धर्मसंपादकीय

और तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार

गंगासागर भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ हैं। गंगाजी इसी स्थान पर आकर सागर में मिलती है। इसी स्थान पर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यहां मकर संक्रान्ति पर बहुत बड़ा मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। कहते हैं यहीं संक्रान्ति पर स्नान करने पर सौ अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गाऐं दान करने का फल मिलता है।
भारत की नदियों में सबसे पवित्र गंगा नदी है जो गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में आकर सागर सक मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर कहते है। इसे सागरद्वीप भी कहा जाता है। यह स्थान देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक गंगासागर मेला के लिए सदियों से विश्व विख्यात है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है, जहां मकर संक्रान्ति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते है। 2018 के मकर संक्रान्ति स्नान के अवसर पर यहां 20 लाख लोगों के आने की उम्मीद है।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है, जिन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था। मान्यता है कि यहां मकर संक्रान्ति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। मान्यता है कि गंगासागर की तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है। हर किसी को यहां आना नसीब नहीं होता है। इसकी पुष्टि एक प्रसिद्ध लोकोक्ति से होती है, जिसमें कहा गया है, सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। हालांकि यह उस जमाने की बात है जब यहां पहुंचना बहुत कठिन था। आधुनिक परिवहन और संचार साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है।
गंगासागर में मकर संक्रान्ति यानी 14 जनवरी से एक हफ्ता पहले ही मेला शुरू हो जाता है, जिसमें दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, साधु-संत आते हैं और संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण लोग इसे मिनी कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन यहा सूर्यपूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। लोग तिल, चावल और तेल का दान देते हैं। अनेक श्रद्धालु सागर देवता को नारियल अर्पित करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। पर उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60,000 हजार पुत्रों को भेजा।
अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलत: सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60,000 मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।
कहतें है कि भगवान इंद्र ने यज्ञ अश्वों को जान-बुझ कर पाताल लोक में छुपा दिया था। बाद में कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। ऐसा उन्होने ने गंगा नदी को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए किया था। पहले गंगा स्वर्ग की नदी थीं। इंद्र जानते थे कि गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से अनेकों प्राणियों का भला होगा। हिन्दू मान्यता के अनुसार साल की 12 संक्रान्तियों में मकर संक्रान्ति का सबसे महत्व ज्यादा है। कहते हैं इस दिन सूर्य मकर राशिन में आते हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरु हो जाता है, जो देवशयनी एकादशी से सुप्त हो जाते हैं। गंगासागर मेला पश्चिम बंगाल में आयोजित होने वाले सबसे बड़े मेलों में से एक है। इस मेले का आयोजन कोलकाता के निकट हुगली नदी के तट पर ठीक उस स्थान पर किया जाता है, जहां पर गंगा बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसीलिए इस मेले का नाम गंगासागर मेला है। यह मेला विक्रमी संवत के अनुसार प्रतिवर्ष पौष मास के अन्तिम दिन लगता है। यह मकर संक्रान्ति का दिन होता है।
सुन्दरवन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान व ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं, परन्तु परम्परा और श्रद्धा के सामने हर बाधा बोनी हो जाती है। गंगा के सागर में मिलने के स्थान पर स्नान करना अत्यन्त शुभ व पवित्र माना जाता है। स्नान यदि विशेष रूप से मकर संक्रान्ति के दिन किया जाए, तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवसर पर यह स्थान बड़े मेले का केन्द्र बन जाता है। यहां पर यात्री व संन्यासी पूरे देश से आते हैं।
गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिण्डदान कर पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। स्थानीय मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है। अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।
इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां मैन्ग्रोव की दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें भी है। बहुत पहले इस ही स्थान पर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी, किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है। यह मेला पांच दिन चलता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। यहां अलग से गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है। मेले के लिये एक मील का स्थान निश्चित है, जिसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर बहा ले गया, जिसकी मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा अर्चना के लिये मिलती है।
गंगासागर गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है। जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहां काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण ईलाका है। यहां की भाषा बंगला है। यहां पर रहने के लिए होटल मिलते है। साथ ही यहां विभिन्न मतों के अनेकों आश्रम,धर्मशालायें भी है। गंगासागर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जहां मकर संक्रांति के दिन 14 व 15 जनवरी को वृहत मेला लगता है। जिसमें लाखों लोग स्नान और पूजा करने आते हैं। ताकि उनके पाप धुल जाये और आशीर्वाद प्राप्त हो। यह एक पुण्यतीर्थ स्थान है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यहां के विकास के लिये प्रयत्नशील है। हाल ही में उन्होने यहां का दौरा कर व्यवस्थाओ का जायजा लिया था। मुख्यमंत्री का मानना है कि गंगासागर मेला किसी भी तरह कुम्भ मेले से कम नहीं है। गंगासागर मेले को भी कुंभ मेले जैसा दर्जा मिलना चाहिये। यहां विश्वस्तर पर श्रद्धालु आते हैं। जिसकी तैयारी राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है। जबकि कुम्भ मेले के लिए रेल और सडक़ पथ हैं। ऐसे में कुंभ मेले की तरह गंगासागर मेला को दर्जा मिलना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि गंगासागर लोग एक बार आते हैं, जबकि मुझे इस स्थल को ऐसा मुकाम देना है जहां लोग बार- बार आयें। इस लक्ष्य में राज्य सरकार बहुत हद तक आगे बढ़ चुकी है। आने वाले कुछ सालों में बाकी का काम पूरा हो जाएगा। गंगासागर की कायापलट में जुटी मुख्यमंत्री ने बताया कि जल्द गंगासागर के लिए मुरिगंगा में ब्रिज का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए उनकी केंद्र सरकार से भी बात हो चुकी है। इस ब्रिज के बनने के बाद लोगों को जल पथ से नहीं आना पड़ेगा। इस ब्रिज के बनने से श्रद्धालु सडक़ मार्ग से कचुबेरिया तक आ सकेगें। इसके अलावा जल मार्ग में होने वाली दुर्घटनाओं से भी बचा जा सकेगा।

-रमेश सर्राफ धमोरा

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