लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

सफेद मोतिया का फेमटोसेकेंड से बेहतर इलाज

-डाॅ. महिपाल एस. सचदेव
निदेशक, सेंटर फार साइट, नई दिल्ली
चिकित्सा विज्ञान निरंतरता के साथ नए-नए आविष्कारों को सामने लाने में लगा हुआ है। ऐसी बीमारियां जिनका कोई इलाज नहीं था और ऐसे रोगों से अपने परिजनों को लड़ता हुआ देखकर सिर्फ आंसू ही बहाए जा सकते थे, चिकित्सा विज्ञान ने न केवलउनका निदान ढूंढ़ लिया है बल्कि उन्हें सामान्य रोग बना दिया है। ये ठीक है कि अभी भी अनगिनत रोग चिकित्सा विज्ञानियों के सामने चुनौती पेश करते हुए खड़े हैं लेकिन उनके खिलाफ भी संघर्ष जारी है और कभी न कभी तो उनका भी इलाज ढूंढ ही लिया जाएगा। निश्चित तौर पर नेत्र रोगों को उसी श्रेणी में रखा जा सकता है जिनके निदान में चिकित्सा विज्ञान ने अदभुत कामयाबियां हासिल की हैं। एक जमाना था जब सभी तरह के नेत्र रोगों का मतलब अंधा हो जाना ही समझा जाता था और मोतियाबिंद तो जैसे अंधा होने का पर्याय ही था। हालांकि, आज भी मोतियाबिंद ही दुनिया भर में नेत्रहीनता का सबसे बड़ा कारण है लेकिन नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है उसने कम से कम इसे आतंक फैलाने वाला रोग तो नहीं ही रहने दिया है।
आंकड़ों के अनुसार आज के दिन भारत में 90 लाख लोग सफेद मोतिया के शिकार हैं और तीन करोड़ 20 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी दृष्टि को सफेद मोतिया ने धुंधला कर रखा है, लेकिन यह एक बड़ी सच्चाई है कि अगर सही इलाज हो तो यह हमारी आंखों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। न सिर्फ इस रोग का पहले जैसा आतंक नहीं रह गया है बल्कि हर तरह से सफेद मोतिया की सर्जरी के क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति हुई है।
वैसे तो इस क्षेत्र में निरंतर रूप से ही बदलाव होते जा रहे हैं लेकिन पिछले दो वर्षों के दौरान सफेद मोतिया की शल्य चिकित्सा से संबंधित एक और क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है, जिसने मरीजों के इलाज को और भी सरल और सटीक बना दिया है। यह क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आया है फेमटोसेकेंड लेजर. इस लेजर तकनीक ने सफेद मोतिया के इलाज में मानवीय पक्ष को एक हद तक समाप्त कर दिया है और इस संपूर्ण प्रक्रिया को ही पूर्व-नियोजित, यांत्रिक और माइक्रोन स्तर तक भी नियमित कर दिया है।
फेमटोसेकेंड लेजर प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आंखों की एक उच्च विभेदन (रिजॉल्यूशन) वाली छवि निर्मित होती है, जो लेजर के लिए मार्गदर्शन देने का काम करती है। इसके परिणामस्वरूप कॉर्निया से संबंधित छेदन पूर्व नियोजित हो पाते हैं और लेजर सटीक पूर्वगामिता के साथ उनके संबंध में निर्णय करता है. अग्रवर्ती लेंस कैपसूल, जिसे कैपसूलोरेक्सिस कहा जाता है, उसमें एक सुकेंद्रित, अनुकूलतम आकार का मामूली सा छिद्र किया जाता है और फिर लेंस को लेजर किरणों का इस्तेमाल करते हुुए नरम और द्रवित कर दिया जाता है। इसके पश्चात् लेंस को छोटे कणों में तोड़ डाला जाता है।
