संपादकीयसैर सपाटा

दिल्ली है भारत का दिल और धड़कन

-डाॅ. प्रभार कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

आईये ! आपको ले चलते हैं, दिल्ली की यात्रा पर, जहां धड़कता है भारत का दिल। यहीं से देश के विकास और आमजन के कल्याण की सरिता बहती है। यहीं पर होते हैं देश की सीमाओं की सुरक्षा, आन्तरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाये रखने के फैसले। देश में कानूनों का निर्माण भी दिल्ली से होता है। भारत का यह आधुनिक मेट्रोपोलियन सिटी अनेक प्राचीन ऐतिहासिक एवं औपनिवेशिक इमारतों, धार्मिक स्थलों एवं आधुनिक वास्तु के भवन संस्कृति का संगम स्थल है।
दिल्ली के दिल में बसता है पूरा भारत। देश के सभी राज्यों के लोग यहां विविधता में एकता के दर्शन कराते हैं। एक ही स्थान पर हर जगह सभी चीजें मिलने से इसे ”शाॅपर्स पेराडाइज“ कहा जाता है। दिल्ली ने अपने ऐतिहासिक जीवन में अनेक उतार-चढ़ावों को देखा है। प्राचीन समय में इसका सम्बन्ध पाण्डों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ से रहा है। सात शहरों के खण्डरों पर बनी दिल्ली पर हिन्दू व राजपूतों से लेकर मुगलों एवं आखिर में अंग्रेज़ो ने राज्य किया। यहां कोई धर्म, जाति एवं सभ्यता नहीं है, यह हर धर्म जाति को साथ लेकर चलने वाला राज्य है। धर्म की दृष्टि से दिल्ली में 61.6 प्रतिशत हिन्दू, 12.86 प्रतिशत मुस्लिम तथा शेष में सिक्ख, जैन, ईसाई, बौद्ध, यहूदी एवं बहाई धर्म के लोग निवास करते हैं।
राजनैतिक गतिविधियों की राजधानी में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि और कई अन्य आकर्षक स्थल दिल्ली की विशेषताएं हैं। अपनी ऐसी ही विशेषताओं वाला दिल्ली भारत का दूसरा बड़ा धनी राज्य है तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को भी शामिल किया जाये तो यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र बन जाता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एक संघ शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें सम्मिलित नई दिल्ली भारत की राजधानी है। राजधानी होने से केन्द्र सरकार की तीन ईकाइयां कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं संसद के मुख्यालय नई दिल्ली में हैं। नई दिल्ली में प्रशासकीय दृष्टि से 11 जिले बनाये गये हैं। संघीय क्षेत्र का क्षेत्रफल 1484 वर्ग कि.मी. एवं जनसंख्या 16787941 है। अधिकारिक भाषा हिन्दी है तथा अतिरिक्त भाषा के रूप में पंजाबी और उर्दू बोली जाती है। राज्य के पूर्व में उत्तर प्रदेश तथा तीन और हरियाणा राज्य की सीमाएं लगती हंै। दिल्ली को 1911 में भारत की राजधानी बनाया गया तथा 1956 में इसे संघीय राज्य बनाया गया। एनसीआर का गठन 1 फरवरी 1992 को किया गया। यमुना यहां की प्रमुख नदी है। हिन्डन नदी दिल्ली के पूर्वी भाग को गाजियाबाद से अलग करती है। सुप्रीम कोर्ट का क्षेत्रीय कार्यालय दिल्ली में स्थापित है।

