संपादकीय

सेना में लॉकडाउन

-कर्नल (रि.) मनीष धीमान
आज कोरोना काल के दौर में पूरा विश्व बचाव के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समय-समय पर समाजिक दूरी बनाए रखने, बार-बार हाथ धोने, मास्क पहनने, भीड़ वाली जगह पर न जाने आदि के दिशा-निर्देश देते हुए लॉकडाउन को ही इसके बचाव का बेहतर उपाय बताया है। पर अगर हर इनसान अपने घर में बंद रहेगा तो आर्थिक व्यवस्था इतनी चरमरा जाएगी कि कोरोना से ज्यादा भुखमरी से बचाव के उपाय सोचने पड़ेंगे। इसीलिए लगभग सारे विश्व ने अब स्थिति की नजाकत को समझते हुए कुछ रियायतों के साथ या कह सकते हैं कि कुछ एक बंदिशों के साथ पूरी तरह से लोगों की जिंदगी को वापस पटरी पर लाने के लिए हर तरह के काम-धंधे खोल दिए हैं। एक और समझने वाली चीज है कि सिर्फ कोरोना से ही छुटकारा पाने मात्र से दुनिया नहीं चल सकती, बल्कि इस महामारी के दौर में कुदरती आपदाएं भी समय-समय पर अपने कहर बरपा रही हैं। कभी समुद्री तूफान के रूप में तो कभी भूकंप के रूप में। भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य में गैस रिसाव से बढ़कर अब आग लगने से वहां के आसपास के इलाके के लोगों को भी सुरक्षित जगह पर भेजा जा रहा है। पर जब हम लॉकडाउन के दौरान रही दिनचर्या और बंदिशों का आकलन करें तो इस तरह की जिंदगी जीने का तरीका तो सेना में अक्सर अपनाया जाता है। फौज में अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही नो मूवमेंट के आदेश से इस व्यवस्था का पालन किया जाता है।
सेना में उच्च अधिकारी के कंटोनमेंट एरिया में निरीक्षण के दौरान या गणतंत्र एवं स्वतंत्रता दिवस तथा अन्य मुख्य राष्ट्रीय दिवस या त्योहार के समय में सैनिकों को नो मूवमेंट के आदेश जारी हो जाते हैं। नो मूवमेंट से मतलब यह है कि कोई भी सैनिक बिना किसी काम से कोई हरकत नहीं करेगा। लॉकडाउन के दौरान पास किए हुए निर्देश बिल्कुल नो मूवमेंट की तरह ही थे। वैसे आजकल जिस तरह के निर्देशों के साथ चल रही दिनचर्या को लॉकडाउन कहते हैं तो एक सैनिक की जिंदगी तो हमेशा ही लॉकडाउन की तरह ही रहती है। मात्र दो वर्ग किलोमीटर के यूनिट परिसर में एक सैनिक अपनी पूरी जिंदगी निकाल देता है। सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ उसी क्षेत्र में वह अपना समय व्यतीत करता है तथा किसी भी तरह से परिसर से बाहर या किसी अन्य जगह पर जाने की उसको आज्ञा नहीं होती है। उस दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ही जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध करवाई जाती हैं तथा सैनिक अपना सारा वक्त वहीं पर ही बिताते हैं। पिछले तीन महीने से चल रहे लॉकडाउन से अब जब सारी दुनिया तंग सा महसूस करने लगी है, पर अगर हम एक सैनिक की जिंदगी के बारे में सोचें तो आप पाएंगे कि सैनिक तो साल के लगभग 9 से 10 महीने लॉकडाउन में ही अपनी जिंदगी व्यतीत करता है। फिर भी देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हर सैनिक कभी भी इस तरह की दिनचर्या से तंग नहीं होता और खुशी-खुशी यह जिंदगी जीने के साथ-साथ देश की आंतरिक शांति तथा सरहद की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहता है।

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