शल्य चिकित्सक को इस नई प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि उसे लेंस को तराशने और काटने जैसे तकनीकी रूप से कठिन कदम नहीं उठाने पड़ते जिनकी वजह से जटिलताएं पैदा हो सकती थीं, इसमें फेको-एमलसिफिकेशन ऊर्जा को 43 प्रतिशत कम कर दिया जाता है और फेको-समय को 51 प्रतिशत घटाया जाता है। इससे संपूर्ण ज्वलनशीलता में कमी आती है और आंखों के पहले वाली स्थिति में लौटने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। जख्म की स्थिर संरचना संक्रमण दर को भी न्यूनतम कर देती है। देखने में भी यह अधिक बेहतर परिणाम देता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि सर्जरी की प्रक्रिया स्पष्ट और सटीक होती है।
सफेद मोतिया के इलाज की इस नवीनतम प्रौद्योगिकी के माध्यम से हासिल होने वाला एक अन्य महवपूर्ण लाभ यह है कि यह प्रीमियम आईओएल जैसे अनुकूलित (क्रिस्टैलेंस) एवं बहुकेंद्रीय लेंसों के साथ और भी बेहतर परिणाम देता है। स्पष्ट लेजर तकनीक के साथ इन लेंसों से मिलने वाली कुल दृष्टि का स्तर बेहतर हो जाता है, इसके अलावा दृष्टिवैषम्य जैसी पहले से ही मौजूद आंखों की समस्याओं का सामना एलआरआई अथवा लिंबल रिलैक्सिंग इंसिजंस के सुनियोजन के सहारे किया जा सकता है। इससे यह संपूर्ण सर्जरी, मरीज की जरूरतों को पूरा करने की दृष्टि से अनुकूल हो जाती है और उसे सर्वोत्तम दृष्टि प्रदान करती है।
हालांकि, यह प्रौद्योगिकी भारत में व्यावसायिक तौर पर फिलहाल उपलब्ध नहीं है लेकिन जल्दी ही सफेद मोतिया को हटाने वाले सबसे बेहतरीन इलाज के रूप में यह भारत में आ जाएगा। ये ठीक है कि सफेद मोतिया के इलाज में फेमटोसेकेंड लेजर प्रक्रिया को अपनाए जाने के बाद इलाज खर्च आज के मुकाबले अधिक हो जाएगा लेकिन खर्चे में वृद्धि की क्षतिपूर्ति गुणात्मक परिणामों में मूल्य अतिरेक और आंखों की सुरक्षा में वृद्धि के माध्यम से हो जाएगी, इस बात की पूरी संभावना है कि फेमटोसेेकेंड शल्य चिकित्सा, सिंक्रोनी जैसे अगली पीढ़ी के अनुकूल आईओएल के आरोपण में वृद्धि को सुसाध्य बनाएगी।
चूंकि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक संपूर्ण लेजर प्रक्रिया होने के कारण जो स्पष्टता एवं सटीकता है उसकी बराबरी मानवीय रूप से की जाने वाली सर्जरी किसी भी तरह से नहीं कर सकती। यही कारण है कि जहां कहीं भी फेमटोसेकेंड लेजर का आगमन हुआ है, नेत्र चिकित्सकों के साथ-साथ सफेद मोतिया से पीड़ित मरीजों ने भी इसे बेहद आकर्षक महसूस किया है। विशेषज्ञ भारत में लाए जाने के बाद इसकी सफलता की संभावना को लेकर अभी से ही आश्वस्त हैं।
इस संपूर्ण रूप से लेजर प्रक्रिया के इस्तेमाल के माध्यम से जख्म तेजी से भरते हैं, बेहतर दृष्टि क्षमता हासिल होती है, संक्रमण एवं अन्य जटिलताओं के पैदा होने का खतरा नहीं के बराबर होता है तथा जख्म की संरचना स्थिर रहा करती है। इसके अलावा इससे, आईओएल को स्पष्ट रूप से प्रवेश कराए जाने, दृष्टिवैषम्य जैसे पहले से ही मौजूद नेत्र समस्याओं में सुधार और प्रत्येक मरीज के सुगमता से स्वस्थ होने के फायदे हैं। अधिकतर नेत्र सर्जन इसे अधिक सुरक्षित और सटीक मानते हैं। दुनिया भर के विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत हैं कि इससे पहले के मुकाबले बेहतर परिणाम हासिल है और मरीजों की दृष्टि से भी फेमटोसेेकेंड लेजर अधिक आकर्षक एवं सुविधाजनक साबित हुआ है। यही कारण है कि दुनिया भर में जहां कहीं भी सफेद मोतिया के इलाज के लिए फेमटोसेेकेंड लेजर को आजमाया गया है, उसे नेत्र चिकित्सकों के साथ-साथ मोतियाबिंद से पीड़ित मरीजों का भी जोरदार समर्थन हासिल हुआ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *