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फ्लो डायवर्टर स्टेंट्सर एन्यूरिज्म रोग के उपचार के नवीनतम इंटरवेंशन तकनीक

एन्यूरिज्म यानी धमनी विस्फार, शरीर की रक्त वाहिकाओं में होने वाला एक गंभीर रोग है, इस रोग में रुधिर वाहिनियों की दीवारें कमजोर होने से उनमें सूजन आ जाती है और वे एक गांठ की तरह फूल जाती हैं। फूली हुई कमजोर धमनियों पर रक्त का दबाव पड़ता है, जिसका नतीजा खून का गुब्बारा फूटने जैसा होता है। एन्यूरिज्म रोग धमनियों और शिराओं के साथ-साथ शरीर के किसी भी अंग से गुजरने वाली रक्त वाहिकाओं में हो सकता है, जिसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं। हालांकि, सबसे अधिक सामान्य तौर पर यह रोग महाधमनी, मस्तिष्क, आंतों और घुटनों के पीछे वाले हिस्से में पाया जाता है। यदि एन्यूरिज्म से प्रभावित वाहिका फूट जाए तो यह बड़ी मात्रा में खून के आंतरिक स्त्राव और घाव का कारण बन सकता है, जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। यह रोग धूम्रपान, बढ़ती उम्र, उच्च कोलेस्ट्रॉल (रक्तवसा), उच्च रक्तचाप और ऊतकों के विकारों आदि जोखिम के संभावित कारकों के संयोजन के कारण पैदा होता है। अभी तक की अधिकांश स्थितियों में एन्यूरिज्म रोग के लक्षणों का पता तभी चलता है जब रक्त वाहिका फूट जाती है। इन हालातों में एन्यूरिज्म प्रभावित रक्त वाहिका की स्थिति, शरीर में मौजूदगी का स्थान और आकार देखकर ही इंटरवेंशन (हस्तक्षेप) आधारित तकनीक से उपचार किया जा सकता है।

पुरुषों के लिए खतरा अधिक
गुरुग्राम स्थित अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज, आर्टेमिस हॉस्पीटल के न्यूरोइंटरवेंशन विभाग के निदेशक डॉ. विपुल गुप्ता का कहना है कि सामान्यतः महिलाओं की तुलना में पुरुषों को एन्यूरिज्म रोग होने का खतरा अधिक होता है। 60 साल से अधिक आयु वर्ग वाले व्यक्ति इस रोग की जद में सबसे अधिक आते हैं, उन्हें यह रोग होने का सर्वाधिक खतरा होता है। इस रोग के दूसरे कई कारक भी हैं। शरीर में कोलेस्ट्रॉल और वसा बढ़ाने वाला भोजन ग्रहण करना, हृदय रोगों और हृदयघात का आनुवांशिकी इतिहास रखने वाले परिवारों के सदस्य, मोटापा, धूम्रपान, गर्भावस्था भी तिल्ली के एन्यूरिज्म का खतरा बढ़ा देती है।

एन्यूरिज्म के प्रकार
एन्यूरिज्म का वर्गीकरण मुख्यत शरीर के अंगों में इसकी मौजूदगी के आधार पर किया जाता है। मस्तिष्क और हृदय में पाई जाने वाली रक्त वाहिकाएं इस रोग से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं और इनमें खतरा भी उच्च स्तरीय होता है, इस रोग में रक्त वाहिकाओं में दो तरह से सूजन आ जाती है। पहले प्रकार में पूरी रक्त वाहिका फूल जाती है। यह फुलाव रक्त वाहिका मंत चारों ओर से गोलाकार होता है। वहीं, दूसरे प्रकार में रक्त वाहिका किनारों की दीवारों से फूलकर फूटती है। अंगों के आधार पर एन्यूरिज्म रोग के सबसे सामान्य प्रकार निम्न हैं –
1. एऑर्टिक एन्यूरिज्म (महाधमनी विस्फार) : महाधमनी शरीर की सबसे लंबी और मुख्य धमनी है। यह हृदय के बाएं निलय से शुरू होकर सीने से गुजरती हुई उदरगुहा तक जाती है। एऑर्टिक एन्यूरिज्म की स्थिति होने पर इसमें सूजन आ जाती है, इस रोग में सूजन के कारण महाधमनी 2.5 सेंटीमीटर के अपने सामान्य व्यास दोगुना बढकर 5 सेंटीमीटर या उससे भी अधिक मोटी हो जाती है। एब्डॉमिनल एऑर्टिक एन्यूरिज्म (एएए), थोरासिस एऑर्टिक एन्यूरिज्म (टीएए)।
2. सेरेब्रल एन्यूरिज्म (मस्तिष्क धमनी विस्फार) : एन्यूरिज्म रोग का यह प्रकार मस्तिष्क के अंदर होता है, जिसमें मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली धमनियां इसका शिकार होती हैं। छोटे फल के आकार में दिखने के कारण इसके बैरी एन्यूरिज्म भी कहा जाता है. इसमें फूली हुई धमनी बार-बार फूटती है और उसमें से रक्त बहता है, इसके कारण 24 घंटे में ही मरीज के लिए घातक स्थितियां पैदा हो जाती हैं।
3. पेरिफेरल्स एन्यूरिज्म : एन्यूरिज्म के इस प्रकार में महाधमनी के इतर मौजूद अन्य रक्त वाहिकाओं में सूजन की समस्या पैदा होती है। यह तरह की समस्या जानुपृष्ठीय (घुटने के पीछे मौजूद) धमनियों में उत्पन्न होती है, जो जांघ के निचले हिस्से और घुटने तक जाती हैं। इसके अलावा ऊसन्धि, गला, बांह, और गुर्दे व आंतों तक रक्त का संचरण करने वाली धमनियों में भी इस प्रकार की समस्या पैदा होती है।

