संपादकीय

आतंकवादी हमलों से अधिक हानिकारक हैं खराब सड़कें

-विमल वधावन योगाचार्य
(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)

भारत में 50 से अधिक राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किये गये हैं जिनके निर्माण का सीधा दायित्त्व केन्द्र सरकार का है। पंजाब के अबोहर क्षेत्र में स्थित मलोट से उत्तराखण्ड के असकोट क्षेत्र तक लगभग 900 किलोमीटर का यह राजमार्ग पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड से निकलता है। इसी राजमार्ग के साथ लगता एक छोटा रूट निकालकर उसे राष्ट्रीय राजमार्ग 709 ए.डी. नम्बर दिया गया जो लगभग 400 किलोमीटर का है। इसे पानीपत-खटीमा राजमार्ग नाम से भी जाना जाता है। यह रोड उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले से होकर निकलती है। मुजफ्फरनगर बाईपास से जानसठ तक का लगभग 24 किलोमीटर का रास्ता पार करने में एक घण्टे से अधिक समय लगता है। इसका कारण ट्रैफिक जाम नहीं अपितु भयंकर रूप से जीर्ण-शीर्ण सड़कें हैं जिनमें अनेकों गहरे गढ्ढे देखे गये। श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की प्रगतिशील और आधुनिक अर्थव्यवस्था के तेज गति से बढ़ते कदमों को ब्रेक लगाते हुये महसूस हुये ये गढ्ढों से भरे मार्ग। भारत की सड़कों पर गहन चिन्तन करने के बाद सर्वहित नामक एक गैर-सरकारी संगठन की तरफ से केन्द्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी को भेजे गये एक विस्तृत पत्र के द्वारा यह आग्रह किया गया है कि सड़कों की बुरी अवस्था भारत की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शासक वर्ग के अध्यात्मिक दायित्व को भी चुनौती देती है।
आधुनिक भारत शिक्षा, स्वास्थ तथा उद्योगों सहित सभी क्षेत्रों में तीव्र उन्नति कर रहा है, परन्तु सड़कों के क्षेत्र में अभी बहुत पिछड़ापन दिखाई दे रहा है। हमारे देश में लगभग 20 लाख किलोमीटर सड़कों का जाल है। जिसमें से केवल 9 लाख 60 हजार किलोमीटर सड़कें ही पक्की हैं। शेष 10 लाख किलोमीटर से अधिक सड़कें कच्ची या बुरी हालत में हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रैफिक का 40 प्रतिशत बोझ पड़ता है। केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष सड़कों के निर्माण और रख-रखाव पर लगातार बजट राशि बढ़ाती जा रही है। परन्तु धरातल पर कार्य करने में इतना जबरदस्त भ्रष्टाचार है कि स्थानीय सड़कों की हालत एक वर्ष बाद ही बिगड़नी शुरू हो जाती है। एक अच्छी सड़क के लिये तीन स्तर का निर्माण किया जाता है। सबसे नीचे मजबूत आधार बनाने के बाद बीच की परत और उसके ऊपर रोड़ी-तारकोल की परत बिछाई जाती है। कंक्रीट रोड़ अपेक्षाकृत खर्चीली होती है परन्तु तारकोल रोड़ से कई गुना लम्बी अवधि की होती है। सड़क निर्माण की वैज्ञानिक सोच यह कहती है कि सड़क की ढलान दायीं और बांयी तरफ रखी जानी चाहिए जिससे पानी जमा न हो सके और सड़कों का नुकसान न हो।
विश्व स्वास्थ संगठन ने तो अच्छी सड़कों को लोगों के स्वास्थ और लम्बी आयु के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। इस अन्र्तराष्ट्रीय दबाव के चलते ही भारत की संसद को मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करके टैªफिक नियमों में उलंघन को भारी जुर्माने से निपटने के लिये विवश होना पड़ा। सारा विश्व यह मान चुका है कि आर्थिक बोझ से अधिक महत्त्वपूर्ण है स्वस्थ मानव जीवन। मानव जीवन के अतिरिक्त ये खराब सड़कें भारत के वाहनों को भी करोड़ों-अरबों रुपये की हानि पहुँचा रही है। गढ्ढों से भरी सड़कों पर चलने के कारण नागरिकों का समय बर्बाद होता है, वाहनों के टायर, रिम तथा अन्य कई पुर्जे जल्दी खराब हो जाते है।
हाल ही में किये गये एक सर्वे के अनुसार प्रतिदिन 29 मौतें केवल खराब सड़कों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं का परिणाम होती हैं। गढ्ढों से बचने के लिये प्रत्येक ड्राइवर अपने वाहन की लेन बदलकर अन्य वाहनों के लिये समस्याएं पैदा करता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी खराब सड़कों के कारण होने वाली मौतों को आतंकवादी हमलों से होने वाली मौतों से भी अधिक संख्या में पाये जाने पर चिन्ता जताई है। जबकि इन मौतों में किसी व्यक्ति की गलती या अपराधी नियत नहीं अपितु सड़कों के गढ्ढे ही एकमात्र कारण हैं। इसलिये सरकारों को इन गढ्ढों का उन्मूलन भी उसी प्रकार करना चाहिए जैसे आतंकवादियों के उन्मूलन के लिये प्रयास किये जाते हैं।
कानून का सिद्धान्त है कि किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था की गलती के कारण यदि किसी व्यक्ति को हानि होती है तो उसका मुआवजा भी गलती करने वाले व्यक्ति या संस्था को ही देना होगा। भारत के मोटर-वाहन कानून, 1988 में मोटर दुर्घटनाओं के कारण पीड़ितों को होने वाले जान और माल के नुकसान की पूर्ति के लिये तो अनेकों प्रावधान हंै परन्तु खराब सड़कों के कारण जान और माल के नुकसान की पूर्ति के लिये कोई विधिवत कानून नहीं बन सका। ऐसी समस्याओं का निदान टौट कानून के सिद्धान्त में ढूंढा जा सकता है। टौट कानून मूलतः एक अंग्रेजी कानून है जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी गलती के लिये जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिस दिन भारत के निवासी खराब सड़कों से होने वाली प्रत्येक हानि को लेकर अदालतों में राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के विरुद्ध मुआवजों के मुकदमें दाखिल करना प्रारम्भ कर देंगे उसके बाद ही सरकारों की नींद खुलेगी और सड़कों की हालत सुधरेगी।

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