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से दिल्ली उत्तरी भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक केन्द्र है। दिल्ली में सभी सरकारी सेवाओं के साथ-साथ उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, दूर संचार, बैंकिंग, मिडिया, होटल एवं पर्यटन मुख्य सेवायें हैं। दिल्ली में भारत का सबसे बड़ा और तेजी से बढ़ता हुआ खुदरा उद्योग है। उपभोक्ता वस्तुओं की कम्पनियों ने शहर में विनिर्माण ईकाइयों और मुख्यालय की स्थापना के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बड़ा उपभोक्ता बाजार और कुशल श्रम की उपलब्धता ने दिल्ली में विदेशी निवेश को आकर्षित किया है। निजी क्षेत्र में वोडोफोन, एयरटेल, आइडिया, सेल्यूलर, रिलायंस, इफोकाॅम, एयरसेल, रिलायंस जियो तथा टाटा डोकोमो सरकारी टेलीफोन एवं सेलफोन फोन सेवाओं के साथ-साथ अपनी निजि सेवाएं पूरे देश में प्रदान करते हैं।
सांस्कृतिक रूप से दिल्ली में भारतीय पुरातत्व विभाग ने 1200 विरासत भवनों एवं 175 स्मारकों को राष्ट्रीय विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्रदान की है। लाल किला, कुतुब मीनार एवं हुमायूं का मकबरा को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। लाल किले के समीप निर्मित जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। अन्य स्मारकों में जन्तर-मन्तर, इण्डिया गेट, पुराना किला शामिल है। आधुनिक वास्तुकला के सुन्दर नमूने स्वामी नारायण अक्षरधाम, लक्ष्मी नारायण, बहाई लोटस एवं इस्काँन मंदिरों में देखने को मिलते हैं। चाँदनी चैक बाजार आभूषणों जरी यजरदोसीद्ध के काम के लिए प्रमुख केन्द्र है। दिल्ली में सोने के धागे के साथ कढ़ाई एवं मीनाकारी भी प्रसिद्ध है। स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस एवं गांधी जयन्ति दिल्ली में प्रमुख उत्साह से मनाएं जाते हैं। आजादी के दिवसों के आयोजन में पूरे देश की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन एवं रंगबिरंगी सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है। दिल्ली के लोग अपनी आजादी का उत्साह आकाश में पतंग उड़ाकर प्रदर्शित करते हैं। सर्दियों में यहां ”फूलों वालों की सायर है“ उत्सव मनाया जाता है। कुतुब मीनार में आयोजित वार्षिक कुतुब उत्सव भारत के संगीतकारों एवं नृत्यकों के आकर्षक प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय मैंगो फेस्टिवल, बसन्त महोत्सव, हर दो वर्ष में आयोजित एशिया का सबसे बड़ा आटो शो आटो एक्सपो, वार्षिक विश्व पुस्तक मेला, भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला दिल्ली के प्रमुख आयोजन हैं। दिल्ली में सभी धर्मों के त्यौहार मनाये जाते हैं। खरीददारी के लिए चांदनी चैक, कनाट प्लेस, खान मार्केट, पालिका बाजार तथा दिल्ली हाॅट प्रमुख स्थल है। थोक खरीददारी के लिए सदर बाजार मुख्य बाजार है।
परिवहन सुविधाओं की दृष्टि से दिल्ली में एशिया का सबसे व्यस्तम इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्रमुख है। विश्व के सभी प्रमुख देशों तथा भारत को अन्तर्राज्य हवाई सेवा यहां से उपलब्ध है। सड़क परिवहन की दृष्टि से दिल्ली का अन्तर्राज्यी बस अड्डा भारत के सभी राज्यों एवं प्रमुख पर्यटक स्थलों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली में भारतीय रेलवे का सुदृढ़ नेटवर्क है। दिल्ली में नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन, आनन्द विहार एवं सराय रोहिल्ला प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। दिल्ली मेट्रो, दिल्ली के नागरिकों को स्थानीय सेवा उपलब्ध कराती है। मेट्रो दिल्ली सहित फरीदाबाद, गुड़गांव, नोएडा एवं गाजियाबाद को सेवा देने वाली तीव्रगामी सेवा है। दिल्ली मेट्रो के नेटवर्क में 142 स्टेशन बनाये गये हैं जिनमें 35 स्टेशन भूमिगत हैं। दिल्ली मेट्रो के अलावा उपनगरीय रेलवे दिल्ली में पहले से संचालित की जाती हैं।

