संपादकीय

राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित शख्शियत पुरुषोत्तम पंचोली..

(अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक लहराया परचम)

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

हिंदी तो सब बोलते हैं पर शुद्ध साहित्यिक हिंदी बोलने वाले बिरले ही मिलेंगे। पुरुषोत्तम पंचोली उन बिरलों में से ही एक है जो न केवल हिंदी पढ़ते हैं, हिंदी लिखते हैं और आम बोलचाल में भी शुद्ध साहित्यिक हिंदी बोलते हैं। उनका साहित्यिक हिंदी बोलना ही उनकी हजारों में से नहीं वरन लाखों में अपनी अलग पहचान बनाता है। इतना ही नहीं सफेद धोती और कुर्ते की भारतीय वेशभूषा के अनुरूप हमेशा श्वेत पेंट-शर्ट में धवल वस्त्रधारी होना भी इनकी अपनी पहचान है। इनकी बड़ी समस्या है, ये अपने को लेखक माने या साहित्यकार ! इस समस्या ने मुझे उलझन में डाल दिया। खैर जो भी हो, मैं समझता हूं कि देश में राजस्थान में कोटा शहर के निवासी पुरुषोत्तम पंचोली राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित व्यक्तित्व के धनी हैं। इनके व्यक्तित्व में जिंदा है एक साहित्यकार, लेखक और पत्रकार । सहज और सरल इतने की कहते हैं ” मेरी तो सबसे बड़ी पूंजी है अकूत सम्पर्क और आप जैसे असंख्य मित्रों का स्नेह , सहयोग और प्यार जो मुझे बेशुमार मिला, बस यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धी है, बाकी तो सबकुछ संयोग और परिस्थितियों का परिणाम है”।

** पंचोली जी जीवन-यात्रा के कुछ पड़ाव और असामान्य अवसर और ईश्वरीय वरदानों को विनयवत और समग्र कृतज्ञता से स्वीकार कर बताते हैं कि उनका अधिकांश समय अधिक से अधिक पढ़ने, लिखने, चिंतन-मनन में गुजरता है। मुझे कहने में गर्व की अनुभूति होती है की पत्रकारिता और संपादन से शुरू हो कर इनकी यात्रा साहित्य सृजन के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुकाम तक पहुंची और ये देश में राजस्थान के सुनामधन्य साहित्यकारों और पत्रकारों की श्रेणी में अपना उच्चतम और अत्यंत सम्मानजनक स्थान रखते हैं, जो किसी के लिए भी गौरव का विषय हो सकता है।

** जनसंपर्क के जिस पेशे में था मैं, कहने को तो हजारों मित्र हैं पर कुछ ही चुनिंदा दिली चार – पांच स्नेहिल मित्रों में से एक हैं पंचोली जी। सेवाकाल के दौरान कई सालों तक हम निरंतर मिलते रहे, बतियाते रहे और हंसते खिलखिलाते रहे। न कोई काम न कोई स्वार्थ। हर समय मुस्कराते रहना, सबको सम्मान देना, दंभ छू तक नहीं गया, पत्रकार होने जैसी कोई बात नहीं, बेहद सहज, सरल और संवेदनशील, जो गलत है उसे नि:संकोच गलत कहने की हिम्मत, किसी भी प्रकार के प्रलोभन से न झुकने वाले और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए किसी प्रकार का समझौता नहीं, वादा कर लिया तो हर हाल में निभाना और भाग्यवाद पर पूरा भरोसा जैसे इनके व्यक्तित्व के गुणों को बहुत करीब से देखने और महसूस करने का मुझे मौका मिला। परिस्थिति वश आए दिन मिलने वाले मित्रों का कई अरसे तक मिलना नहीं हो पाया और जब मिले तो लगा जैसे कल ही की बात है।

** मन की इच्छा के विरुद्ध कार्य नहीं करने का हाल ही का वाकिया है भारतीय रेल से संबंधित मेरी पुस्तक के लिए भूमिका लिखने का आग्रह स्वीकार कर 15 दिन में लिखने का वायदा कर लिया। मैं आश्वस्त हो गया। इसी बीच इनको रेल से यात्रा पर जाना पड़ा और इनको रेलवे से संबंधित कोई कड़वा अनुभव हो गया। इन्होंने वह अनुभव मुझे लिख भेजा और बहुत ही विनम्रता से कहा मेरे लिए अनुभव को देखते हुए और अपनी आत्मा की आवाज के विरुद्ध भूमिका लिखना संभव नहीं होगा। चुकी मैं अपने मित्र के मिजाज़ से भलीभांति वाकिफ था सो जरा भी विचलित नहीं हुआ। ऐसा है इनका व्यक्तित्व साफ कहना सुखी रहना।

