सामाजिक

समुदाय को बना रही हैं सक्षम- सहानुभूति और आपसी सहयोग की कहानी

नई दिल्ली। हम चारों ओर चुनौतियों से घिरे हैं- फिर चाहे वह गर्मियों की चिलचिलाती धूप हो या कड़ाकेदार सर्दी, या बरसात के दिनों में लगातार बरसती बारिश- हम सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब लोग एकजुट हो जाते हैं। दुनिया भर में लोगों का एक दूसरे की मदद के लिए एकजुट होना इस बात को दर्शाता है कि आज की तेज़ी से भागती दुनिया में भी मानवता बाकी है। समुदाय के संगठित प्रयास हों या दयालुता से भरे कार्य, ये सभी पल हमें याद दिलाते हैं कि हमारे बीच के बदलावों और हमारे सामने आने वाली चुनौतियों के बावजूद हम एक दूसरे की परवाह करते हैं, एक दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं और यही साझा भावना मानवता को और मजबूत बनाती है।
लखनऊ की साधारण सी गृहिणी राधा मेहता ऐसी ही भावना का उदाहरण हैं, जो असाधारण दृढ़ संकल्प के साथ समाज सेवा के लिए तत्पर है। इसी सोच के साथ वे पिछले 14 सालों से हर गर्मी में मई-जून के महीने में राहत शिविर चलाती हैं, इस दौरान वे ज़रूरतमंद लोगों को भोजन, पानी और पेय पदार्थ मुहैया कराती हैं उनकी कहानी समाज सेवा, सहानुभूति, समर्पण का पर्याय है, जो भीषण गर्मी में लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन जाती हैं।
हर साल तापमान बढ़ने के साथ राधा मेहता इस शिविर की शुरूआत कर देती हैं। वे अपने इन कार्यों से समाज को शक्तिशाली संदेश देती हैं कि मनुष्य को हमेशा एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए। उनकी प्रतिबद्धता दूसरे लोगों को भी स्वेच्छा से मानव सेवा एवं दान के लिए प्रेरित करती है। पिछले 14 सालों के दौरान राधा हर साल दो महीने अपने इसी मिशन को समर्पित करती आई हैं, जो सबसे चुनौतीपूर्ण समय में दयालुता और उदारता का बेहतरीन उदाहरण है।
77 वर्षीय राधा मेहता की एनर्जी युवाओं को भी मात देती है। वह इंदिरा ब्रिज से निशातगंज की ओर जाने वाले फ्लायओवर के सामने दो महीने तक भोजन वितरण शिविर लगाती हैं। हालांकि एक दिन के लिए भी इस तरह का कैम्प लगाना अपने आप में मेहनत का काम है, लेकिन राधा दो महीने तक इसे जारी रखती है। उनका उत्साह, बहादुरी और दृढ़ इरादा सही मायनों में प्रेरणादायी है।
इस साल राधा ने 1 मई से 30 जून के बीच फिर से यह कैम्प लगाया। राधा पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं। इस कैम्प में वे प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल गिलास में नहीं बल्कि स्टील के गिलास में पान पिलाती हैं। हर शनिवार को वह खुद खाना बनाकर, आस-पास से गुज़रने वाले राहगीरों का पेट भरती हैं। उनके बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह भोजन भी पत्तलों में परोसती हैं, ताकि पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे। इसके अलावा खाना बांटने की प्रक्रिया भी ठीक तरह से होती है, लोग कतार में लगकर खाना लेते हैं, पूरी प्रक्रिया में पर्यावरण की सफाई और सुरक्षा को ध्यान में रखा जाता है।
राधा मेहता की टीम में कॉलेज के छात्र, महिलाएं और स्वयंसेवी शामिल हैं। मधुबनी, बिहार से भोला मंडल दो महीने इस कैम्प में उनकी सहायता करते हैं। इसी तरह छात्र जैसे सुमित, आयूष और अमन भी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उनके साथ समाज सेवा में योगदान देते हैं। अक्सर कैम्प में दान देने वालों की इच्छा के मुताबिक कुछ खास चीज़ें भी बांटी जाती हैं, जो निरंतर हो रहे चैरिटेबल प्रयासों को दर्शाता है।
आईसक्रीम जैसी चीज़ों को बांटे जाने वाले खाने में शामिल करना समाज सेवा के प्रति उनकी उत्सुकता को दर्शाता है। राधा अपने नेककार्यों का श्रेय भगवान हनुमान को देती हैं। वे कहती हैं कि ज़रूरतमंद लोगों को भोजन मिलने के बाद उनके चेहरे पर खुशी देखकर बहुत अच्छा लगता है, भूखे को खाना खिलाने और प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य कोई और नहीं हो सकता।
राधा मेहता की कहानी सिर्फ राहत शिविर की की कहानी नहीं है; यह मानवता की भावना का प्रतीक है। 77 वर्ष की उम्र में भी उनकी निःस्वार्थ सेवा किसी भी चुनौती का सामना करते हुए सहानुभूति और समाज सेवा का संदेश देती है। ऐसी दुनिया में जहां अक्सर छोटी-छोटी चीज़ें लोगों में मनमुटाव या अंतर का कारण बन जाती हैं, वहीं राधा मेहता का राहत शिविर एकजुटता और दयालुता का शक्तिशाली संदेश देता है।

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