">लाल किला

पुरानी दिल्ली क्षेत्र सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर यमुना नदी के किनारे स्थित लाल किले का निर्माण शाहजहां द्वारा 1639 ई. में शुरू करवाया गया तथा इसका कार्य 1648 ई. में पूर्ण हुआ। इसकी दिवारंे लाल होने के कारण इसे लाल किला कहा जाता है। इस किले की महत्ता इसी से स्पष्ट होती है कि गणतंत्र दिवस एवं स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम इस किले की प्राचीर से ही देशवासियों को सम्बोधित करते हैं। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद किले का उपयोग ब्रिटेश सेना के मुख्यालय के रूप में किया जाने लगा। वर्ष 1947 में आजादी के बाद भारतीय सेना ने इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा 22 दिसम्बर 2003 को यह किला पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया।
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इसकी दिवार 2.5 कि.मी. लम्बी तथा नदी की ओर से इसकी ऊँचाई 60 फीट तथा शहर की ओर से 110 फीट है। किले की दिवारों में दो मुख्य द्वार दिल्ली दरवाजा एवं लाहौर दरवाजा हैं। लाहौर दरवाजा इसका मुख्य प्रवेश द्वार है जिसके अन्दर एक लम्बा बाजार है। मुगल समय में यहां रात्रि में मीना बाजार लगता था। लाहौर गेट से चट्टा चैक के खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कार खाना बना हुआ है। किले में बनी कलाकृतियां स्थापत्य शैली, रंग एवं प्रारूप में उत्कर्ष हैं। किले में दीवान-ए-आम, नहर-ए-बहिश्त, ज्ानाना महल, खास महल, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद, रंग महल, शाही स्नानगार एवं हयात बख्श बाग दर्शनीय स्थल हैं। दीवाने खास की मूल छत को रोगन की गई लकड़ी की छत से बदल दिया गया है जिसमें अब चाँदी-सोने का काम नजर आता है। आज लाल किला दिल्ली का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है।

कुतुब मीनार

मेहरौली में स्थित कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन एबक ने 1193 ई. में प्रारम्भ करवाया तथा इस कार्य को 1368 ई. में पूर्ण किया गया। कार्य को पूर्ण करने में उत्तराधिकारी इल्तुतमिश एवं फिरोजशाह तुगल्लक का महत्वपूर्ण योगदान रहा। करीब 72.5 मीटर ऊँची इस मीनार का आधार 15 मीटर है जो ऊपर पहुँचते-पहुँचते 2.5 मीटर रह जाति है। मीनार के अन्दर 7 घुमावदार 379 सीढ़ियां हैं। अब इसे केवल बाहर से ही देख सकते हैं। मीनार के अन्दर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। पहले यह मीनार 7 मंजिल की थी जो अब 5 मंजिल की रह गई है। मीनार का स्थापत्य शिल्प तथा मीनार पर लिखी गई आयतें देखते ही बनती हैं।ा इलतुतमिश का मकबरा भी बना है। कुतुब मीनार के समीप चैथी शताब्दी का 7 मीटर ऊँचा लोह स्तम्भ स्थित है। इसकी विशेषता है कि किसी भी मौसम का इस पर कोई असर नहीं होता है। आज तक इस लोह स्तम्भ पर जरा सा भी जंग नहीं लगना आश्चर्य उत्पन्न करता है।

जन्तर-मन्तर

दिल्ली के कनाट पैलेस के नजदीक स्थित जन्तर-मन्तर भी देश के उन पाँच जन्तर-मन्तरों में से एक है जिन्हें जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा 1724 ई. में बनवाया गया था। यहां सूर्य, चन्द्रमा एवं ग्रहों की गतियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए 13 अनोखे अन्तरिक्ष विज्ञान सम्बन्धी उपकरण मौजूद हैं। जन्तर-मन्तर स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना है। इसकी डिजाईन भी राजा जय सिंह द्वारा की गई थी जो स्वयं अपने हाथों से यंत्रों के मोम के माॅडल तैयार करते थे। सम्राट यंत्र, मिस्र यंत्र, राम यंत्र तथा जय प्रकाश यंत्र नक्षत्रों की गति एवं समय नापने के प्रमुख यंत्र हैं।