** साहित्य सृजन :

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के तौर पर मिश्र में सहभागिता करने का गौरवमय पल आपको नसीब हुआ। आप 19 वे अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन (इजिप्ट – 06 से 17 जून 2022) में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। साहित्य के क्षेत्र में दसवीं कक्षा में विद्यालय की वार्षिक पत्रिका के संपादन के रूप में पहला कदम रखा। कॉलेज के ही दिनों में राजस्थान की सबसे बड़ी और सर्वाधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ” भारतेन्दु समिति कोटा ” के प्रधानमंत्री पद का दायित्व निर्वहन किया और समिति की प्रतिनिधि साहित्य की शौध पत्रिका ” चिदम्बरा “का दो साल तक प्रबंध सम्पादक और चार साल तक प्रधान सम्पादक रहे। आपने समय – समय पर वाणिज्य परिषद की वार्षिक पत्रिका ” विजया ” का और नगर परिषद द्वारा राष्ट्रीय दशहरा मेले के वार्षिक स्मारिका के संपादक रहे। आपको 1979 में तब के ओजस्वी वक्ता और देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ऐतिहासिक विराट जन सभा में भाषण देने का गौरव भी प्राप्त हुआ।

** कहानियां, कविताएं , समाचार- कथा और रपटें लिखने में आपको महारथ प्राप्त है। आपकी अनगिनत रचनाएं 1978 से 1999 तक ” धर्मयुग ” , “साप्ताहिक हिन्दुस्तान ” ” दिनमान ” ” रविवार ” , ” सरिता ” , ” मुक्ता ” , ” नवनीत ” , ” कादम्बिनी ” , ” योजना “, “आजकल ” , ” स्वागत ” , मधुमती सहित देश की तकरीबन सभी पत्र- पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई। आकाशवाणी जयपुर , कोटा के अलावा दूरदर्शन सहित “जी न्यूज ” स्टार टीवी ” आदि चैनल्स में भी इनके कार्यक्रम प्रसारित हुए हैं।

** आपकी नदी को आधार बना कर लिखी गई एक काव्य रचना देखिए……

खुशबूदार होती है नदियाँ
नदियों की खुशबू से महकते है जंगल
नदियों की खुशबू से दहकते है पलाश
उसकी गंध से गाते है पंछी
उसकी सौरभ से सरसती है फसलें
उसके जल से झरती है कविता
उसकी गंध पर रीझते है मेघ
उसकी की गंध से बौराई बिजलियाँ चमकती है
नदियां आत्माएं होती है नशेमन के लिए !
आपका राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा ” मौर्नंग वॉक ” उपन्यास प्रकाशित हुआ। उस समय यह उपन्यास काफी चर्चित रहा। इनका
” करोगे याद तो …” संस्मरण – संग्रह भी प्रकाशित हुआ। वर्तमान में आप पत्रकारिता पर दो पुस्तकें लिख रहे हैं।

** पत्रकारिता :

कौन सोच सकता था कि झालावाड़ जिले के छोटे से गांव मनोहरथाना में जन्मा और यहीं से पत्रकारिता शुरू करने वाला बालक पुरुषोत्तम
एक दिन पत्रकारिता के राष्ट्रीय क्षितिज पर ध्रुव तारा बन जाएगा। पत्रकारिता यात्रा का इनके जीवन का वह क्षण यादगार बन गया जब इन्होंने पत्रकारिता के विशेष प्रकल्प के लिए दक्षिणी अफ्रीका के जॉहन्सबर्ग व केपटाउन में रहने वाले नेल्सन मंडेला की बेवा विनी मंडेला से लम्बा साक्षात्कार लिया।

