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जल समानता की व्यवस्था

भारत, वैश्विक अर्थव्यवस्था में संभावनाओं भरा स्थान ज़रूर हो सकता है, लेकिन यहाँ पानी की उपलब्धता, आम तौर पर आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए ही आसान दिखती है। सभी के लिए समान रूप से पानी की पहुँच और पानी के उचित मूल्य निर्धारण से अंतर्निहित असमानताओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।
आप सुबह-सुबह, आधी नींद में, स्नान करने जाते हैं और आपका शरीर गुनगुने पानी के नरम अहसास से भर उठता है। यह रोज़मर्रा का काम है जो आपकी दिनचर्या में शामिल है। दूसरी ओर, ग्रामीण इलाकों में महिलाएँ सुबह की पहली किरण के साथ एक लंबी, कठिन यात्रा पर निकलती हैं। उनका मकसद होता है, कुछेक बाल्टी पानी भर लाना, जिसमें घंटों की मशक्कत लगती है। पानी, मौलिक मानवाधिकार है, जो भारत में कई लोगों के लिए अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है।
भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय स्थान ज़रूर है, लेकिन हर नागरिक तक पानी तक समान पहुंच चुनौती बनी हुई है। चीन और दक्षिण एशिया के अन्य देशों जैसे, पाकिस्तान तथा श्रीलंका के बीच, भारत ऐसा देश जहाँ जल संकट बहुत अधिक है। यहाँ की तेज़ी से बढ़ती आबादी के पास जल संसाधन अपेक्षाकृत कम है।
हालाँकि भारत में लोगों के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ाने की दिशा में गई कदम उठाए हैं। सरकार ने हर घर में नल पहुंचाने के लिए योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन पानी की उपलब्धता अभी भी असमान बनी हुई है। यह चिंता का विषय है कि स्वच्छ पानी की उपलब्धता जो बेहद महत्वपूर्ण है, वह भौगोलिक स्थिति और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है।
जलवायु परिवर्तन इसकी ज़रुरत और बढ़ा रहा है। आईपीसीसी का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से जल संकट को गंभीर रूप से बढ़ जाएगा। साथ ही इससे एक ऐसे वैश्विक भविष्य का संकेत मिलता है, जहाँ 2050 तक, 35% आबादी को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
इसके अलावा, भारत में जल संकट से खाद्य आपूर्ति में भारी कमी आ सकती है, जिससे भारत की 50% आबादी, जल संकट और गर्मी बढ़ने के कारण, भूख की चपेट में आ जाएगी। इस संबंध में प्रयास न हुए तो इसके भारी आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। मौजूदा रुझानों के मुताबिक, जल संकट के कारण 2050 तक, भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
पानी का मूल्य निर्धारण एक संभावित समाधान है जो इस बहुमूल्य संसाधन के दक्ष और न्यायसंगत उपयोग को बढ़ावा दे सकता है। दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में, 2016-2018 के बीच, गंभीर जल संकट पैदा हो गया था। शहर में नल सूखने के करीब थे, लेकिन उन्होंने पानी बचाने और इसका दक्ष उपयोग करने के लिए एक अभियान चलाया। उन्होंने पानी का ज़्यादा उपयोग करने वालों को दंडित करने और पूल, लॉन तथा गैर-ज़रूरी उपयोगों के लिए पानी पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारी शुल्क लगाना शुरू किया। इससे और आदत में बदलाव से जुड़े अभियानों से इस शहर को जल संकट से निपटने में मदद मिली।
भारत के लिए, पानी के मूल्य निर्धारण के मामले में सही संतुलन बनाना यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि ऐसी नीतियों से निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवारों पर बोझ न पड़े और पानी के वास्तविक मूल्य को प्रतिबिंबित करे और बर्बादी को हतोत्साहित करे। प्रौद्योगिकी की भी पानी के अपेक्षकृत अधिक दक्षता से इस्तेमाल में भूमिका निभा सकती है। जल प्रवाह, दबाव को समायोजित करने के लिए स्मार्ट मीटरिंग का उपयोग कर पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है और पाइपों में रिसाव को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, पुराने पाइपों के निरंतर रखरखाव से नुकसान को और रोका जा सकता है।
जल असमानता की समस्या के समाधान के लिए हमारे दृष्टिकोण में बदलाव की ज़रुरत है। हमें प्रतिक्रियावादी से क्रियाशील बनना होगा। जल संसाधनों के संरक्षण और न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माताओं और नागरिकों को बराबरी से मिलकर काम करने की ज़रुरत है। हम, हाथ पर हाथ धर कर, संकट के आने का इंतजार नहीं कर सकते। हमें फ़ौरन ऐसी नीतियां बनाने की ज़रुरत है जिससे जल असमानता का समाधान हो और अधिक कुशलता जल प्रबंध के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो।
जल संरक्षण में नगर निकायों की भी अहम भूमिका है। वे अपने परिचालन में जल संचयन और पुनर्चक्रण के अलावा, वहनीयता और समानता के सिद्धांतों पर तैयार जल प्रबंधन परियोजनाओं में निवेश कर सकते हैं। देश भर में वाटरशेड ऑर्गनाइजेशन ट्रस्ट (डब्ल्यूओटीआर) जैसे अभूतपूर्व कार्यक्रम क्रियान्वित किए जा रहे हैं, जिसके तहत पानी की इष्टतम, न्यायोचित और दक्ष इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए वॉटर बजटिंग नामक एक अनूठी पहल पर अमल किया जाता है। जल भागीरथी फाउंडेशन, देश के थार मरुस्थल के इलाकों में सबसे कमजोर तबकों और जल संकट से जूझ रहे समुदायों के बीच में उल्लेखनीय काम कर रहा है, ताकि पारंपरिक जल संग्रहण संरचनाओं को पुनर्जीवित कर और हर तरह से लैंगिक समानता लाने से जुड़ी परियोजनाओं, वॉश, गरीबी में कमी के ज़रिये इस क्षेत्र में पेयजल के भारी संकट और नाज़ुक जल पारिस्थितिकी तंत्र की समस्या का समाधान किया जा सके । इनसे, गोदरेज को सामाजिक पहल करने की प्रेरणा मिली।
गोदरेज, जल के उपयोग और प्रबंधन के लिहाज़ से सकारात्मक कंपनी है। हम राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से भारत में चार स्थानों पर वाटरशेड प्रबंधन परियोजनाओं की मदद और परिचालन करते हैं। हमने 2016 से, वाटरशेड के ज़रिये 3.2 करोड़ किलो लीटर पानी इकठ्ठा करने में मदद की है। हम गंभीर जल संकट वाले इलाकों में जल प्रबंधन मॉडल भी अपना रहे हैं। हम गहन आकलन कर संरक्षण, प्रबंधन और प्रबंधन से जुड़े सभी सम्बद्ध पक्षों की पहचान और समन्वय कर रहे हैं।
हमारे सामने एक संकट की घड़ी है और हम हाथ पर हाथ धरे नहीं रह सकते। जल के उपयोग एवं प्रबंधन के प्रति सकारात्मक बनाने की राह चुनौतीपूर्ण है, लेकिन असंभव नहीं है। अब समय आ गया है कि हम हर बूंद को महत्व दें – अपने लिए, अपने लोगों के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए। आइए, एक ऐसा भविष्य बनाएं जहाँ पानी सिर्फ चंद लोगों का विशेषाधिकार न हो, बल्कि इस पर सभी का अधिकार हो।

-गायत्री दिवेचा
गोदरेज इंडस्ट्रीज में गुड एंड ग्रीन प्रभाग की प्रमुख

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