स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर

आध्यात्मिक संदेशों, प्राचीन वास्तु कला एवं परम्परा को दर्शाता स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर अपनी भव्यता एवं सौन्दर्य के कारण आज सैलानियों के आकर्षण का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया है। मुख्य इमारत 141 फीट ऊँची, 116 फीट चैड़ी तथा 356 फीट लम्बी बनी है। भवन में सैकड़ों अलंकरण युक्त नौ ऊँचे स्तम्भ बनाये गये हैं तथा 20 हजार साधुओं, अनुयायियों एवं आचार्यों की मूर्तियां बनाई गई हैं। निचले भाग में गजेन्द्रपीठ बनी है जिसमें 148 हाथी तराशे गये हैं।
मंदिर के गर्भगृह में 11 फीट ऊँची अभय मुद्रा में बैठी हुई स्वामी नारायण की प्रतिमा आकर्षक दिखती है। यहां राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण, शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी स्थापित की गई है। शिल्प सौन्दर्य में फूलों, पशुओं, नर्तकों, संगीतकारों के दृश्य भी नजर आते हैं। मंदिर परिसर के उद्यान में अनेक कांसे की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। मंदिर की मुख्य इमारत नारायण सरोवर से घीरी हुई है, जहां 108 गौ मुख बनाये गये हैं। सरोवर में 2870 सीढ़ियां बनी हैं। सरोवर का स्थापत्य देखते ही मनता है। भगवान स्वामी नारायण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 11000 हजार से अधिक कारीगरों एवं हजारों स्वयंसेवकों द्वारा 5 वर्ष में किया गया। इस मंदिर का भव्य उद्घाटन 6 नवम्बर 2005 को किया गया। सबसे बड़े हिन्दू मंदिर को गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में दर्ज किया गया है।

लोटस टेम्पल

नई दिल्ली के कालका जी क्षेत्र में स्थित वास्तुकला का नायाब नमूना लोट्स टेम्पल शहर का मुख्य आकर्षण बन गया है। कमल के फूल के आकार का यह मंदिर जहां शान्ति, प्रेम और पवित्रता का प्रतीक है वहीं बहाई समाज की आस्था और श्रद्धा का महत्वपूर्ण स्थल है। बहाई धर्म के अनुसार भगवान एक ही है। इस मंदिर को बनाने में एक दशक से भी अधिक का समय लगा तथा 1986 में यह मंदिर आमजन के लिए दर्शनार्थ खोला गया। मंदिर को करीब 700 इंजिनियर, तकनीशियन, कामगार और कारीगरों ने मिलकर बनाया। जिस मार्बल से मंदिर का निर्माण किया गया है वह ग्रीस से मंगवाया गया। कमल मंदिर का डिजाईन कनाड़ा के पर्शियन वास्तुकार फरिबोर्ज सहबा ने किया। प्रार्थना करने के सभी घर इस इमारत में 27 खड़ी मार्बल की पंखुडियों के बने हुये हैं, जिसे 3 और 9 के आकार में बनाया गया है। प्रवेश हाॅल में 9 दरवाजे बने हैं। मंदिर में एक समय में 2400 लोग प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर में हर घण्टे में होने वाली पाँच मिनट की प्रार्थना में लोग शांतिपूर्वक भाग लेते हैं। यहां फूलों श्रृंगारित घास के विस्तृत सुन्दर मैदान बने हैं। दुनिया के 7 बड़े बहाई मंदिरों में यह आखिरी मंदिर है। फूलों की पंखुडियों के पास पानी के नो कुंड बने हैंजो रात की रोशनी में जगमगाते हैं।
मंदिर परिसर में 151 पवित्र नदियों, झीलों और तालाबों के पानी से विश्व शांति के लिए प्रार्थना की जा सकती है, जिसे ”नीलकंठ वारनी अभिषेक“ कहा जाता है। प्रदर्शनी में तीन हाॅल बनाये गये हैं जहां अंहिसा, आध्यात्मिकता, सद्भाव, ईमानदारी के आदर्शों को प्रदर्शित करने वाली फिल्मों का प्रदर्शन, एक ग्यारह वर्षिय योगी की कहानी के माध्यम से भारत के रीति रिवाजों की संस्कृति, आध्यात्मिकता, वास्तुकला की महिमा एवं अविस्मरणीय जगहों की जानकारी, भारत की विरासत के 10 हजार वर्ष के माध्यम से ऋषि एवं वैज्ञानिकों की खोज एवं अविष्कार जैसी फिल्में प्रदर्शित की जाती हैं। प्रदर्शनी क्षेत्र में जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाने वाला एक संगीतमय फव्वारा अत्यन्त लुभावना है। ध्यान रहे यह मंदिर सोमवार को बन्द रहता है तथा मंदिर में प्रातः 9.30 से सायं 6.30 बजे तक प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर काॅम्प्लेक्स में प्रवेश निःशुल्क है जबकि काॅम्प्लेक्स में स्थित प्रदर्शनी के लिए टिकट लेना होता है।

