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बिल्डर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) ने सीमेंट रेग्युलेटरी अथॉरिटी के गठन की अपील करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को लिखा खत

नई दिल्ली। 5 नवंबर, 2020 को लिखे एक पत्र में बिल्डर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) के अध्यक्ष मू मोहन ने कहा है कि इस तरह की रेग्युलेटरी बॉडी के गठन से सीमेंट उद्योग में अनैतिक ढंग से हो रहे व्यापार के चलन की रोक-थाम में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा है कि अवैध और अनैतिक तरीके से हो रहे इस व्यापारिक चलन से देश के आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और इससे आम आदमी के हितों के साथ साथ कंस्ट्रक्शन उद्योग के हितों को भी भारी नुकसान हो रहा है। उल्लेखनीय है कि BAI ने इस तरह की मांग विभिन्न तरह की संवैधानिक बॉडीज, समितियों के अवलोकन और संसद व उनकी संसदीय समितियों को भेजे गये पपत्रों के आधार पर की है।
इस खत में लिखा गया है, ‘द कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) ने BAI द्वारा फाइल किये गये केस क्रमांक 29/2010 में 20 जून, 2020 को तथ्यात्मक तौर पर पाया कि सीमेंट उद्यमियों ने आपस में ही कार्टेल की व्यवस्था कर रखी है जिसके जरिये सीमेंट की बिक्री की दरों को आसानी से प्रभावित व नियंत्रित किया जाता है. इसे देखते हुए ब्ब्प् ने 10 सीमेंट उद्यमियों व सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (CMA) पर 6,307.32 करोड़ रुपये की पैनल्टी लगाई थी। इसके अलावा, CCI ने उनके खिलाफ श्सीज ऐंड डेसिस्ट ऑर्डर’ भी पास किया था. इस ऑर्डर के खिलाफ मैन्युफैक्चर्स ने नैशनल कंपनी लॉ एपीलेट ट्रायब्यूनल (NCLAT) में एक याचिका दाखिल की थी। NCLAT ने 25 जुलाई, 2018 में दिये अपने ऑर्डर में पैनल्टी को बरकरार रखा था। इस आदेश के खिलाफ सीमेंट उद्यमियों ने 05 अक्टूबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। यह याचिका तब से उच्चतम न्यायालय में लम्बित पड़ी है।’
इस पत्र में कार्मिक मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति के अवलोकन की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है। 24 फरवरी, 2011 को राज्यसभा में पेश की गयी श्परफॉर्मेंस ऑफ सीमेंट इंडस्ट्री’ शीर्षक वाली 95वीं रिपोर्ट में सीमेंट उद्योग के लिए रेग्युलेटरी अथॉरिटी की अनुशंसा की गयी है. रिपोर्ट में खत के हवाले से लिखा गया है, ‘समिति इस बार को लेकर बेहद हैरत में है कि सीमेंट के दाम बढ़ने के पीछे की एक वजह में सीमेंट उद्यमियों की मुनाफाखोरी की नीयत है। उचित दाम और सामान्य रीटेल दाम के कैल्कुलेशन से इस बात का अंदाजा हो जाता है कि सीमेंट के हर बैग पर होनेवाले मुनाफे के चलते उपभोक्ता यानि सामान्य लोगों पर इसका अनुचित भार पड़ेगा। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री भी प्रभावित होगी। इन्हीं कारणों के चलते समिति पुरजोर तरीके से इस बात की अनुशंसा करती है कि सीमेंट के दामों को नियमित करने व बाजार पर आधिपत्य स्थापित करने, क्षमता से कम इस्तेमाल व कृत्रिम रूप से सीमेंट की कमी पैदा करने की प्रवृत्तिओं पर रोक लगाने के लिए सरकार को संवैधानिक तौर पर रेग्युलेटरी अथॉरिटी का गाटन करना चाहिए।’
मोनोपोलीज ऐंड रेस्ट्रेक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेस कमिशन द्वारा की गयी जांच को भी इस पत्र में उल्लेखित किया गया है जिससे मुताबिक कमिशन ने सीमेंट कंपनियों के खिलाफ ‘सीज ऐंड डेसिस्ट’ ऑर्डर जारी किया था। MRTP कमिश्नर ने 28 नवंबर, 2006 में (जांच क्रमांक RTPE 99/1990) और 29 फरवरी, 2008 (जांच क्रमांक RTPE 21/2001) ने पाया कि ‘सीमेंट कंपनियां कार्टल बनाये जाने की दोषी हैं’ और ऐसे में कमिश्नर ने उनके खिलाफ ‘सीज ऐंड डेसिस्ट’ ऑर्डर जारी कर दिया। इतना ही नहीं, कमिश्नर उन सीमेंट कंपनियों को एक एफिडेफिट के जरिये लिखित तौर पर ये आश्वासन भी देने के लिए कहा कि वे दोबारा से कार्टलाइजेशन में लिप्त नहीं होंगे. BAI के पत्र में कहा गया है कि सीमेंट मैन्युफैक्चरों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी अपील अभी तक लम्बित है.
