सामाजिक

अस्मिता : एक पहल महिला सशक्तीकरण की ओर

नई दिल्ली। “किसी भी समाज मे जितनी अधिक सशक्त नारी होगी वो समाज उतना अधिक सशक्त और संगठित होगा”। ये विचार हैं पद्म भूषण शबाना आजमी के। विश्वविख्यात अभिनेत्री होने के साथ साथ शबाना पूर्व राज्य सभा सदस्य तो हैं ही, उनकी पहचान महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र मे एक दमदार एक्टिविस्ट के रूप मे भी है। शबाना रविवार को एक विशेष कार्यक्रम के लिए दिल्ली मे थीं। महिला सशक्तिकरण पर आधारित कार्यक्रम मे शबाना आजमी ने मुख्यातिथि के रूप मे शिरकत की। अपने संबोधन मे शबाना ने ध्यान दिलाया कि हालांकि स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं लेकिन फिर भी अलग-अलग देखा जाये तो स्त्री को प्रकृति ने अधिक शक्तिशाली बनाया है। इसका सीधा सीधा उदाहरण है कि जहां पुरुष केवल अपने प्रॉफेशनल जीवन मे तरक्की करके संतुष्ट हो जाते हैं वहीं महिलाएं अपने प्रॉफेश्नल दायित्वों का निर्वाह करते हुए परिवार के प्रति अपने सभी कर्तव्यों के निर्वाह भी लगातार करती रहती हैं। महिलाओं की प्राथमिकता जहां एक ओर उनका प्रॉफेशनल कामिटमेंट होता है वहीं उनको अपने बच्चों के सम्पूर्ण विकास और उनके कैरियर के प्रति भी पूरी तरह से सजग और बच्चों के साथ लगातार संवाद भी करते रहना होता है।
शबाना आजमी नारी सशक्तिकरण पर आधारित एक विशेष कार्यकरम के लिए दिल्ली आई थी। कार्यक्रम ‘अस्मिता’ का आयोजन किया था फाउंडेशन फॉर मैनेजमेंट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एफ एम आर टी) ने। ‘अस्मिता’ एक वुमन लीडरशिप काॅन्क्लेव था जिसका लक्ष्य था नारी सशक्तिकरण के क्षेत्र मे काम कर रहे विभिन्न कार्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों को एक मंच पर इकट्ठा करना। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ की गई। इसके उपरांत शिक्षाविद और एफ एम आर टी की प्रमुख डॉ ज्योति राणा ने सभी विशिष्ट व्यक्तियों और अन्य लोगों का स्वागत करते हुए बताया कि ‘अस्मिता’ का आयोजन करने का उद्देश्य क्या था। इसके अलावा डॉ ज्योति जो स्वयं शिक्षा क्षेत्र से लंबे समय से जुड़ी हुई हैं और अपने कार्य क्षेत्र मे नए प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं, ने बताया कि एफएमआरटी किस प्रकार ना केवल महिला सशक्तिकरण का एक मजबूत प्लेटफार्म बन चुका है बल्कि लीडरशिप, रिसर्च और मोटिवेशनल कार्यशालाओं के माध्यम से आज के युवाओं, विशेषकर महिलाओं मे जागरूकता लाने के लिए प्रयासरत है। फरीदाबाद से शुरू किया हुआ यह प्रयास अब देश भर मे अपना असर दिखा रहा है। डॉ. ज्योति ने इस संबंध मे आने वाले समय मे अपने और कार्यक्रमों से भी सभी को अवगत कराया।
प्रमुख वक्ताओं मे विश्व प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोवना नारायण ने कहा, “यह आवश्यक है कि औरों से पहले आप स्वयं के प्रति सच्चे हों। स्वयं के प्रति सच्चा होना आपको अंदर से मजबूत बनाता है और आप किसी भी क्षेत्र मे आगे बढ़ने से हिचकिचाते नहीं है।“ उन्होने कहा कि देखा जाये तो अपने प्रति सत्य होना ही हमें सशक्तिकरण की ओर ले जाता है, इसके अलावा उनहों अपने अनुभवों को भी सभी से साझा किया।
