लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

तनाव बढ़ा देता है इनफर्टिलिटी का खतरा

दौड़ भाग प्रतिस्पर्धा से भरे जीवन ने तनाव का स्तर बढ़ा दिया। तनाव हमारे मूड को ही नहीं शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में प्रत्येक 10 में से 3 दंपत्ति बांझपन की समस्या से जूझ रहे हैं, जिसका सबसे प्रमुख कारण तनाव है। तनाव के कारण अनियमित मासिक धर्म, इरेक्टाइल डिसफंकशन, अंडाशय की कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाना, हार्मोन असंतुलन, शुक्राणुओं की संख्या में कमी आना जैसी समस्याएं हो जाती है जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती हैं । तनाव के कारण अनिद्रा, डायबिटीज और मोटापे की आशंका बढ़ जाती है जो बांझपन का कारण बन सकती हैं। तनाव के कारण अनिद्रा, डायबिटीज और मोटापे की आशंका बढ़ जाती है जो इंफर्टिलिटी का कारण बन सकती हैं। आंकड़े के हिसाब से, युवा महिलाओं में तीन सबसे अधिक जीवन शैली की बीमारियों में इंफर्टिलिटी का कारण हैं एडोनोमायोसिस, एन्डोमेट्रीओसिस और पीसीओडी। लुधियाना स्थित इंदिरा आईवीएफ हॉस्पिटल के आईवीएफ स्पेशलिस्ट डाॅ. बकुल कपूर का कहा कि वास्तव में तनाव से महिलाओं के दिमाग, पिट्यूटरी और ओवेरी के बीच संबंध गड़बड़ा जाता है। तनाव के दौरान शरीर में कई तरह के न्यूरोकेमिकल परिवर्तन होते हैं, इसके अतिरिक्त गर्भधारण की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण केमिकल मैसेंजर की स्थिति भी भावनाओं में परिवर्तन के साथ बदल जाती है, जिससे इंफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है। ऐडेनोमायोसिस औरतों को होने वाली एक ऐसी बीमारी होती है, जिसमें गर्भाशय की मांसपेशियों के भीतर लाइनिंग टिश्यू (एंडोमीट्रियम) का स्थानान्तरण विशेषता गलत जगह पर होता है। जिससे मांसपेशियों में सूजन, गर्भपात की संभावना और परेशान हालत में गर्भाशय का सिकुड़ना जैसे परेशानियां होने लगती है। इसी प्रकार, एंडोमीट्रियोसिस में ऊतक सामान्य रूप से गर्भाशय के अंदर की लाइनेें बढकर गर्भाशय के बाहर (एंडोमेट्रियल प्रत्यारोपण) आ जाती है जिससे कुछ मामलों में गंभीर दर्द होने लगता है। पीसीओडी में अंडाशय में वृद्धि की ओर जाता है और ज्यादातर प्रजनन आयु में महिलाओं को होता है।
इस रोग के लक्षण मासिक धर्म चक्र से जुड़े संबंधिक कारण एक समान ही हैं, चाहे कभी-कभी/लंबे समय तक या अत्यधिक रक्तस्राव और माहवारी और अण्डोत्सर्ग के दौरान दर्द। रोग के अन्य लक्षण भी है पेट में ऐंठन और रक्त के बड़े क्लाट्स पड़ना। पीसीओडी के मामले में अतिरिक्त बाल विकास, मुंहासे और मोटापा भी देखा जा सकता है और इसके शीघ्र निदान और उपचार लंबे समय तक जटिलताओं के खतरे को कम करता है। वास्तव में तनाव से महिलाओं के दिमाग, पिट्यूटरी और ओवेरी के बीच कम्युनिकेशन गड़बड़ा जाता है। डाॅ. बकुल कपूर के अनुसार तनाव के दौरान शरीर में कई तरह के न्यूरोकेमिकल परिवर्तन होते हैं, इसके अतिरिक्त गर्भधारण की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण केमिकल मैसेंजर की स्थिति भी भावनाओं में परिवर्तन के साथ बदल जाती है, जिससे बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। आंकड़े के हिसाब से युवा महिलाओं में तीन सबसे अधिक जीवन शैली की बीमारियों में बांझपन का कारण हैं एडोनोमायोसिस, एन्डोमेट्रीओसिस और पीसीओडी हैं। सौभाग्य से, इस रोग के चेतावनी संकेतों को ध्यान से देखें और सही समय पर आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें और उनसे जाकर मिलें तो इसका उपचार संभव हैं। गर्भावस्था में तनाव इंटरफेयर कर सकता हैं, हालांकि स्पष्ट रूप से नहीं लेकिन करता रहता है। यद्यपि तनाव, अवसाद या चिंता सीधे प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करते है, बल्कि कुछ हार्मोनल गड़बड़ी होने लगती है जिससे आपकी मासिक धर्म चक्र प्रभावित होती है और साथ ही अंडे का उत्पादन कम होने लगता है। नियंत्रित 30 मिनट तक व्यायाम व्यक्ति को तनाव मुक्त रहने में मदद करता है, सप्ताह के अधिकांश दिनों में सभी वयस्कों को व्यायाम करने की सलाह दी जाती है।

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