संपादकीय

“मेरा रंगमंच मेरे बाह्य-जगत और अंतर-जगत के बीच का सेतु है – रतन थियम”

नई दिल्ली। रजा फाउन्डेशन और इंडिया हैबिटट सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में ‘हबीब तनवीर मेमोरियल लेक्चर’ श्रृंखला का छठवां व्याख्यान चर्चित नाटककार रतन थियम द्वारा ‘MY THEATRE : MY JOURNEY’ अर्थात ‘मेरा रंगमंच रू मेरी यात्रा’ विषय पर 19 सितम्बर 2018 को इंडिया हैबिटट सेंटर के गुलमोहर सभागार में संपन्न हुआ। रजा फाउन्डेशन नियमित रूप से साहित्य, संस्कृति और कला माध्यमों में अपनी विविध गतिविधियों से विद्वत समाज का ध्यान आकृष्ट करता रहा है। रजा फाउन्डेशन द्वारा आयोजित आठ व्याख्यान श्रृंखला अज्ञेय, कुमार गंधर्व, मणिकौल, हबीब तनवीर, वी.एस. गायतोंडे, केलुचरण महापात्रा, चार्ल्स कोरिया और दयाकृष्ण व्याख्यानमाला है, हबीब तनवीर व्याख्यान की प्रस्तुति में अब तक सदानंद मेनन, नवज्योति सिंह, शांता गोखले, नीलम मान सिंह, रुस्तम भरुचा का व्याख्यान संपन्न हुआ है।
हबीब तनवीर व्याख्यानमाला की शुरुआत रजा फाउन्डेशन के प्रबंध न्यासी एवं हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि वक्ता रतन थियम को गुलदस्ता भेंट कर के हुई। श्री अशोक वाजपेयी ने हबीब तनवीर का परिचय देते हुए हबीब तनवीर को भारत का महत्वपूर्ण प्रगतिशील मूल्यों का लेखक, नाटककार बताया। उन्होंने कहा कि रतन थियम हबीब तनवीर के परम्परा के नाटककार हैं। हबीब तनवीर के स्मृति में रजा फाउंडेशन अपने व्याख्यानमाला श्रृंखला के तहत नियमित आयोजन करता रहा है। मुख्य वक्ता रतन थियम ने अपने विषय ‘‘मेरा रंगमंच : मेरी यात्रा’’ पर बोलते हुए कहा कि रंगमंच अभिनेता और दर्शक के बीच होने वाले संवाद की एक सतत प्रक्रिया है जो कि दर्शक को अपनी स्वयं की कल्पना का निर्माण करने में, अग्रगामी संभावनाओं को सोचने और सम्पूर्ण अभिनय को दार्शनिक दृष्टिकोण के साथ अपनाने में मदद करती है।
रंगमंच एक सघन कला रूप है, जिसकी प्रस्तुतीकरण की प्रकृति और शैली अन्य सभी कलाओ के सहमेल एवं संबोधन से निर्मित होती है। उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि रंगमंच में किसी भी प्रस्तुति को दोहराया नहीं सकता है। इसमें समानता या पुनरावृत्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। एक अच्छा रंगमंच अभिव्यक्ति का वाहक है जो सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई सीमाओं को तोड़ सकता है। रंगमंच की भाषाभिव्यक्ति अनेक कला माध्यमों की तरह समय-समय पर बदलती रहती है, पर यह एक सतत प्रक्रिया एवं चुनौती है जिसे समय की सूक्ष्मता और उसकी चुनौतियों को नूतनता के साथ पकड़ना होता है।
रंगमंच में कोई भी दुहराव रंगमंच को कमजोर करता है। उन्होंने कहा कि रंगमंच मेरे लिए मेडिटेशन है जो मेरे बाह्य-जगत एवं अंतर-जगत के बीच एक सेतु का निर्माण करता है। यह मुझे अधिक मानवीय और रचनात्मक बनाता है। मेरा रंगमंच मेरे युद्ध एवं शांति का क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि अगर मुझसे कोई पूछे कि थियेटर क्या है? तो मैं निश्चित तौर पर कहूँगा, मैं नहीं जानता हूँ कि थियेटर क्या है। मैंने अपनी पूरी जिंदगी इसे समझने की कोशिश की है लेकिन जितना मैं आगे बढ़ता हूँ यह मुझे उतना ही जटिल लगने लगता है। इसके भाव और विचार कभी न खत्म होने वाला एक अभ्यास है। कला में जो कुछ भी शुरू होता है वह पहली बार इस तरह की दुनिया में पैदा होता है। इसलिए कल की नई दुनिया कला की दुनिया में पहले ही पैदा हुई है। हमारे पूर्वजों के संस्कार, दैनिक गतिविधि, अनुष्ठान, वनस्पतियों और जीवों से जुड़ाव हमारे पारंपरिक प्रदर्शन कलाओं के लिए मुख्य संसाधन हैं और वे हमारे थियेटर में प्रतिबिंबित होते हैं। रंगमंच मेरे रोजमर्रा की जिंदगी में मेरे अस्तित्व का जवाब है, मेरी परंपराओं की प्रेरणा को यह प्रेरित करता है। अज्ञात क्षेत्रों में प्रवेश करने की उत्सुकता, नई अनपढ़ विधियों को जानना, सटीक अभिव्यक्ति की खोज तकनीकों के साथ कुश्ती लड़ने के समान है। यह यात्रा स्वयं की संतुष्टि के लिए है और किसी और के लिए नहीं, लेकिन जब मैं अपना काम पूरा करता हूं तो प्रीमियर प्रदर्शन का अंत होता है। जिसे मैं वापस मुड के देखना नहीं चाहता। मैं ताजगी के साथ एक नए गर्भ में पैदा होना चाहता हूँ। रिहर्सल मेरे लिए सबसे उबाऊ चीज है। मैं प्रीमियर के साथ मर जाता हूँ।
नाटककार के रूप में नाटक का प्रीमियर होने के बाद मेरे संबंध का अंत भी है। मैं प्रीमियर के बाद रिहर्सल नहीं देखने की कोशिश करता हूं। मैं सपने देखता हूँ जो मेरी अंतर्यात्रा में मदद करती है। थिएटर बनाने के लिए श्रमिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और वित्त पोषण की आवश्यकता होती है। वित्त पोषण की कमी थिएटर की गुणवत्ता से समझौता करती है। इसी समझौते के रूप पर भारतीय रंगमंच चल रहा है। हम नए सांस्कृतिक परिदृश्य के साथ एक दुनिया में रहते हैं। इस दौरान रतन थियम ने कलाकारों की असुविधा और भारतीय संस्कृति की विविधता पर भी अपनी बात रखी। शहर के कई गणमान्य और विद्वतजन इस कार्यक्रम में मौजूद रहे। हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि विष्णु खरे के निधन पर इस कार्यक्रम में मौन रख कर श्रद्धांजलि भी दिया गया।

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