पुराना किला

यमुना नदी के किनारे तथा मथुरा रोड़ स्थित चिड़ियाघर के समीप स्थित दीन-पनाह नगर का आन्तरिक एवं पुराना किला है। पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यहां प्राचीन काल में पाण्डवों की विशाल राजधानी इन्द्रप्रस्थ स्थित थी। किले में कई शिलापट्टों पर इन्द्रप्रस्थ राजधानी होने का उल्लेख मिलता है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा 1969 से 1973 के मध्य की गई खुदाई में महाभारत कालीन अवशेष सील, यक्ष-यक्षियों की प्रतिमाएं, सिक्के, मिट्टी के बर्तन, मनके तथा मुद्रा आदि प्राप्त हुए हैं, जिन्हें यहाँ के संग्राहलय में रखा गया है। पुराविदों की मान्यता है कि यहां मौर्यकाल 300 ई. पूर्व से लेकर प्रारम्भिक मुगलकाल तक यहां मानव की बसावट रही।
करीब 2.4 कि.मी. लम्बी तथा 18 मीटर ऊँची मजबूत विशाल प्राचीर तथा उत्तर-पश्चिम एवं दक्षिण में तीन बड़े दरवाजें वाले इस किले का निर्माण 1538-45 के मध्यम शेरशाह सूरी ने करवाया था। उसने दिल्ली का राज्य मुगल शासक हुमायूं से छीन लिया था। यहां दो तलीय अष्टभुजी स्तम्भ वाली एक मस्जिद भी बनाई गई है। तीनों द्वारों पर दोनों तरफ बुर्ज बने हैं। किले में प्रवेश के लिए पश्चिमी द्वार का उपयोग किया जाता है। यह किला मुगल, हिन्दू एवं अफगान कला का सुन्दर नमूना है। यहां सायंकाल दृश्य-श्रृव्य कार्यक्रम आयोजित होता है। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं।

