बीड़ी उद्योग पर जीएसटी की उच्च दरों के प्रभाव पर चर्चा के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा राउंडटेबल का आयोजन
नई दिल्ली। बीड़ी उद्योग भारत के संगठित क्षेत्र में चौथा सबसे बड़ा नियोक्ता है और आज यह कुछ बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। 4.5 करोड़ से अधिक लोगों के जीवन-यापन का सहारा, बीड़ी उद्योग आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। इस स्थिति में अखिल भारतीय बीड़ी उद्योग महासंघ ने आज जीएसटी की उच्च दर के असर और उद्योग में नियोजन पर इसके प्रत्यक्ष प्रभाव पर बहस के लिए एक गोलमेज (राउंडटेबल) चर्चा का आयोजन किया।
श्री अश्वनी महाजन, राष्ट्रीय संयोजक, स्वदेशी जागरण मंच और श्री बी. सुरेन्द्रन, अखिल भारतीय संगठन सचिव, भारतीय मजदूर संघ; श्री खलीलुर रहमान, सांसद (तृणमूल कांग्रेस); श्री लक्ष्मीनारायण यादव, पूर्व सांसद (भाजपा); श्री ए.एम. प्रसाद, पुलिस महानिदेशक, कर्णाटक (अवकाश प्राप्त); और श्री एम.एम. रहमान, पूर्व सीनियर फेलो, वी.वी.गिरी नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ लेबर से गठित प्रतिष्ठित पैनल ने विषय पर अपने-अपने दृष्टिकोण साझा किए। प्रसिद्ध लेखक और वार्तालाप संचालक, श्री राशिद किदवई तथा सुश्री प्रिया सहगल द्वारा संचालित इस चर्चा में अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आए।
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक, डॉ. अश्वनी महाजन ने कहा कि, “बीड़ी पर उच्चे जीएसटी उद्योग और कार्यबल, दोनों के लिए अहितकर है। भारत में बीड़ी के उत्पादन से करीब 90 लाख से लेकर एक करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। अधिकाँश कामगार महिलाएँ हैं जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ नौकरी का कोई वैकल्पिक अवसर मौजूद नहीं है। यही कारण है कि बीड़ी पर टैक्स कम करना ज़रूरी हो चला है अन्यथा यह उद्योग भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए गैर उपयोगी हो सकता है। इस कारण से चीनी सिगरेट की घुसपैठ और उस पर निर्भरता की स्थिति पैदा हो सकती है। हम चीन से आयात क्यों करें जब भारत ही में हम उत्पादन कर सकते हैं? अगर ऐसा हुआ तो घरेलू उत्पादन और रोजगार पर गंभीर चोट पड़ेगी और अनेक लोगों के जीवन-यापन पर संकट खडा हो जाएगा।”
सांसद, तृणमूल कांग्रेस, श्री खलीलुर रहमान, ने कहा कि, “बीड़ी एक स्वदेशी मानव-निर्मित उत्पाद है। यह बंगाल में 20 लाख से अधिक परिवारों के लिए आमदनी का प्राथमिक स्रोत बन गया है। बीड़ी उद्योग के बंद होने से इन परिवारों की आजीविका पर गंभीर असर होगा क्योंकि केन्द्रीय सरकार द्वारा इन परिवारों के लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं कराया गया है। जीएसटी की ऊँची दर के कारण बीड़ी की लागत में बढ़ोतरी के कारण इस उत्पाद के उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घट रही है जो अमूमन खुद ही बीड़ी उद्योग में काम करते हैं। इसलिए, उचित होगा कि सरकार बीड़ी पर जीएसटी की दर को कम करने में मदद करे ताकि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कुछ हद तक बची रहे और साथ ही सरकारी प्राधिकारियों को भी महत्वपूर्ण राजस्व संग्रह करने की अनुमति मिले।ष् सरकार ने जीएसटी के बाद तेंदू पत्तों पर टैक्स कम कर दिया था और राजस्व बढ़ गया है, इसलिए बीड़ी पर जीएसटी कम करने से वैसी ही घटना की आशा की जा सकती है।”
भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय संगठन सचिव, श्री बी. सुरेन्द्रन ने कहा कि, “नौकरी के वैकल्पिक अवसर निकालने के लिए भारत सरकार और अन्य संगठनों के प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला है।”
पूर्व सांसद, श्री लक्ष्मी नारायण यादव ने कहा कि, “बीड़ी के साथ एक मिथक जुड़ा है जो इसे कैंसर के कारक के रूप में चित्रित करता है और इसलिए अनेक लोग कहते हैं कि इस उद्योग को अब और नहीं रहना चाहिए। अगर जीएसटी की ऊँची दरों के कारण यह उद्योग बंद होता है तो बीड़ी नहीं पीने के विकल्प के रूप में लोग गुटखा का प्रयोग कर सकते हैं। बीड़ी का उत्पादन अल्प सुविधाप्राप्त महिला कामगारों के लिए आजीविका का स्रोत है और इससे अंततः महिला सशक्तीकरण होता है।”