घोटालों के दौरान सीटी बजाने वाले सोते न रहें
-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट – सुप्रीम कोर्ट
हाल ही में नीरव मोदी नामक घोटालेबाज का उदय हुआ। इसके बाद रोटोमैक कम्पनी के मालिक कोठारी का घोटाला और अब द्वारका दास सेठ के घोटाले भी सामने आये हैं। इन तीनों घोटालों में बैंकों के साथ ही सैकड़ों हजारों करोड़ रुपये की ठगी की गई है। वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली ने इन घोटालों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक सदा सत्य रहने वाले सिद्धान्त को अपने वक्तव्य में प्रस्तुत किया है – ‘‘बैंकों के अधिकारियों के माध्यम से होने वाले यह घोटाले केवल नैतिकता के अभाव में ही होते हैं। हालांकि यह घोटाले छिट-पुट घटनाओं की तरह होते हैं।’’ श्री अरुण जेटली के इस वक्तव्य में दो बातें ध्यान देने लायक हैं। प्रथम, नैतिकता का अभाव और द्वितीय, छिट-पुट घटनाएँ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि बैंक घोटाले तो क्या दुनिया में घटित होने वाला कोई भी अपराध जो स्वार्थ या वासना के कारण किया जाता है उसमें नैतिकता का अभाव ही माना जायेगा। परन्तु सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भारत ही क्या सारे विश्व की सरकारें इस नैतिकता के अभाव को समाप्त करने के लिए कौन सा ठोस और लक्ष्यबद्ध कार्यक्रम चला रही हैं। जब सरकार यह जानती है कि सभी घोटाले और अपराध नैतिकता के अभाव में ही होते हैं तो सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इस नैतिकता के अभाव को दूर करने के लिए प्रयास प्रारम्भ करने चाहिए। इसके लिए किसी अतिरिक्त बजट की आवश्यकता नहीं है, केवल योजना और उसका लक्ष्यबद्ध क्रियान्वयन आवश्यक है। सभी स्कूलों और काॅलेजों के साथ-साथ सभी सरकारी, अर्द्धसरकारी और यहाँ तक कि गैर-सरकारी कम्पनियों और संगठनों आदि में भी ईमानदारी, चरित्र, देशभक्ति और शुद्ध खान-पान को लेकर व्यापक प्रचार अभियान प्रारम्भ कर दिये जाने चाहिए। स्कूलों और काॅलेजों में तो यह अभियान विद्यार्थियों के सभी पाठ्यक्रमों में मूल और केन्द्रीय विषय बन जाने चाहिए। यदि जेटली जी को यह सुझाव दिया जाये तो उनका स्वाभाविक उत्तर होगा कि वित्त मंत्रालय का यह काम नहीं है। जबकि वास्तविकता यह है कि वित्त मंत्रालय तो क्या हर मंत्रालय को अपने कर्मचारियों और अपने साथ जुड़कर कार्य करने वाले सभी संगठनों और कम्पनियों के कर्मचारियों में भी ईमानदारी और देशभक्ति जैसे सिद्धान्तों की स्थापना करने का दायित्व संभालना चाहिए। मूल रूप से मानव संसाधन मंत्रालय स्कूलों, काॅलेजों में यह प्रयास प्रारम्भ करे। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भी प्रतिदिन अपने भाषणों और वक्तव्यों में भी पूरे दर्द के साथ देशवासियों को ईमानदार और नैतिक बनने के उपदेश शामिल करने चाहिए। जब जापान के नागरिक अपने प्रत्येक कार्य में ईमानदारी और देशभक्ति की स्थापना कर सकते हैं तो भारत के इतिहास से प्रेरणा लेते हुए भारतवासी क्यों नहीं सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर प्रेरित हो सकते?
श्री जेटली के वक्तव्य में दूसरी महत्त्वपूर्ण और सत्य बात यह है कि घोटाले और भ्रष्टाचार आदि छिट-पुट ही होते हैं। एक बैंक में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में लेन-देन होते हैं जबकि घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले कुछ गिने-चुने ही होते होंगे। एक सीधा सा अनुमान लगाया जा सकता है कि लेन-देनों की कुल संख्या का एक प्रतिशत भी सम्भवतः भ्रष्टाचारी लेन-देन नहीं होंगे। प्रश्न यह है कि जब कोई विरला घोटाला या भ्रष्टाचार घटित होने की प्रक्रिया में चल रहा होता है तो क्या उस बैंक या संस्था के नीचे से ऊपर तक सभी अधिकारी उस गलत कार्य में शामिल हुए होते हैं? इसका स्पष्ट उत्तर है कि कोई घोटाला या भ्रष्टाचार भी गिने-चुने अधिकारियों के मिलीभगत से ही होता है। अब दूसरा प्रश्न यह है कि यदि गिने-चुने अधिकारी ही घोटाले की प्रक्रिया में शामिल होते हैं तो शेष अधिकारी और कर्मचारी ऐसे घोटालों के चलते क्या उनसे अवगत नहीं होते या जानबूझकर अथवा डरकर सोये रहते हैं?