हुमायूं का मकबरा

बमुगल और भारतीय शिल्प का सुन्दर नमूना हुमायूं का मकबरा पुराने किले के समीप संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के समीप स्थित है। भारत में मुगल वास्तुकला और चारबाग शैली में बना मुगलकालीन पहला वास्तुशिल्प का नमूना है, जिसके आधार पर शाहजहां ने आगरा में ताजमहल बनवाया। मकबरे का निर्माण हुमायूं की विधवा बेगम हमीदा बानो द्वारा करवाया गया। मुख्य इमारत का निर्माण 1565 से 1572 के मध्य अफगानिस्तान के हैरात से बुलाये गये कारीगर मिराक मिर्जा घियास (घियासुद्दीन) तथा इसके बेटे सैयद मुहम्मद ने आठ वर्षों में पूर्ण किया। उस समय इसके निर्माण पर 15 लाख रूपये खर्च किये गये।
मकबरे की इमारत 8 मीटर ऊँचे एवं 12 हजार वर्गामीटर अष्टकोणीय चबूतरे पर बनी है। चबूतरे को चारों ओर से लाल जालीदार मंुडेर से सजाया गया है। चबूतरे के नीचे 56 कोठियां बनी हैं, जिनमें करीब 100 से ज्यादा कब्रें हैं। मुख्य मकबरा 47 मीटर ऊँचा एवं 300 फीट चैड़ा है। गुम्बद पर 6 मीटर ऊँचा पीतल का किरीट कमल स्थापित है जिस पर चन्द्रमा लगा है। मुख्य गुम्बद की छोटी-छोटी छतरियां नीली टाइल्स से ढकी गई हैं जो भारतीय यराजस्थानीद्ध कला का नमूना है।
हुमायूं के गुम्बद की आन्तरिक रचना में मुख्य केन्द्रीय कक्ष के साथ 9 वर्गाकार कक्ष बनाये गये हैं। मुख्य कक्ष गुम्बददार एवं दुगुनी ऊँचाई का एक मंजिला है। इसके मध्य में 8 किनारे वाले जालीदार घेरे में सम्राट हुमायूं की कब्र बनी है। जालीदार घेरे के ठीक ऊपर मेहराब भी बना है, बताया जाता है कि असली समाधि नीचे आन्तरिक कक्ष में बनी है जबकि उसके ठीक ऊपर भव्य सुन्दर प्रतिकृति बनाई गई है। कब्र निर्माण भारतीय-इस्लामिक कला का नमूना है। यह भवन बलुवा पत्थरों से निर्मित है जिसके ऊपर जगह-जगह रंग-बिरंगे संगमरमर एवं टाइल्स लगाकर इसे खूबसूरत बना दिया गया है। मकबरे के परिसर में सुन्दर बाग-बगीचे बनाये गये हैं।

इण्डिया गेट

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों की स्मृति में बनाया गया इण्डिया गेट नई दिल्ली का एक प्रमुख आस्था स्थल है। नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित यह विशाल द्वार 160 फीट ऊँचा है जो दूर से ही नजर आता है। यह स्मारक पेरिस के आर्क डे ट्राॅयम्फ से प्रेरित है और इसका डिजाइन एडवर्ड लुटियन्स ने तैयार किया था। लाल और पीले बलूआ पत्थरों से निर्मित स्मारक का निर्माण 1931 में करवाया गया। स्मारक पर प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्धों में शहीद हुए 90 हजार सैनिकों के नाम लिखे गये हैं। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में यहां अमर जवान ज्योति का स्मारक बनाया गया जहां 24 घण्टें अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। इण्डिया गेट की मेहराब के नीचे बने अमर जवान ज्योति स्मारक में अनाम शहीदों की स्मृति में एक राइफल के ऊपर सैनिक की टोपी सजा दी गई है। यहां प्रतिवर्ष प्रधान मंत्री व तीनों सेनाध्यक्ष पुष्पचक्र चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इण्डिया गेट का षट्भुजिय क्षेत्र 306000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इण्डिया गेट के सामने एक छतरी नजर आती है जिसमें कभी जाॅर्ज पंचम की भव्य मूर्ति स्थापित थी। अब यह मूर्ति यहां से हटाकर कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दी गई है। प्रति वर्ष गणतंत्र दिवस पर निकलने वाली परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होकर इण्डिया गेट होते हुए लाल किले तक पहुँचती है। स्मारक परिसर में खूबसूरत हरे-भरे लाॅन बनाये गये हैं। राष्ट्रीय महत्त्व के इस स्मारक को देखने के लिए दिल्ली जाने वाला हर सैलानी यहां पहुँचता है।

