अधिक उम्र में सर्जरी खतरनाक हो सकती है, लेकिन आज रीढ़ सर्जरी की तकनीकों में इतना अधिक विकास हो गया है कि अधिक उम्र में भी रीढ़ की सर्जरी सुरक्षित एवं कारगर बन गई है। ऐसे में अधिक उम्र के मरीज को अगर सर्जरी की जरूरत है तो सर्जरी के लाभों से मरीज को बंचित नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने ने बताया कि हर व्यक्ति की दो उम्र होती है – क्रोनोलॉजिक उम्र तथा बायोलॉजिक उम्र और यह पाया गया है 70 साल से अधिक समय तक जीवित रहने वाले लोगों की बायोलॉजिक उम्र कम होती है। वे जन्मजात और जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों से मुक्त होते हैं। उन्होंने अधिक संतुलित जीवन शैली का पालन किया होता है, उन्होंने नियमित रूप से व्यायाम और शारीरिक श्रम किया होता है जिस कारण वे शारीरिक एवं मानसिक तौर पर फिट होते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को रीढ़, घुटने या जोड़ों संबंधी समस्या होने पर अगर उन समस्याओं का निदान कर दिया जाए तो वे अपने सक्रिय जीवन को बरकरार रख पाते हैं और वे लंबे जीवन जी सकने में समर्थ होते हैं। इनमें से एक चौथाई – करीब 25 प्रतिशत लोग बीमारियों से मुक्त होते हैं।
उन्होंने बताया कि चिकित्सा सुविधाओं के सुलभ होने तथा स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता आने के कारण देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है और इस कारण अधिक उम्र में सर्जरी की भी जरूरत बढ़ रही है।
उन्होंने बताया कि सर्जरी के लिए बुजुर्ग मरीजों का चयन करने के दौरान उम्र, स्वास्थ्य की सम्पूर्ण स्थिति, मानसिक सक्रियता तथा आत्म बल पर विचार किया जाता है और यह पाया गया है कि जो बुजुर्ग अपने साथियों की तुलना में अधिक समय तक जिंदा रहते हैं उनमें बीमारियां या विकलांगता से बचे रहने की असाधारण क्षमता होती है, वे सक्रिय जीवन जीते हैं और उनका मानसिक एवं शारीरिक क्रियाकलाप उच्च स्तर का होता है।