कैसे करें इसकी पहचान और निदान
सामान्य तौर पर एन्यूरिज्म पहचान में नहीं आता है, इसके निगरानी और उपचार के लिए विशेष जांच कराया जाना जरूरी है। महिलाओं में एन्यूरिज्म रोग होने का खतरा पुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। इस रोग का खतरा पहचानने के लिए 55 वर्ष या अधिक आयुवर्ग वाले और नियमित धूम्रपान करने वाले पुरुषों को अल्ट्रासाउंड जांच जरूर करानी चाहिए। एमआरआई स्कैन की जांच से भी एन्यूरिज्म को पहचानने में मदद मिलती है। इसकी मदद से धमनी के फूटने से पहले ही रोग के स्तर को पहचान लिया जाता है। यदि एन्यूरिज्म से प्रभावित धमनी फूट जाती है और मस्तिष्क में खून बहने का खतरा बढ़ जाता है तो रोग की स्थिति को जांचने में सीटी स्कैन मददगार होती है। वहीं, यदि मस्तिष्क में कई धमनियां इस रोग के कारण फूट जाती हैं और खून बहने से मरीज की हालात बेहद गंभीर हो जाती है तो उपचार के लिए सटीप प्रभावित क्षेत्रों को पहचानने के लिए एंजियोग्राम (वाहिका चित्र) जांच की मदद ली जाती है।

सर्जिकल इंटरवेंशन (शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप के जरिए चिकित्सा) – फ्लो डायवर्जन स्टेंट
डॉ. विपुल गुप्ता के अनुसार एन्यूरिज्म रोग से ग्रसित धमनियों को फूटने से पहले प्रारंभिक स्तर में ही उपचारित करने के लिए नवीनतम इंटरवेंशन (हस्तक्षेप) तकनीक की मदद से शल्य क्रिया की जा सकती है। इसके लिए फ्लो डायवर्टर स्टेंट उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है, जो पाइपलाइन विधि की तकनीक से रुधिर का बहाव एन्यूरिज्म प्रभावित वाहिका में होने से रोकता है। इसमें मूल रुधिर वाहिका में एक उपकरण डाला जाता है, जो रक्त के प्रवाह को सही दिशा में मोड़ देता है। यह इंटरवेंशन एडोवस्क्यूलर (अंतर्वाहिकी) प्रणाली से होता है, जिसमें बेलनाकार, धातुजाल का एक स्टेंट एन्यूरिज्म प्रभावित रक्त वाहिका में डाल दिया जाता है। यह स्टेंट रक्त वाहिका के प्रभावित वक्र को एन्यूरिज्म के रूप में फैलने से रोकता है और इसमें रुधिर का सही दबाव बनाए रखता है ताकि एन्यूरिज्म नियंत्रण में रहे। समय गुजरने के साथ-साथ रक्त वाहिनियों में बने रुधिर के थक्के प्राकृतिक रूप से सही हो जाते हैं। रक्त वाहिनियों के सामान्य होने पर उनकी सूजन भी कम हो जाती है और रक्त संचरण सुचारू रूप से होता रहता है। फ्लो डायवर्जन की तकनीक का इस्तेमाल गर्दन से मस्तिष्क में एन्यूरिज्म के बड़े और जटिल मामलों में भी किया जा सकता है, इसके उपचार के लिए यह सर्वाधिक प्रभावी और नवीनतम तकनीक है।

समुचित जीवनशैली से कम किया जा सकता है खतरा
एन्यूरिज्म के अधिकांश मामले जन्मजात होते हैं। इस रोग को पहचानना और रोका जाना हमेशा संभव नहीं है। इसकी यह स्थितियां इसे और भी गंभीर बनाती हैं. हालांकि, जीवनशैली में किए जाने वाले समुचित बदलाव इस रोग का खतरा कुछ हद तक कम कर देते हैं। धूम्रपान छोड़ना, रक्तचाप को सामान्य बनाए रखना, सामान्य बीएमआई बनाए रखें, उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले भोज्य पदार्थों से दूर रहें।

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