इन प्रश्नों का उत्तर कुछ भी हो परन्तु सरकार यदि बड़े व्यापक स्तर पर ईमानदारी और देशभक्ति का आह्वान करती है, विशेष रूप से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा सरकार के सभी मंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री ऐसे आह्वान को अपने दैनिक कार्यों की तरह समझने लगते हैं तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत की सोई हुई जनता जो किसी भी प्रकार से घोटालों में शामिल नहीं है परन्तु उनकी नजरों के सामने घोटालों की प्रक्रिया चल रही है तो वे अवश्य ही ऐसी प्रक्रिया के विरुद्ध सीटी बजाने का काम तो कर ही सकते हैं।
देश के नागरिकों की बहुत बड़ी संख्या जब भ्रष्टाचार में शामिल ही नहीं है तो उन्हें सीटी बजाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उनके पूर्ण संरक्षण और इतना ही नहीं बल्कि उन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित करने के भी कार्यक्रम सरकार को प्रबन्ध करने होंगे। जब भी कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाता है तो भ्रष्टाचारी शक्तियाँ उस व्यक्ति के विरुद्ध हर प्रकार से अपनी शत्रुता दिखाने लगती हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोर्चा बांधने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को कई प्रकार के हमलों का शिकार होना पड़ता है। ऐसे लोगों के लिए अंग्रेजी में विस्सल ब्लोअर शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ है – सीटी बजाने वाला। कई बार तो ऐसे सीटी बजाने वाले बहादुर व्यक्तियों को अपने जीवन से भी हाथ धोना पड़ा। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई उस समय और अधिक कठिन हो जाती है जब सीटी बजाने वाला व्यक्ति स्वयं उस विभाग में ही नौकरी कर रहा होता है जिसमें फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध वह बार-बार अपनी आवाज उठाता है। ऐसे व्यक्तियों को तो सामान्यतः कड़ी प्रशासनिक प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। भ्रष्ट अधिकारी ऐसे सीटी बजाने वालों को दूर स्थानों पर स्थानांतरित करवा देते हैं या उनके विरुद्ध झूठी अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ भी प्रारम्भ कर देते हैं। दिखावटी छानबीन प्रक्रिया के बाद सजा के आदेशों के सहारे ऐसे सीटी बजाने वालों को विभाग से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। नौकरी से अस्थाई रूप से हटने या अन्तिम रूप से नौकरी गंवाने के बाद ऐसे व्यक्तियों के पास अदालत की लड़ाई ही एक मात्र मार्ग शेष बचता है। अदालत की लड़ाई में निर्णय सरलता और शीघ्रता से सम्भव ही नहीं होते। कई वर्षों की लड़ाई के बाद यदि सीटी बजाने वाला व्यक्ति कानूनी जंग जीत भी जाता है तो भी वह मानसिक रूप से काफी टूट चुका होता है।
भ्रष्टाचार की शिकायतों के लिए आज हमारे देश में केन्द्रीय सतर्कता आयोग स्थापित है जो वास्तव में सी.बी.आई. के ऊपर भी निरीक्षण का अधिकार रखता है। परन्तु इसमें शिकायत करने के लिए शिकायतकर्ता को अपना नाम आदि अवश्य ही लिखना होता है। हालांकि विस्सल ब्लोअर कानून में यह प्रावधान है कि शिकायतकर्ता के विवरण को सार्वजनिक न किया जाये। परन्तु वास्तविकता यह है कि शिकायतकर्ता का विवरण छिपा रह ही नहीं पाता। इसलिए शिकायतों पर शिकायतकर्ता के विवरण पर जोर देना उचित नहीं लगता। वैसे अब तो शिकायतकर्ता के नाम के स्थान पर केवल आधार कार्ड नम्बर से भी काम चलाया जा सकता है। क्योंकि आधार कार्ड नम्बर से सरकार के पास शिकायतकर्ता की पूरी सूचना तो आ जायेगी परन्तु किसी अन्य व्यक्ति को यह सूचना नहीं मिलेगी। आवश्यकता पड़ने पर झूठी शिकायत करने वालों को दण्डित करने का कार्य भी किया जा सकता है। परन्तु इस वक्त आवश्यकता यह है कि सीटी बजाने वालों को जागते रहने और बहादुरी के साथ भ्रष्टाचार उजागर करने के बदले पूरा संरक्षण तो मिलना ही चाहिए। परन्तु देशभक्ति की माँग तो यह है कि संरक्षण की परवाह किये बिना देशभक्त लोगों को हर समय जागरूक रहकर हर प्रकार के बलिदान के लिए तैयार रहते हुए भी सीटी बजाने का काम अवश्य ही करना चाहिए। भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद आदि जैसे शूरवीरों ने जब विदेशी सत्ता के विरुद्ध संग्राम किया तो उन्होंने कभी भी किसी संरक्षण की कामना नहीं की होगी। प्रधानमंत्री और देश के अन्य नेता यदि सच्चे मन से ऐसे आह्वान करेंगे तो देश के कोटि-कोटि नागरिक हर बड़े से बड़े घोटाले और छोटे से छोटे भ्रष्टाचार के विरुद्ध तन-मन-धन से सीटी बजाते हुए नजर आयेंगे।