** कक्षा दसवीं में अपने गांव मनोहरथाना में ” राष्ट्रदूत ” के संवाददाता के रूप में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। यहीं से शुरू हुई इनकी पत्रकारिता की यात्रा। कोटा आने पर कॉलेज में अध्ययन के दौरान झालावाड़ जिले के झालरापाटन नगर से निकलने वाले उस समय के ” ब्लिट्ज़ ” समान तहलका मचा देने वाले अखबार “संजय साप्ताहिक ” के संवाददाता के रूप में कार्य के दौरान भ्रष्टाचार की बखिया उधेड़ने वाली इनकी दो- चार खबरों ने ही इन्हें सम्पादक लालाराम आर्य की आँखों का तारा बना दिया। इनके काम से प्रसन्न हो कर वे इन्हें हर सप्ताह पचास रुपयों का मनीआर्डर कर देते थे जो उस समय में अच्छी राशि होती थी। साथ ही दिल्ली से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ” जाह्नवी ” से जुड़े।

** यात्रा आगे बढ़ी तो “नवभारतटाइम्स” में रिपोर्टर, “जनसत्ता” में पाँच साल तक संभागीय संवाददाता, “भास्कर ” में मुख्य सम्वाददाता और बाद में ” कोटा-प्लस के प्रभारी, हैदराबाद में भारत के सर्वप्रथम बहुभाषी पोर्टल में फीचर सम्पादक, हरियाणा के रोहतक में “हरिभूमि ” दैनिक समाचारपत्र में मुख्य सम्वाददाता व सहायक सम्पादक, मध्यप्रदेश के भोपाल में ” नवभारत ” में फीचर सम्पादक व उप संपादक, एवं “हास-परिहास. कॉम में कंटेंट सम्पादक के रूप में अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम करने में सफल रहे। इन्होंने कोटा में दस वर्ष से अधिक समय तक स्वयं के पाक्षिक पत्र ” शब्द युद्ध ” का संपादन किया। पत्रकारिता में अनेक संवाद ,स्तंभ एवं आलेख सहित ललित निबंध निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपने कोटा प्रेस क्लब के सचिव के रूप में क्लब को गति प्रदान की।

** पुरस्कार :

इजिप्ट में पंचली जी की मेरे संस्मरण -संग्रह पुस्तक के लिए इन्डिया नेट बुक्स द्वारा साहित्य रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नेपाल में भी आपको पत्रकारिता के विशेष सम्मान के लिए सम्मानित किया गया। शिक्षा क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए जिला प्रशासन कोटा द्वारा सम्मानित किया गया। इन प्रमुख अलंकरणों और सम्मान सहित अनेक संस्थाओं द्वारा समय – समय पर आपको साहित्य और पत्रकारिता में उत्कृष्ठ योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

** परिचय :

पुरुषोत्तम पंचोली जी का जन्म 15 जुलाई 1957 को झालावाड़ जिले के मनोहरथाना गांव में हुई। यहीं पर उनकी प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा भी हुई और ये कोटा आ गए जहां इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। आपने कामर्स कॉलेज कोटा से कामर्स में बेमन से स्नातक किया बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से प्रथम श्रेणी में हिंदी से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर रजक पदक प्राप्त किया। कहते हैं पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, साठ वर्ष की उम्र में इन्होंने गॉधी-दर्शन में स्नातकोत्तर की डिग्री स्वर्णपदक के साथ प्राप्त की। आपने जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की विद्या में प्रशिक्षण प्राप्त किया।

कॉमर्स कालेज में ये छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे।

** कॉलेज के दिनों में विभिन्न हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में एक सत्र विशेष में 68 अखिल भारतीय वाद-विवाद प्रितियोगिताओं में विजेता बनने और अपने महाविद्यालय के 68 ट्रॉफियां जीतने का इन्होंने रिकार्ड कायम किया। इस असाधारण उपलब्धि के लिए तत्कालीन जिला प्रशासन द्वार इनको पंद्रह अगस्त पर आयोजित भव्य समारोह में सम्मानित किया गया। वर्ष 1978 में ऑल इन्डिया डिबेटिंग सोसायटी बैंग्लोर के अध्यक्ष बनने का सौभाग्य भी इनको मिला। लब्ध प्रतिष्ठित लेखक और पत्रकार को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए आर्थिक अभावों से भी गुजरना पड़ा और ऐसे में डॉ.सुधीर गुप्ता जैसे समाजसेवी चिकित्सक साथियों ने अपनत्व दिया। इन्होंने डॉ.गुप्ता के साथ मिल कर उनके सामाजिक सेवा प्रकल्प में समाज सेवा के भी अनेक कार्य किए। आपने पढ़ने की रुचि जागृत करने के लिए अपने घर के सामने पार्क में खुले पुस्तकालय का अभिनव प्रयोग भी किया जो निरंतर चल रहा है।

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