राष्ट्रपति भवन

वास्तुशिल्प का चमत्कार राष्ट्रपति भवन 330 एकड़ जमीन पर बना है, जिसे बनने में 17 वर्ष का समय लगा और यह 1929 ई. में बनकर पूर्ण हुआ। भवन में 2.5 किलो मीटर के गलियारे 190 एकड़ में बगीचे हैं। मुख्य इमारत 5 एकड़ में चार मंजिला बनी है, जिसमें 340 कमरे हैं। इसके निर्माण में करीब 700 मिलियन ईंटे और 3 लाख घनफीट पत्थर का उपयोग किया गया। राष्ट्रपति भवन का प्रसिद्ध मुगल गार्डन 15 एकड़ क्षेत्र में अतुलनीय उद्यान है। इस गार्डन में 159 प्रजातियों के गुलाब के फूल, 60 किस्मों की बोगनबेलिया तथा बड़ी संख्या में विभिन्न फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं। परिसर में राष्ट्रपति भवन संग्राहलय भी स्थापित किया गया है। इसमें क्लाॅक टाॅवर, एवं गैरेज शामिल है तथा यहां विभिन्न प्रकार की समृद्ध वनस्पतियों और जीवों का प्रदर्शन किया गया है। इस संग्राहलय का उद्घाटन 25 जुलाई 2016 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया था। राष्ट्रपति भवन देखने के इच्छुक पर्यटक आॅनलाईन बुकिंग करा सकते हैं।

राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय

ऐतिहासिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक कृतियों के प्रदर्शन के साथ दिल्ली का राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय राष्ट्रीय पहचान बनाता है। जनपथ पर स्थित तीन मंजिले वर्तमान संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1949 में की गई तथा इसका अपना भवन का वर्ष 1960 में बनकर तैयार हुआ और इसे जनता के खोला गया। संग्रहालय में करीब 2 लाख भारतीय एवं विदेशी मूल की वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यहां 2700 ईसा पूर्व के टेराकोटा और काँस्य से बनी वस्तुएं, मौर्यकाल की लकड़ी से बनी मूर्तियां, दक्षिण भारत की कलात्मक वस्तुएं, सिन्धुघाटी सभ्यता, गुप्तकाल, गंधर्वकाल, मुगलकाल, बौद्धयुग तथा मोहनजोदड़ों के समय की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। मोहनजोदड़ों सभ्यता की नृत्य करती मूर्ति, वादय यंत्र, भित्ती चित्र, कपड़े, हथियार आदि प्रदर्शित किये गये हैं। संग्रहालय को रूचि के साथ देखने वालों को शायद एक दिन कम पड़े। संग्रहालय में विश्व के अत्यन्त लघु चित्रों का भी अच्छा संग्रह है। संग्रहालय में पुरातत्व, मानव शास्त्र, मध्य एशियाइ पुरावशेष, पाण्डुलिपियां, मुद्रा एवं अभिलेख, पूर्व कोलंबियन एवं पश्चिमी कलाएं तथा प्रागेतिहासिक और पुरातत्व आदि दीर्घाएं बनाई गई हैं। यहां एक संरक्षण प्रयोगशाला, पुस्तकालय, प्रकाशन विभाग एवं छायाचित्रण अनुभाग भी बनाये गये हैं, तथा कलाकृतियों का फोटो प्रलेखन किया जाता है तथा इसके प्रिन्ट शोध करने वालों को उपलब्ध कराये जाते हैं। भारतीय कला एवं संस्कृति से संबन्धित पुस्तकें भी खरीदने के लिए यहां उपलब्ध हैं। यहीं पर कोटा की झाला हवेली के चित्रों को संजोकर सुरक्षित रखा गया है। प्रयोगशाला के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। संग्रहालय आम लोगों के लिए प्रातः 10 बजे से सायं 5 बजे तक खुला रहता है। संग्रहालय का साप्ताहिक अवकाश सोमवार को होता है।

