संपादकीय

शैक्षणिक संस्थाओं में कामुक शोषण बर्दाश्त नहीं

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट)

कार्यस्थलों पर महिलाओं का कामुक शोषण रोकने के लिए वर्ष 2013 में भारतीय संसद ने एक देशव्यापी कानून पारित किया जिसमें यह प्रावधान था कि जिस किसी कार्यस्थल पर 10 या 10 से अधिक महिलाओं का प्रतिदिन आना-जाना हो उस कार्यस्थल पर महिलाओं के कामुक शोषण की हरकतों के विरुद्ध शिकायतों को सुनने के लिए एक आन्तरिक शिकायत समिति बनाई जानी चाहिए जिसमें महिलाओं का वर्चस्व रखा जाये। यह आन्तरिक शिकायत समिति कामुक शिकायतों की शोषण पर जाँच करके कार्यस्थल के प्रबन्धकों या जिलाधिकारी को कार्यवाही करने के लिए सिफारिश करेगी। इस कानून में निराधार और झूठी शिकायतों के विरुद्ध कार्यवाही के भी प्रावधान रखे गये थे। जिस कार्यस्थल पर ऐसी आन्तरिक शिकायत समिति न बनी हो उसके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए प्रत्येक जिलाधिकारी द्वारा गठित स्थानीय समिति सुनवाई करेगी। जहाँ 10 से कम महिलाएं कार्य करती हैं वहाँ कामुक शोषण की शिकायत सीधा जिले की स्थानीय समिति को की जा सकती है।
कार्यस्थल की परिभाषा को भी इस कानून में बहुत व्यापक रूप से स्पष्ट किया गया है। इस परिभाषा में सरकारी, गैर-सरकारी हर प्रकार के विभाग और कार्यालय शामिल हैं। आवासीय इकाईयों अर्थात् घरों को भी कार्यस्थल घोषित किया गया है। कार्यस्थल परिभाषित करने के पीछे एक ही भाव है कि जहाँ कहीं भी महिलाओं का आना-जाना होता है उन्हें इस कानून का संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। यहाँ तक कि असंगठित क्षेत्र जैसे भवन निर्माण में लगी मजदूर महिलाओं को भी इस कानून का संरक्षण दिया गया है। शैक्षणिक संस्थाओं को भी स्पष्ट रूप से भी इस परिभाषा में शामिल किया गया है। जब हम शैक्षणिक संस्थाओं की बात करते हैं तो उसमें अध्यापिकाएँ या अन्य स्टाफ के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने वाली छात्राओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। परन्तु अब तक यह देखा गया है कि भारत की शैक्षणिक संस्थाएँ अर्थात् स्कूल, काॅलेज तथा अन्य उच्च शिक्षा के सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी संस्थान छात्राओं को इस कानून का संरक्षण देने के प्रति उदासीन हैं। यदि केवल उच्च शिक्षा की बात की जाये तो अमेरिका और चीन के बाद भारत का तीसरा स्थान है। भारत में लगभग एक हजार विश्वविद्यालय तथा 40 हजार के करीब उच्च शिक्षा संस्थान चल रहे हैं। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि इन उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिदिन प्रवेश करने वाली छात्राओं को कामुक शोषण निवारण कानून का संरक्षण देने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गये।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा तकनीकी शिक्षा की अखिल भारतीय परिषद् ने विशेष नियम घोषित करके उच्च शिक्षण संस्थाओं को महिलाओं की शिकायतों के विरुद्ध आन्तरिक शिकायत समितियाँ बनाने के लिए निर्देश जारी किये हैं। इन निर्देशों में महिला कर्मियों के अतिरिक्त महिला छात्राओं और यहाँ तक कि पुरुष छात्रों तथा ट्रांसजेन्डर छात्रों को भी शामिल किया गया है।
शैक्षणिक कार्यस्थल को भी बड़े व्यापक रूप से भी परिभाषित किया गया है। शैक्षणिक संस्थानों की पूरी भूमि के साथ-साथ घर से वहाँ पहुँचने तक के यातायात साधन, किसी भी प्रकार के उत्सवों या खेलों के आयोजन वाले स्थल आदि भी कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल किये गये हैं। छात्रा का अर्थ शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रवेश प्राप्त कर चुकी छात्राओं के साथ-साथ उन कन्याओं से भी है जो प्रवेश प्राप्त करने के लिए या शिक्षा से सम्बन्धित किसी गतिविधि के लिए उन संस्थाओं में प्रवेश करती है।
कामुक शोषण का व्यापक अर्थ महिलाओं को किसी भी प्रकार से नीचा दिखाने जैसी हरकतों को भी अपनी परिभाषा में शामिल करता है। प्रत्येक शिक्षण संस्थान से यह अपेक्षा की गई है कि वे महिलाओं के विरुद्ध कामुक शोषण के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति पर चलें। इसके लिए नियमित रूप से जागृति कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए। किसी भी प्रकार की शिकायत प्राप्त करने के लिए एक वरिष्ठ महिला अध्यापिका की अध्यक्षता में 8 अन्य महिलाओं की आन्तरिक शिकायत समिति बनाई जानी चाहिए। यह समिति किसी भी शिकायत का निपटारा शिकायत प्राप्ति के 90 दिन के भीतर करे।
यदि किसी उच्च शिक्षण संस्थान ने अब तक शिकायत निवारण समितियों के गठन जैसी व्यवस्था नहीं की तो उन्हें तुरन्त उक्त कानून तथा विश्वविद्यालय आयोग और तकनीकी शिक्षा परिषद् के निर्देशों का अध्ययन करने के बाद तुरन्त कार्यवाही कर लेनी चाहिए। जो उच्च शिक्षण संस्थान इस कार्यवाही को न करने के दोषी माने जायेंगे उन्हें सरकार से प्राप्त होने वाली अनुदानों तथा अन्य सहायताओं को रोका जा सकता है, ऐसी संस्थाओं के विरुद्ध समाचार पत्रों तथा आयोग की वैबसाइट पर घोषणाएँ की जा सकती हैं, उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है, राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली संस्थाओं के विरुद्ध कार्यवाही के लिए राज्य सरकारों को भी बाध्य किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त और भी कोई योग्य कार्यवाही की जा सकती है। इसलिए भारत के सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं को महिला कर्मियों तथा छात्राओं का कामुक शोषण रोकने के लिए निर्धारित कदम अवश्य उठाने चाहिए। वैसे तो उक्त कानून के प्रावधान 12वीं तक के विद्यालयों में भी जोर-शोर से लागू किये जाने चाहिए। जागरूक नागरिकों को भी अपने-अपने क्षेत्रों में यह ध्यान रखना चाहिए कि किस शैक्षणिक संस्थान ने इस कानून के अनुसार आन्तरिक शिकायत समितियों का गठन तथा कामुक शोषण के विरुद्ध जागृति अभियान नहीं चलाये। ऐसी संस्थाओं को पत्रों के द्वारा या व्यक्तिगत रूप से मिलकर इस कानून के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने के प्रयास किये जाने चाहिए। यह प्रयास राजनीतिक दलों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों या किसी जागरूक नागरिक के द्वारा भी किये जा सकते हैं।

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