ईटी नाऊ की न्यूज चीफ एडिटर सुप्रिया श्रीनेट ने विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा, “बोरडरूम तक जाना किसी कैट रेस की तरह नहीं है बल्कि यह एक लंबी प्रक्रिया है अपने आप को पूरी तरह से परिष्कृत करने की। बदले माहौल मे अपने आप को स्वयं ही तोलना होता है और पूरी तरह से अपने आप को बदलने ही सशक्तिकरण की शुरुआत है।
आईआईएम के पूर्व निदेशक प्रोफेसर देबाशीश चटर्जी, 17 किताबों के लेखक और जिन्हें उनके मोटिवेशनल सेशन के लिए जाना जाता है, ने अपने सम्बोधन मे कहा, “नारी सशक्तिकरण कोई एक दिन या कुछ दिन का मसला नहीं है। एक मजबूत समाज के लिए नारी का सशक्तीकरण एक निर्बाध चलने वाली प्रक्रिया है। “
जी एंटर्टेंमेंट की स्वतंत्र निदेशक निहारिका वोहरा, एसिड अटैक के खिलाफ आवाज उठाने वाली लक्ष्मी अग्रवाल और ट्रान्सजेंडर समाज के अधिकारों के लिए लड़ रही कल्कि सुबरमानियम ने भी इस विषय मे अपने विचार रखे। लक्ष्मी अग्रवाल ने कहा कि किसी भी समस्या को देखने का नजरिया बदलने की जरूरत है। समस्या को एक अड़चन के रूप मे नहीं बल्कि उसे विकास की सीधी के रूप मे प्रयोग किया जाना चाहिए।
पेनल डिस्कशन के दौरान, जिसमें मॉडरेटर रही डॉ. ज्योति राणा, भारतीय वुमन एंटेर्प्रेनेर सम्मान से नवाजी गई शुक्ल बोस ने कहा कि वास्तव मे मानवीय संवेदनाओं के सशक्तीकरण के लिए पहले महिला सशक्तीकरण आवश्यक है क्योंकि यह नारी ही है जो अधिकतम मानवीय भावनाओं का वहन करती है। भूतपूर्व मिस इंडिया वर्ल्डवाइड शिवानी वजीर पसरीच, जो मॉडल, एक्टर और मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं ने अपने वक्तव्य मे “मैं” से “हम” होने की प्रक्रिया को सशक्तीकरण का पहला कदम बताया।
एशिया की एकमात्र महिला प्रॉफेश्नल मेंटलिस्ट डॉ. कृति पारिख ने इस बात पर बल दिया कि नारी सशक्तीकरण के लिए यह आवश्यक है कि नारी अपने आप को मानसिक रूप से मजबूत बनाए क्योंकि कोई भी बदलाव मानसिक सोच से ही शुरू होता है। उन्होने इस बात पर बल दिया कि नारी को आवश्यकता है और अधिक क्रिएटिव होने की ।
जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ. प्रताप चौहान, जानी मानी शिक्षाविद और अनेक पुस्तकों कि रचीयता डॉ कविता ए शर्मा, प्रीति सिंह जो क्रॉस रोड नाम की पुस्तक की रचियाता हैं और दीप्ति मिश्रा जो स्वयं एक अभिनेत्री होने के साथ साथ आर जे, कवयित्री और लेखिका हैं, ने भी अपने विचार और अनुभव साझा किए।
धन्यवाद प्रस्ताव के साथ डॉ ज्योति राणा ने कहा कि यह काॅन्क्लेव इस दिशा मे एक पहला कदम है और हम आशा करते हैं कि हम इसी तरह के सफल आयोजन भविष्य मे भी करते रहेंगे। उन्होने कहा कि यह सवाल केवल महिला सशक्तीकरण का नहीं है बल्कि हमारे समाज की बुनियादों को मजबूत करने का है। उन्होने कहा कि जहां एक ओर नारी पिछली पीढ़ी से अपने पुराने रस्मों रिवाज और समाज के व्यवहार सीखती है वहीं वो अपनी शिक्षा द्वारा जो सीखती है उसे अपने परिवार और अपने प्रॉफेशन मे पूरी तरह से अपना सहयोग देती है। यह विषय ऐसा है जिस पर समय समय पर मंथन जरूरी तो है ही साथ ही जरूरी यह भी है कि इस विषय पर सोच सकारात्मक हो।

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