जामा मस्जिद

दुनिया में सबसे लोकप्रिय मुस्लिम धार्मिक स्थलों में शुमार है दिल्ली की जामा मस्जिद। इसकी विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यहां प्रार्थना के दौरान 25 हजार लोग एक साथ इबादत कर सकते हैं। यह मस्जिद अपनी कारीगरी के कारण दिल्ली के पर्यटक स्थलों में शामिल की गई है। मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा 1644 ईस्वी मंे किया गया था। मस्जिद की कारीगरीपूर्ण मीनारें, गुम्बद, मेहराब, दरवाजे सभी कुछ दर्शनीय हैं। मस्जिद में चार बड़ी मीनार व तीन बडे़ दरवाजे बनाये गये हैं। मीनारांे की ऊंचाई 40 मीटर ऊंची है जो सफेद संगमरमर और लाल पत्थर से बने हैं। मस्जिद की लम्बाई 261 फीट एवं चैड़ाई 90 फीट है। आगरा की मस्जिद के समकक्ष नजर आने के लिए इस मस्जिद के फर्श सफेद और काले अलंकृत पत्थर से बनाये गये हैं।

लाल मंदिर

दिल्ली का सबसे पुराना जैन मंदिर लाल किला और चांदनी चैक के सामने स्थित है। लाल रंग के पत्थर से बना होने के कारण इसे लाल मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1526में किया गया। यहां कई जैन मंदिर हैं, जिनमें सबसे प्रमुख मंदिर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का है। यहां जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां का शांत वातावरण अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मुगल साम्राज्य में मंदिरों के शिखर बनाने की अनुमति नहीं होने से इस मंदिर का कोई औपचारिक शिखर नहीं है। बाद में स्वतंत्रता के बाद इस मंदिर का पुनरोद्धार किया गया। यह मंदिर भारत के दस प्रमुख जैन मंदिरों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

बंगला साहिब गुरूद्वारा

सिक्खों के 8वें गुरू हरकिशान सिंह साहिब ने दिल्ली प्रवास के दौरान इस गुरूद्वारे का निर्माण किया था। गुरूद्वारा नई दिल्ली कनाॅट प्लेस गोल मार्केट के समीप बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित है। मंदिर का गंुबद शिखर स्वर्ण मंडित होने से दूर से ही नजर आता है। यहां एक सरोवर भी बनाया गया है। विश्वास है कि इस सरोवर में स्नान करने से विभिन्न प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। इसी विश्वास के चलते श्रद्धालु यहां का पानी अपने साथ ले जाते हैं।
बताया जाता है कि 17वीं शताब्दी में यहां आमेर के राजा जयसिंह का बंगला था। तब इसे जयसिंह पुर महल के रूप में जानते थे। 8वें गुरू 1664 में यहां रहे और यहीं पर उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद जयसिंह ने यहां एक तालाब बनवाया, जिसका निर्माण भक्तों द्वारा एकत्रित चंदे से किया गया। सरोवर के पास रसोईघर बना है, जहां लंगर चलता है। यहीं पर बंगला साहिब गुरूद्वारे के तलघर में एक कलादीर्घा बनाई गई है, जहां इस स्थल के इतिहास से जुड़ी घटनाओं को चित्रित किया गया है।

वन्य प्राणी उद्यान – चिड़ियाघर

दिल्ली चिड़ियाघर एशिया के सबसे अच्छे चिड़ियाघरों में गिना जाता है। चिड़ियाघर पुराने किले के समीप 214 एकड़ में बनाया गया है। इसका डिजाइन श्रीलंका के मेजर वाइन मेन और पश्चिम जर्मनी के काॅर्ल हेगलबेक ने किया था। चिड़ियाघर में भारतीय पशु-पक्षियों के साथ-साथ ऐशिया, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीका से लाये गये पशु-पक्षी भी देखने को मिलते हैं। इस चिड़ियाघर में पशु एवं पक्षियों की करीब 22 हजार प्रजातियां तथा 200 प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। यहां एक पुस्तकालय भी संचालित है। देखने का समय गर्मीयों में प्रातः 8 बजे से सायं 6 बजे तक तथा सर्दीयों में प्रातः 9 बजे से सायं 5 बजे तक है। चिड़ियाघर प्रति शुक्रवार को बन्द रहता है।

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