लोकसभा में 18 मार्च, 2020 को विशेष रूप से चिह्नित सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने सीमेंट उद्यमियों की सीमेंट उत्पादन की क्षमता से जुड़े वास्तविक आंकड़े पेश किये थे, जो कि सीमेंट मैन्युफैक्चरों के आंकड़े से भिन्न थे। पिछले तीन सालों में सीमेंट उत्पादन के आंकड़ों (2016-17 से 2018-19) सीमेंट का उत्पादन जानबूझकर क्षमता से कम किया जा रहा था. पत्र के मुताबिक, ‘इससे पता चलता है कि सीमेंट उत्पादक जानबूझकर सीमेंट उत्पादन की मौजूदा क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं जिससे बाजार में कृत्रिम तौर पर सीमेंट की कमी पैदा हो और इसके दामों को नियंत्रित किया जा सके।’
उल्लेखनीय है कि सीमेंट उद्योग को 1989 में अनियंत्रित कर दिया गया और देश में आर्थिक उदारवता की नीति लागू होने के बाद 1991 में इसे लाइसेंस से भी मुक्त कर दिया गया था। बाजार की मांग के आधार पर सीमेंट इंडस्ट्री नये प्लांट को स्थापित करने से जुड़े फैसले लेती है। उपरोक्त तथ्यों का हवाला देते हुए BAI ने प्रधानमंत्री मोदी से टेलीकॉम, रियल एस्टेट, बीमा जैसे क्षेत्रों की तर्ज पर सीमेंट उद्योग के लिए भी एक रेग्युलेटरी अथॉरिटी के गठन की मांग की है।
बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) कंस्ट्रक्शन उद्योग की सर्वोच्च संस्था है जिसकी स्थापना 1941 में की गयी थी। इस संगठन के देशभर के 200 केंद्रों (शाखाओं) के माध्यम से 20,000 से भी ज्यादा व्यापारिक सदस्य हैं। इस संगठन का बुनियादी मकसद कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में सुधार लाना, नीतियों के स्तर पर पेश आनेवाली दिक्कतों को सुलझाना और उद्योग को सुचारू रूप से चलाने में मदद करना है। सीमेंट उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अपना अहम योगदान देती है। ऐसे में नीति नियंताओं और प्रशासनिक अधिकारियों का इस उद्योग के प्रति ध्यान आकर्षित करना और इसकी तमाम जरूरतों को पूरा करना भी इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है।
बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) के अध्यक्ष श्री मू मोहन ने कहा, ‘देश की अर्थव्यवस्था में इंफ्रास्ट्रचर और हाउसिंग उद्योग का अहम योगदान रहता है और सीमेंट कंस्ट्रक्शन सेक्टर की बुनियादी जरूरत है। मगर सीमेंट इंडस्ट्री मुनाफाखोरी के चक्कर में कार्टलाइजेशन में लिप्त पाई जाती रही है। रोजगार देने के मामले में कृषि के बाद कंस्ट्रक्शन उद्योग दूसरे नंबर पर आता है जिसके जरिए देश के 5 करोड़ लोगों को रोजगार हासिल होता है और इस उद्योग से विभिन्न तरह के 400 से अधिक सहायक इंडस्ट्रीज भी जुड़ी हुईं हैं। देश की जीडीपी में इसका योगदान 9% फीसदी तक है और सरकार की योजनाओं में इसका 60% तक हिस्सा है. इस लिहाज से इस सेक्टर और आम लोगों के हितों की रक्षा करना और देश के आर्थिक विकास में सहायता करना बेहद जरूरी हो जाता है जिसके के लिए रेग्युलेटरी अथॉरिटी का गठन आवश्यक है।’

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